रागिनी के पुरोधाओं को समर्पित सूरजपुर बाराही मेला-2025 बना लोक परंपरा का तीर्थ

मौहम्मद इल्यास- “दनकौरी”/सूरजपुर
सदियों पुरानी हरियाणवी लोक गायन शैली रागिनी को जीवंत रखने वाला सूरजपुर का ऐतिहासिक बाराही मेला-2025, इस वर्ष अपनी संवेदनशीलता, सांस्कृतिक चेतना और लोकगौरव के संरक्षण का प्रतीक बनकर उभरा। मेले के पांचवें दिन का मंच रागिनी के उस सांस्कृतिक इतिहास को समर्पित रहा, जिसने उत्तर भारत की लोक आत्मा को स्वर और शब्द दिए।

रागिनी के मूल स्रोत और पुरोधा हुए सम्मानित स्मरण

इस अवसर पर मंच संचालकों और कलाकारों ने रागिनी के महान जनक पंडित लख्मीचंद को श्रद्धांजलि दी, जिन्हें लोक जगत में ‘सूर्य कवि’ कहा जाता है। उन्होंने रागिनी को चौपाल की सीमाओं से निकालकर जन-जन तक पहुँचाया।
दयाचंद मयना, जिन्होंने रागिनी को सामाजिक बदलाव का माध्यम बनाया और सती प्रथा, दहेज, कन्या शिक्षा जैसे विषयों पर साहसिक रचनाएँ दीं, उन्हें भी विशेष रूप से याद किया गया।

राजबल-लड्डन, एक ऐसा कथात्मक जोड़ा, जिन्होंने मंचीय रचनाओं में सामाजिक यथार्थ, नारी चेतना और प्रेम की पीड़ा को स्वर दिया—उनके किस्से सुनकर श्रोताओं की आंखें नम हो उठीं।

वहीं, पीरु खान मिलक और मांगेराम, दो ऐसे नाम रहे जिन्होंने रागिनी को गली-गांव की गलियों से निकालकर अखिल भारतीय पहचान दी। पीरु खान मिलक ने रागिनी में धार्मिक सहिष्णुता और मानवीय रिश्तों का भाव भरकर उसे आत्मिक ऊंचाई दी, जबकि मांगेराम ने किसानी संघर्ष, जातिगत अन्याय और सामाजिक असमानता को रागिनी का विषय बनाकर इसे जनांदोलन का रूप दिया।

मेले में उभरते और वरिष्ठ कलाकारों की प्रस्तुति

इस गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाते हुए देवेंद्र डांगी एंड पार्टी की कलाकार मंडली में पूजा राव, मनीषा मरजानी, ब्रह्मजीत भडाना, नीलम, और डोली शर्मा जैसे कलाकारों ने मंच पर वह जादू बिखेरा कि पूरा पंडाल देर रात तक तालियों से गूंजता रहा।
पूजा राव द्वारा प्रस्तुत पूरणमल का किस्सा और वीरता, संस्कार व देशभक्ति से भरी रचनाएं जनमानस को सीधे छू गईं।

लोक संस्कृति के मंच पर नृत्य और नाट्य का संगम

राजबाला सपेरा एंड पार्टी (जयपुर) की कोरियोग्राफर राजबाला सपेरा ने मंच से बताया कि वे 22 वर्षों से बाराही मेले में लोक संस्कृति की सेवा कर रही हैं। उनके दल में 16 कलाकारों ने कच्ची घोड़ी, घूमर, कालबेलिया, चरी जैसे नृत्य प्रस्तुत कर समां बांध दिया।
खुशबू, रेखा, रवीना, सानिया, पूजा, आदि महिला कलाकारों ने गुजराती, मारवाड़ी, हरियाणवी, हिंदी व पंजाबी गीतों पर नृत्य प्रस्तुत कर विविधता में एकता का संदेश दिया।

नवोदित प्रतिभाओं ने भी बांधा समां

दीक्षा डिग्री कॉलेज और पब्लिक स्कूल सूरजपुर के बच्चों ने गीत-संगीत और नाट्य प्रस्तुतियों से मंच की गरिमा को और ऊँचाई दी।
खुशी कौर और पलक सिंह राजपूत जैसी स्थानीय प्रतिभाओं ने लोकधुनों पर ऐसा प्रदर्शन किया, जिससे यह संदेश स्पष्ट हुआ कि रागिनी का भविष्य सुरक्षित हाथों में है।

शिव मंदिर सेवा समिति के पदाधिकारियों की पहल

शिव मंदिर सेवा समिति के अध्यक्ष धर्मपाल भाटी ने भावुक होते हुए कहा,

“हमारा सपना है कि सूरजपुर का बाराही मेला आने वाले समय में रागिनी की राजधानी के रूप में जाना जाए। हम हरियाणवी लोकधारा को यहीं से वैश्विक मंच पर ले जाना चाहते हैं।”

महामंत्री ओमवीर बैसला ने कहा,

“यह मेला नहीं, एक सांस्कृतिक यज्ञ है, जिसमें हर कलाकार आहुति देता है। यह यज्ञ पीढ़ियों तक रागिनी को जीवित रखेगा।”

मीडिया प्रभारी मूलचंद शर्मा ने कहा,

“सूरजपुर का रागिनी मंच अब ‘रागिनी महाकुंभ’ कहलाने योग्य हो गया है। यहां जो कलाकार आते हैं, वे केवल गीत नहीं गाते, वे इतिहास रचते हैं।”

 

सूरजपुर बाराही मेला-2025, अब केवल एक आयोजन नहीं रहा, बल्कि रागिनी के पुरोधाओं को समर्पित

शिव मंदिर सेवा समिति के कोषाध्यक्ष लक्ष्मण सिंघल ने बताया कि सूरजपुर बाराही मेला-2025, अब केवल एक आयोजन नहीं रहा, बल्कि रागिनी के पुरोधाओं को समर्पित सूरजपुर बाराही मेला-2025 बना लोक परंपरा का तीर्थ और संवेदनशील समाज के निर्माण की प्रयोगशाला बन चुका है। यहाँ की हर रचना, हर ताल और हर स्वर में लख्मीचंद की लय, दयाचंद मयना की चेतना, और मांगेराम की सामाजिक दृष्टि झलकती है।

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