गौतमबुद्धनगर की भूली बिसरी यादें…..
चौधरी शौकत अली चेची
गौतमबुद्धनगर के नोएडा और ग्रेटर नोएडा शहरों की परिकल्पना कांग्रेस सरकार के रहते हुए साकार हुई थी। लगभग 80 के दशक में केंद्र में कांग्रेस की सरकार, उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस की सरकार जिसमें एनडी तिवारी मुख्यमंत्री, मोतीलाल वोरा राज्यपाल थे, उस समय जिला गाजियाबाद था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी के बेटे संजय गांधी चंडीगढ़, पंजाब से एक नक्शा लेकर आए और फिर दिल्ली से बाहर एक औद्योगिक शहर बसाने का सपना साकार हुआ। नोएडा आथॉरिटी के साथ साथ यूपीएसआईडीसी को पैरिस की तर्ज पर नया औद्योगिक शहर बसाने की जिम्मेदारी दी। दिल्ली से हिंडन नदी तक यह शहर तेजी से बसने लगा। इस तरह करीब 10 साल में नोएडा शहर ने अपना वास्तविक रूप लेना शुरू कर दिया। 90 के दशक में फिर नोएडा से भी बेहतर ग्रेटर नोएडा शहर बसाने की ललक सवार हुई और ग्रेटर नोएडा भी बसाया जाने लगा। ग्रेटर नोएडा शहर ने तो नोएडा शहर को भी पीछे छोड दिया और कई तरह के कीर्तिमान स्थापित किए। उत्तर प्रदेश में फिर मायावती के नेतृत्व में बसपा की सरकार आई तो यहां अलग से गौतमबुद्धनगर नाम से जिला ही बना दिया गया। इस गौतमबुद्धनगर जिले में नोएडा, ग्रेटर नोएडा और दादरी को गाजियाबाद से अलग किया गया और कासना, दनकौर और जेवर को बुंलदशहर से अलग किया गया और गौतमबुद्धनगर जिला सृजित हो गया 6 मई-सन 1997 में। ग्रेटर नोएडा और यूपीएसआईडीसी ने कुलेसरा से लेकर सूरजपुर तक और फिर कासना तक औद्योगिक इकाईयों का शहर बसा डाला। वर्ष 2000 के बाद ताज एक्सप्रेस-वे नाम से तीसरा नया औद्योगिक शहर बसाने के लिए मुख्यमंत्री मायावती ने नींव डाली। पहले ताज एक्सप्रेस-वे अथॉरिटी का कार्यालय बरौला नोएडा में चलता था और जिसे फिर ग्रेटर नोएडा के बीटा- वन सेक्टर में लाया गया।
इसी बीच ग्रेटर नोएडा से लेकर आगरा तक ताज एक्सप्रेस-वे बनाया जाना शुरू हुआ। आखिर फिर इस ताज एक्सप्रेस-वे का नाम बदल कर यमुना एक्सप्रेस-वे किया गया और शहर बसाने का जिम्मा साधे हुए अथॉरिटी का नाम भी ताज एक्सप्रेस-वे से बदल कर यमुना एक्सप्रेस-वे अथॉरिटी कर दिया गया। ग्रेटर नोएडा के बीटा वन से जहां आज यमुना एक्सप्रेस-वे अथॉरिटी का कार्यालय चल रहा है यहां पर लाया गया। यमुना एक्सप्रेस-वे रोड का उद्घाटन वर्ष 2011 में हुआ, एक्सप्रेस-वे के साथ साथ यह तीसरा शहर यीडा सरपट दौडना शुरू हो गया हैं। फॉर्मूला वन रेसिंग की बात हो या फिर जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट की बात हो कई मायनों में नए शहर यीडा ने अब नोएडा और ग्रेटर नोएडा शहरों को पीछे छोड दिया हैं। वहीं अब दादरी से हापुड और सिकंद्राबाद तक अब चौथा नया शहर न्यू नोएडा नाम बसाना जाना भी तय है। इन नए शहरों को बसाने में कई गहरे जख्म देखने को मिले। घोडी बछेडा और भट्टा पारसौल किसान गोली कांड का कौन भूल सकता है। इसके अलावा टकराव की नौबत गांव हल्द्वानी और कुलेसरा में किसानों और पुलिस प्रशासन के बीच आई। जिसमें मुख्य मुद्दा किसानों की आबादी को लेकर था, अथॉरिटी को अपने कदम कुछ पीछे हटाने पड़े। दिलचस्प यह भी है, कि जमीन अधिग्रहण में 5 प्रतिशत, 6 प्रतिशत , 10 प्रतिशत आबादी का नियम पहले नहीं था। गांव हल्दौना तुगलपुर मे एक किसान की खेत में आबादी होने पर प्राधिकरण ने ढाई प्रतिशत आबादी का प्लॉट आवंटन कर किसान को देकर नया नियम लागू कर दिया, लेकिन गांव हल्दोना में आबादी को लेकर प्राधिकरण पुलिस प्रशासन एवं किसानों में भयंकर टकराव हुआ जिसमें प्राधिकरण को बैकफुट पर जाना पड़ा। सरकारें बदलती गई अनेक तरह के नियम लागू होते गए अंसल एवं एनटीपीसी एवं रेलवे जेवर एयरपोर्ट के खिलाफ कई कई महीने किसानों ने आंदोलन किया जिसमें विपक्षी पार्टियों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई लेकिन, किसानों को कामयाबी नाम मात्र ही मिली। ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी पर पिछले लगभग डेढ़ महीने से 10 सूत्रीय मांगों को लेकर किसान आंदोलन कर रहे हैं जिसमें गौतमुद्धनगर के सभी किसान संगठन तथा विपक्षी पार्टियों के नेता शामिल हैं फिर भी अथॉरिटी एवं सरकार ने शांति प्रिय धरने पर बैठे किसानों को संगीन धाराओं में मुकदमे कर जेल भेज दिया है। आखिर अन्नदाता की कौन सुनेगा यह सिलसिला कब तक चलता रहेगा, अंदाजा लगाना मुश्किल है। जमीन अधिग्रहण या खेती किसानी के माध्यम से किसानों को अपना पूरा हक नहीं मिलता। किसानों के बच्चों को रोजगार नहीं, पिछले लगभग 40 सालों से अपने ही जिले में किसान दमन झेल रहा है। आखिर कौन करेगा इस पर विचार अन्नदाताओं को छोड़कर सबका हो रहा है, बेड़ा पार। इन गंभीर बातों पर बुद्धिजीवी जागरूक लोगों को आत्मचिंतन करने की जरूरत है।
लेखकः- चौधरी शौकत अली चेची, भाकियू (बलराज) के राष्ट्रीय महासचिव हैं।