फोर्टिस हॉस्पिटल नोएडा के डॉक्टरों ने दिया मरीज को नया जीवन
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फोर्टिस हॉस्पिटल, नोएडा में रोबोटिक सर्जरी से 59 वर्षीय व्यक्ति के शरीर से सफलतापूर्वक निकाला 12×11.5×8 सेंटीमीटर आकार का विशाल एड्रेनल ट्यूमर
Vision Live/ Noida
फोर्टिस हॉस्पिटल, नोएडा में रोबोटिक सर्जरी के ज़रिए एक 59 वर्षीय व्यक्ति के शरीर से एक बहुत बड़ा तरबूज के आकार का एड्रेनल ट्यूमर निकालने में चिकित्सकों को बड़ी सफलता मिली है। यूरोलॉजी विभाग के एडिशनल डायरेक्टर डॉक्टर पीयूष वर्ष्णेय के नेतृत्व में सर्जिकल टीम ने अत्याधुनिक ‘दा विंची रोबोटिक सिस्टम’ की मदद से 12 x 11.5 x 8 सेंटीमीटर के बड़े ट्यूमर को मरीज के शरीर से निकाला।
डॉ. वर्ष्णेय ने बताया, कि “मरीज में किसी तरह के कोई लक्षण नहीं दिखाई दे रहे थे। रूटीन अल्ट्रासाउंड के दौरान संयोग से इस ट्यूमर का पता चल गया। इसे एड्रेनल इंसिडेंटलोमा कहते हैं। जब इस तरह के ट्यूमर का आकार 4 सेंटीमीटर से बड़ा हो जाता है तो अक्सर शल्य चिकित्सा (सर्जरी) की ज़रूरत पड़ती है। इस तरह के ट्यूमर में रक्त वाहिकाओं का जाल बिछा होता है और ये स्प्लीन, पैंक्रियाज़ और किडनी के करीब होने की वजह से सर्जरी को बेहद चुनौतीपूर्ण बना देते हैं। दा विंची रोबोटिक सिस्टम की मदद से हम बहुत ही कम रक्तस्राव के साथ दो घंटे से कम समय में पूरा ट्यूमर निकालने में सफल रहे। ऑपरेशन के दो दिन बाद ही मरीज को अस्पताल से छुट्टी भी दे दी गई।”
डॉ. वर्ष्णेय ने बताया कि एड्रेनल ट्यूमर, एड्रेनल ग्रंथि पर होने वाली वृद्धि है। यह ग्रंथि किडनी के ऊपर पेट के अंदर काफी गहराई में स्थित होती है और कई महत्वपूर्ण अंगों के पास स्थित होती है। 4 सेंटीमीटर से अधिक आकार के लगभग 70% एड्रेनल ट्यूमर आमतौर पर बिनाइन (गैर-घातक) होते हैं, जबकि बाकी के 30% मलिग्नेंट (घातक/कैंसरयुक्त) होते हैं। यह ट्यूमर अपेक्षाकृत आम है और 70 साल या उससे ज्यादा आयु के लगभग 7% लोगों में पाया जाता है। इसलिए, उन ट्यूमर को निकालना ज़रूरी होता है जो 4 सेंटीमीटर से बड़े हों और इन्हें बायोप्सी के लिए भेजा जाना चाहिए। हालांकि, ट्यूमर होने का सही कारण ज्ञात नहीं है पर कभी-कभी इनके विकसित होने में कुछ आनुवंशिक कारण भी भूमिका निभाते हैं।
फोर्टिस हॉस्पिटल नोएडा के ज़ोनल डायरेक्टर मोहित सिंह ने बताया, कि “रोबोट से की जाने वाली सर्जरी में पारंपरिक तरीकों के मुकाबले कई फ़ायदे हैं। इसमें संक्रमण का खतरा कम होता है, सर्जरी के दौरान खून कम बहता, दर्द कम होता है, चीरे के निशान छोटे होते हैं, सर्जरी के बाद मरीज को हॉस्पिटल में कम दिन रहना पड़ता है और रिकवरी भी जल्दी होती है। इससे जहां सर्जरी अपेक्षाकृत सुरक्षित होती है, वहीं सर्जरी के नतीजे भी पहले से बेहतर प्राप्त होते हैं। इसीलिए रोबोटिक सर्जरी विभिन्न चिकित्सा विशेषज्ञों के लिए जटिल मामलों में पसंदीदा विकल्प बन गई है।’
डॉ. वार्ष्णेय ने अपने सहयोगियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए,कहा, कि “यह सफलता अत्याधुनिक तकनीक की महत्वपूर्ण भूमिका और हमारी मेडिकल टीम के अटूट समर्पण का प्रमाण है। हमारी टीम में डॉ. रितेश और डॉ. मयंक, डॉ अनुतम और डॉ सुनेवा की अगुवाई में एनेस्थीसिया टीम और सर्जरी के लिए मरीज की तैयारी सुनिश्चित करने के लिए डॉ. अनुपम शामिल थे।