आर्य सागर खारी
दोषारोपण में मनुष्य से कुशल कोई हो ही नहीं सकता। यही कारण है आज ईश्वर के बाद सर्वाधिक यदि किसी को प्रतिकूल अनपेक्षित परिस्थिति में कोसा जाता है तो वह समय ही है। समय को कोसना सर्वाधिक सहज सरल प्रतीत पड़ता है, समय को अपनी सफाई देने का समय भी नहीं दिया जाता जिसके जो मन में आए वही समय पर अभियोग चला देता है। जीवन अच्छा सुखद चल रहा है तो समय अच्छा चल रहा है जरा सा सुख ने मुख मोडा तो समय पलक झपकते ही खराब हो जाता है।
ऊंट पर बैठे इंसान को भी कुत्ता काट ले तो तो इसमें उस व्यक्ति की असावधानी को नजरअंदाज करते हुए साथ ही कुत्ते का कोई दोष नहीं इसमें भी समय का ही दोष बताया जाता है। जीवन की प्रत्येक अच्छी व बुरी स्थिति के लिये मानवीय इच्छा प्रयास आचरण चिंतन को गौण ,समय को मुख्य मान लिया जाता है। कुछ तो अच्छे समय की प्रतीक्षा में पूरा जीवन ही गुजार देते हैं, कुछ इतने उत्साही संतुष्ट होते हैं उन्हें वर्षों दशकों की समयावधि भी पल भर के समान प्रतीत होती है। किसी किसी को एक पल भी एक सदी के समान लगने लगता है।
ऐसे व्यक्ति से आप पूछे कि जीवन में क्या चल रहा है तो कहेंगे बस समय कट रहा है जबकि वस्तुत: ना समय कटता है ना समय किसी को काटता है प्रत्येक बनी हुई वस्तु जो ऊर्जा या द्रव्यमान से बनी है उत्पन्न होती है और अपने कारण में विलीन हो जाती है। प्रकट से अप्रकट होना अप्रकट से प्रकट होना कारण रूप द्रव्य का का निज स्वभाव है।
समय को लेकर ऐसी उपरोक्त विभिन्न मान्यताएं धारना आम सांसारिक व्यक्तियों में प्रचलित है।यही कारण है समय को लेकर सर्वाधिक कहावतें रची गई है।
आखिर यह समय है क्या? क्या इसका कोई रंग रूप भार आकार है। क्या यह महज मानवीय मस्तिष्क का भ्रम मात्र है कुछ यूनानी दार्शनिकों ने इसके विषय में ऐसी ही मान्यताएं दी थी।
समय को लेकर हम पूर्वी व पश्चिमी दार्शनिकों की मान्यताओं को यहां उल्लेखित करेंगे ।
पूर्वी दार्शनिकों में वैदिक दर्शनों के ऋषियों की गणना हम करते हैं जिसमें समय को लेकर महर्षि कणाद व महर्षि व्यास के विचार हमें क्रमशः वैशेषिक व योग दर्शन में मिलते हैं।
महर्षि कणाद ने समय को एक व्यवहारिक बुद्धिकृत द्रव्य माना है। महर्षि कणाद के अनुसार समय ना कभी उत्पन्न होता है न नष्ट होता है लेकिन यह किसी परमाणुओं से भी मिलकर नहीं बना है। यहां यह स्पष्ट करना आवश्यक होगा योग, सांख्य व वैशेषिक दर्शन में वर्णित परमाणु समुदाय आधुनिक विज्ञान में जो परमाणु का परिमाण हैं उससे भी शुक्ष्मतम स्तर के है वैदिक दर्शनों का परमाणु आधुनिक पार्टिकल फिजिक्स सूक्ष्मतम एलिमेंट्री फंडामेंटल पार्टिकल क्वार्क इलेक्ट्रॉन आदि से भी सूक्ष्म है।
वही महर्षि व्यास ने काल के आधारभूत गुण धर्म की व्याख्या ना करके काल के परिमाण को योग दर्शन के तीसरे पाद में वर्णित किया है। महर्षि व्यास के अनुसार छोटा से छोटा द्रव्य परमाणु कहा जाता है वह छोटा से छोटा परमाणु पुर्व देश को छोड़कर उत्तर प्रदेश को प्राप्त करें इस एक आवृत्ति में उसको लगने वाला काल ‘एक क्षण ‘कहलाता है ।
उल्लेखनीय होगा आधुनिक समय में एक सेकंड या उससे छोटे काल विभाग की गणना भी इलेक्ट्रॉन के क्रमशः कंपन या विकरित ऊर्जा के आधार पर ही की जाती है। महर्षि व्यास के काल के परिमाण गणना की विधि को आधुनिक फिजिक्स समय के अंतर्राष्ट्रीय मानक ब्यूरो ने स्वीकार प्रयुक्त किया है अर्थात एक सेकंड वह समयअवधि मानी गई है जिसमें शिजियम 133 नामक तत्व के परमाणु में उसका इलेक्ट्रॉन द्वारा दो विभिन्न ऊर्जा स्तर के बीच परस्पर 9 अरब 19 करोड़ 26 लाख 31 हजार 770 बार विकरित ऊर्जा की आवर्ती हैं।
हमने पूर्व में कहा है ऋषियों द्वारा व्याख्येय वैदिक दर्शनों का परमाणु इलेक्ट्रॉन से भी सूक्ष्म है और आधुनिक ऑटो सेकंड फिजिक्स के अनुसार एक इलेक्ट्रॉन को किसी एक परमाणु या अणु को छोड़कर दूसरे अणु या परमाणु को ग्रहण या एक स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर गति करने में जितना समय लेता है उस समय को न्यूनतम एक ऑटो सेकंड की इकाई से गुणीत करके मापा जाता है अर्थात सभी रासायनिक या जैविक प्रक्रिया में इलेक्ट्रॉन द्वारा अपने मूल परमाणु या अणु से बिछुड़ने या मिलने में लगने वाला समय वाला समय 40 से लेकर 150 ऑटो सेकंड औसत होता है। कितना सूक्ष्म है यह ऑटो सेकंड परिमाण की दृष्टि से ।इसे समझते हैं,एक ऑटो सेकंड एक सेकंड के अरबवें हिस्से और फिर उस हिस्से के अरबवें हिस्से के बराबर होता है आप एक ऑटो सेकंड की कल्पना नहीं कर सकते यह कितना सूक्ष्म है क्या आप यह साहस कर सकते हैं कल्पना कर सकते हैं महर्षि व्यास द्वारा वर्णित क्षण कितना सूक्ष्म होगा काल के परिमाण में ।
पुनः उल्लेखनीय होगा वर्ष 2023 का फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार इलेक्ट्रॉन की गति व उसमें लगने वाले समय से जुड़ी हुई ऑटो सेकंड फिजिक्स पर प्रायोगिक कार्य करने के लिए ही मिला था।
महर्षि व्यास ने समय के मूल गुणधर्म स्वभाव पर कोई प्रकाश नहीं डाला लेकिन समय व सृष्टि के अस्तित्व परस्पर इसके संबंध पर बहुत ही रोचक तथ्य उद्घाटित किए हैं उन तथ्यों को फिर किसी अन्य लेख में व्यक्त किया जाएगा कैसे इस समूचे ब्रह्मांड को उन्होंने भूत व भविष्य काल को समय के तीसरे विभाग वर्तमान के एक क्षण की सत्ता में समटते हुए जगत के अस्तित्व को एक क्षण में ही समेट दिया और और उनका यह सिद्धांत आधुनिक ब्लैक होल फिजिक्स नोबल पुरस्कार विजेता भौतिक वैज्ञानिक रोजर पेनरोज के समय के शंकु डायग्राम ब्लैक होल फिजिक्स से संबंधित रिचार्ज से जुड़ा हुआ है।
समय का स्थुल व शुक्ष्म परिमाण का आधार किसी भी द्रव्य कण या विराट पिण्ड की गति ही है चाहे स्थुल स्तर पर पृथ्वी का सूर्य के चारों ओर परिक्रमा हो या ऋतुओं का परिवर्तन जहां परिवर्तन क्रिया है वहां हम समय का व्यवहार प्रयोग में लाते हैं पदार्थ आंखों से प्रत्यक्ष है लेकिन मूल विवेचना यही है समय जो प्रत्यक्ष का विषय नहीं है आखिरी यह है क्या अब जरा पश्चिमी जगत के अर्थात यूरोप के दार्शनिकों वैज्ञानिकों के जगत में चलते हैं।
जर्मनी के महान दार्शनिक कांट ने कहा था जिन्होंने जर्मनी में नारा दिया था कि ‘प्रत्येक चीज को जाना जा सकता है चाहे वह मूर्त हो या अमूर्त’ और उनका दार्शनिक चिंतन जर्मनी की वैज्ञानिक तकनीकी प्रगति में सहयोगी बना अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे वैज्ञानिकों ने उनके चिंतन से प्रेरणा ली लेकिन मरते समय कांट भी यह कह गए की -आकाश, समय और ईश्वर इन तीनों को पूरी-पूरी तरह कभी भी नहीं जाना जा सकता।
कांट भी समय के सामने आत्म समर्पण कर गये लेकिन कांट समय का बेहद सम्मान अर्थात पालन करते थे उनके विषय में कहा जाता है- अपने पूरे जीवन में उन्होंने 160 किलोमीटर से अधिक भौगोलिक दायरे को पार नहीं किया एक कमरे में पूरा जीवन अपने गहन दार्शनिक अध्ययन चिंतन में बता दिया लेकिन जब वह सर्दियों में शाम की सहर अर्थात इवनिंग वॉक के लिये निकलते थे तो उनके भ्रमण के समय में एक सेकंड की भी चूक नहीं होती थी नियत समय पर भ्रमण से लौटते थे वह समय के इतने पाबंद थे उन्हें देखकर आसपास के घरों की महिलाएं गृहिणी अपनी घड़ियों के समय को दुरुस्त करती थी।
“समय के बारे में पांचवी सदी के सैंट अगस्टाइन ने यह प्रश्न किया था वास्तव में समय क्या है? अगर कोई मुझे नहीं पूछता है तो मैं जानता हूं कि यह क्या है लेकिन अगर प्रश्नकर्ता को में समय के सम्बन्ध में समझाना चाहूं तो मुझे इस बारे में कुछ भी नहीं मालूम”
ऐसा ही कुछ समय की प्रकृति के विषय में नोबेल पुरस्कार विजेता प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री रिचर्ड फिनमैन ने कहा था जो इलेक्ट्रॉन फोटोंन जैसे तत्वों के परस्पर टकराव उनसे उत्पन्न होने वाले नवीन कणो को अपने सरल रेखा चित्रों से समझाने के लिए विश्व विख्यात थे । उनके विषय में कहा जाता है पृथ्वी पर पैदा हुए अब तक सभी मनुष्यों में इलेक्ट्रॉन की प्रकृति स्वभाव को यदि किसी व्यक्ति ने सर्वाधिक जाना समझा है तो वह रिचर्ड फिनमैन है।
लेकिन समय के सामने उन्होंने भी हाथ जोड़ लिए उन्होंने कहा था हालांकि की हम भौतिक शास्त्री रोजाना काल यानी समय को लेकर कार्य करते हैं अपनी गणनाओं में भी इसे स्थान देते हैं लेकिन मुझे यह न पूछे कि यह क्या है इसके बारे में सोचना या बताना बहुत ही कठिन है।
समय के संबंध में जब भौतिक शास्त्रियों के विचारों को हम उल्लेखित कर रहे हैं तो न्यूटन को हम नजरअंदाज नहीं कर सकते।
न्यूटन के अनुसार समय कभी उत्पन्न व नष्ट नहीं होता ना ही यह किसी प्राकृतिक घटना या ब्रह्मांड की क्रिया से जुड़ा हुआ है ब्रह्मांड नहीं भी रहेगा तब भी समय का अस्तित्व रहेगा साथ ही समय की एक सार्वत्रिक घड़ी है । जिसका एक सेकंड पूरे ब्रह्मांड के लिए एक सेकंड जितना ही परिणाम रखता है।
न्यूटन ने परम आकाश व परम समय की सत्ता का सिद्धांत स्थापित किया अर्थात कोई पिंड ग्रह उपग्रह नक्षत्र द्रव्य ऊर्जा हो या न हो आकाश और समय का अस्तित्व एक जैसा बना रहेगा।
लेकिन समय व अंतरिक्ष को लेकर न्यूटन के यह विचार 20वीं सदी के शुरुआती दशकों में ही ध्वस्त हो गए सैद्धांतिक ही नहीं प्रायोगिक स्तर पर भी और उन्हें ध्वस्त करने वाला जीनियस था अल्बर्ट आइंस्टीन।
वह हथियार जिसका सहारा लेकर उन्होंने न्यूटन के समय अंतरिक्ष के संबंध में विचारों को प्रचलन से बाहर किया वह सापेक्षता का सामान्य सिद्धांत कहलाता है।
आइंस्टीन ने कहा आकाश में किसी घटना से इतर समय का कोई अस्तित्व नहीं है। आकाश और समय एक दूसरे से जुड़े हुए हैं समय को आकाश में आकाश को समय में रूपांतरित किया जा सकता है। आकाश के तीन आयाम में समय का चौथा आयाम मिलकर इस ब्रह्मांड को आधार देते हैं।
न्यूटन के अनुसार यदि ब्रह्मांड के क्रियाकलापों को समय में मापने के लिए कोई घड़ी बनाई जाए तो एक घड़ी ही पूरी ब्रह्मांड की क्रियाकलापों की एक ही समय अंतराल में उनकी व्याख्या करेगी लेकिन आइंस्टीन ने कहा जब आकाश ही निरपेक्ष नहीं है सापेक्ष है तो विभिन्न गति से सापेक्षिक आकाशों में होने वाली होने वाली खगोलीय घटनाओं को एक ही घड़ी से नहीं मापा जा सकता अर्थात उनका वर्णन नहीं किया जा सकता।
समय अलग-अलग स्थान अलग-अलग वेग से चलने वाले गृह उपग्रह चांद सूरज तारों पर अलग-अलग गति से बहता है। अर्थात 100 किलोमीटर प्रति घंटा से चलती हुई ट्रेन में समय मापने वाली घड़ी प्लेटफार्म पर खड़े यात्री के पास की घड़ी दोनों एक ही गति से नहीं चलेंगी जबकि न्यूटन मानते थे ट्रेन में यात्रा कर रहे यात्री व प्लेटफार्म पर खड़े व्यक्ति के लिए समय एक ही होगा किसी घटना को वह एक ही समय अंतराल में मापेंगे लेकिन आइंस्टीन ने कहा दोनों ही व्यक्तियों के लिए समय अलग-अलग तरीके से गति करेगा यह बात अलग है हम अपने सहज मानवीय बोध में इस समय की गति के अंतर को अनुभव ना कर पाए साथ ही आइंस्टीन ने कहा सूरज पर रखी हुई घड़ी पृथ्वी पर रखी हुई घड़ी की अपेक्षा धीमी गति से चलेगी अर्थात भारी चीजों के पास समय की गति धीमी हो जाती है आइंस्टीन के समय और अंतरिक्ष के संबंध में क्रांतिकारी विचारों को समझने में पश्चिम के वैज्ञानिकों को दशको लग गए किसी ने इन सिद्धांतों को वैज्ञानिक नहीं माना तो किसी ने इन्हें कोरा दार्शनिक चिंतन माना लेकिन जैसे-जैसे एक्सपेरिमेंटल फिजिक्स ने प्रगति की आइंस्टीन के सिद्धांत सिद्ध होते गए लेकिन मूल प्रश्न आज भी यही बना हुआ है यह समय है क्या ?आइंस्टीन ने भी समय के घटना सापेक्ष गुणधर्मों को समझाया जैसे प्रकाश की रफ्तार पर समय ठहर जाता है या ब्लैक होल में समय का व्यवहार ही नहीं होता लेकिन समय के मूल गुणधर्म निज स्वभाव को आइंस्टीन भी नहीं समझ पाये।
समय के बारे में आइंस्टीन ने एक वैज्ञानिक कॉन्फ्रेंस में इतना ही कहा था समय वह है जो सभी घटनाओं को एक साथ होने से रोकता है।
समय पर पश्चिमी दर्शन व विज्ञान के चिंतन की विवेचना के क्रम में हम इस लेख के अंत में अंतिम वैज्ञानिक जिन्हें आइंस्टीन का उत्तराधिकारी भी माना जाता था आइंस्टीन की स्पेशल व जनरल रिलेटिविटी का प्रयोग उन्होंने पूरी कुशलता से ब्रह्मांड विज्ञान व ब्रह्मांड के मॉडल, ब्लैक होल के नेचर को समझने में किया है। स्टीफन हॉकिंग के समय विषयक सिद्धांतों पर थोड़ी चर्चा करते हैं स्टीफन हॉकिंग 20वीं सदी के सर्वाधिक लोकप्रिय वैज्ञानिक विज्ञान लेखक रहे समय के बारे में उन्होंने पुस्तक लिखी है ‘ए ब्रीफ ऑफ़ हिस्ट्री ऑफ टाइम’।
उन्होंने समय के तीन तीरों की चर्चा की है समय का एक तीर् मानवीय है जिसे हम अपनी मानवीय चेतना में अनुभव करते हैं। यह सिद्धांत दार्शनिकों के मानव चेतना के सिद्धांत से मिलता जुलता है जिसकी यह मान्यता है की समय का अस्तित्व मानव चेतना के अस्तित्व पर ही टिका हुआ है । स्टीफन हॉकिंग के अनुसार समय भविष्य से वर्तमान वर्तमान से भूतकाल की ओर बढ़ता है लेकिन इसके तीर की दिशा सदैव भविष्य की ओर होती है। जिसके तहत हम केवल भूतकाल की घटना की ही स्मृति होती है हम भविष्य की केवल कल्पना ही कर सकते हैं। पुनः उल्लेखनीय होगा कि योग दर्शन में भी महर्षि व्यास ने समय का ऐसा ही विभाजन किया है लक्षण व अवस्था परिमाण जैसी शास्त्रीय पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग करते हुए।
स्टीफन हॉकिंग ने समय का दूसरा तीर उन्होंने ब्रह्मांड के विस्तार की दिशा में माना है अर्थात ब्रह्मांड जिस दिशा में फैल रहा है समय का तीर भी इस ओर बढ़ रहा है।
समय का तीसरा तीर उन्होंने इस सिद्धांत को लेकर माना है कि ब्रह्मांड व्यवस्था से अव्यवस्था की ओर जा रहा है पहले यह बिग बैंग की घटना के दौरान एक व्यवस्थित विलक्षण बिंदु पर सिमटा हुआ था व्यवस्थित इस दृष्टि से उन्होंने माना है ब्रह्मांड को बनाने वाली सामग्री के कण एक ही बिंदु पर समाहित थे अनंत घनत्व अनंत तापमान परफिर उसमें विस्फोट हुआ और निरंतर ऊर्जा द्रव्यमान सूक्ष्म कण बने ग्रह तारे आकाशगंगाए बनी और वह आकाशगंगा अव्यवस्थित होकर एक दूसरे से दूर भाग रही है जैसे-जैसे ब्रह्मांड में अव्यवस्था बढ़ रही है समय का यह तीसरा तीर भी अव्यवस्था की ओर अग्रसर है लेकिन यहां तक तो ठीक था स्टीफन हॉकिंग ने काल्पनिक समय की सत्ता को भी माना है सचमुच कितना अजीब है व्यवहारिक बौद्धिक महान महर्षि कणाद प्रौक्त समय को भी अभी तक दार्शनिक वैज्ञानिक समझ नहीं पाए हैं स्टीफन हॉकिंग ने काल्पनिक समय का भी अपने कॉस्मोलॉजी से संबंधित सिद्धांतों में प्रयोग किया है उन्होंने निर्देशांक ज्यामिति का प्रयोग करते हुए x अक्ष को वास्तविक समय माना है वही भूत भविष्य वर्तमान काल का समय है लेकिन वाई अक्ष को काल्पनिक समय के रूप में प्रयोग किया है अर्थात हम जिस ब्रह्मांड में रह रहे हैं हम ब्रह्मांड को एक दिशा में प्रसारित होते हुए देख रहे हैं हमें ब्रह्मांड के तमाम परिवर्तन समय की सापेक्ष परिवर्तित होते दिखाई देते हैं जिसकी दिशा भविष्य की ओर अग्रसर है लेकिन इस ब्रह्मांड को देखने का एक दूसरा नजरिया भी है जिसमें यह ब्रह्मांड अव्यवस्था से व्यवस्था की ओर अपने मूल बिंदु की ओर गति कर रहा है अभी तक इसकी प्रयोग से पुष्टि नहीं की जा सकती है ब्रह्मांड की एक गति काल्पनिक समय में हो रही है स्टीफन हॉकिंग के अनुसार वास्तविक समय में जहां ब्रह्मांड में एक मेज से गिरकर कप टूट कर टुकड़ों में चूर-चूर हो रहा है तो उसी ब्रह्मांड में वह कप पुनः उसके टुकड़े जुड़कर पुनः कप बनकर मेज पर स्थापित हो रहा है। इमेजिनरी टाइम की इस अवधारणा को अपनी पुस्तक में ऐसे समझाया है।
अब तक जितना हमने समय के विषय में पढ़ा सुना समझा है समय को समझना इतना आसान नहीं है समय के वास्तविक यथार्थ सत्ता को तो सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान अनंत परमात्मा ही जान सकता है मनुष्य की आत्मा अल्पज्ञ है वह अपने परिश्रम व परमात्मा की सहायता से समय के स्वभाव आधारभूत गुणधर्म को सीमित अंशों में ही समझ सकता है उपनिषद काल के ऋषियों से लेकर वैदिक दर्शनों के ऋषियों व आज के भौतिक वैज्ञानिकों ने फिर भी समय को जितना समझा है वह प्रशंसनीय है प्रचारणीय है लेकिन समय को लेकर एक सामान्य दार्शनिक वैज्ञानिक सिद्धांत अभी तक दार्शनिकों वैज्ञानिकों के जगत में स्थापित नहीं हो सका है लेकिन समय को लेकर सभी एक स्वर में इस बिंदु पर सहमत हैं की समय को इस जगत में होने वाले परिवर्तनों द्वारा ही सहज रुप से निर्वाचित किया जा सकता है समय की इस अवधारणा को मानने वाले वैज्ञानिकों दार्शनिकों को संबंधवादी कहा जाता है जिसमें महान महर्षि कणाद से लेकर स्टीफन हॉकिंग तक शामिल है।
समय को भले ही ऑटो सेकंड जैसे अकल्पनीय सूक्ष्म स्तर तक माप लिया किया गया है लेकिन अभी इसे भारतीय वैदिक दर्शनों में वर्णित क्षण के स्तर पर नहीं मापा गया है।
समय को मापना भविष्य में आसान हो सकता है और भी अधिक सूक्ष्म स्तर पर लेकिन इसके आधारभूत गुणधर्म को समझा जाना अति जटिल है मानवीय मेधा के सापेक्ष दार्शनिक दृष्टिकोण से कुछ भी हो आम साधारण व्यक्ति के लिए तो यह अच्छा बुरा दुखद सुखद ही रहेगा जो कभी काटने से भी ना कटे तो कभी पानी की तरह बह जाए समय की पूंछ उसके हाथ ना आए। उसके लिए घड़ी ही समय पर्याय रहेगी उसके लिए कोई फर्क नहीं पड़ता कि घड़ी समय नहीं है समय की माप का केवल एक यंत्र है।
हां लेकिन आज से समय को कोसना बंद करें समय निर्दोष है शाश्वत है पवित्र है क्योंकि वह निरअवयव है जगत कर्ता जगत शिल्पी परमपिता परमेश्वर सर्व अंतर्यामी सर्वव्यापक ईश्वर भी समय से व्यवहार करता है।
मुख्य अर्थों में उपासनीय तो ईश्वर है लेकिन समय व्यवहारनीय है समय का हम पालन करें समय से अनुशासित दिनचर्या जीवनचर्या में हम जिए यही समय की उपासना है। समय का जिन्होंने सम्मान किया है सदुपयोग किया है जिन्होंने समय का अतिक्रमण नहीं किया है समय ने उन सभी को महान बनाया है।
लेखक:– आर्य सागर खारी आरटीआई कार्यकर्ता, चिंतक और विचारक हैं।