बलिदान, त्याग और तपस्या का प्रतीक है , ईद उल अजहा  

, ईद उल अजहा 
बलिदान, त्याग और तपस्या का प्रतीक है , ईद उल अजहा

बकरीईद मनाने का मुख्य उद्देश्य बुद्धिजीवियों के अलग-अलग मतों द्वारा दर्शाया गया है। आइए चंद बिंदुओं को समझने की कोशिश करते हैं (ईद उल अजहा )मुस्लिम समुदाय का महत्वपूर्ण त्योहार का क्या ऐतिहासिक महत्व है:—

 

चौधरी शौकत अली चेची

भारत में भी त्योहारों की परंपराएं सदियों से विश्व में चली आ रही हैं जिससे  बलिदान, त्याग, संस्कृति पवित्र धर्म ग्रंथों का उल्लेख भाईचारा एकता तरक्की का संदेश  मिलता है। इनमें  बकरीईद (ईद उल अजहा ) भी  त्योहारों में से एक है , जो इस बार 29/6/ 2023 देश में मनाया जा रहा है । बकरीईद मनाने का मुख्य उद्देश्य बुद्धिजीवियों के अलग-अलग मतों द्वारा दर्शाया गया है। आइए चंद बिंदुओं को समझने की कोशिश करते हैं (ईद उल अजहा )मुस्लिम समुदाय का महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। इस्लाम धर्म की मान्यता अनुसार पवित्र रमजान माह की समाप्ति के 70 दिन बाद इस्लामी कैलेंडर का 12 वा आखरी महीना होता है, वास्तविक चांद देखने  पर 10 तारीख को ईद मनाई जाती है। पैगंबर हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने अपने इकलौते बेटे हजरत इस्माइल अलैहिस्सलाम को अल्लाह की राह में कुर्बान किया था, इसी उद्देश्य से (ईद उल अजहा )का त्यौहार मनाया जाता है।

चौधरी शौकत अली चेची
चौधरी शौकत अली चेची

बकरीद के दिन मस्जिदों व ईदगाह मे नमाज अदा कर सभी के लिए अमन चैन तरक्की भाईचारे की अल्लाह पाक से दुआ मांगी जाती है। ईद के नमाज के बाद कुर्बानी का सिलसिला शुरू होता है। कुर्बानी का गोश्त शरीयत के मुताबिक रिश्तेदारों व दोस्तों व गरीबों में तीन हिस्सों में तक्सीम किया जाता है । कुर्बानी के लिए जानवरों को सालों पहले पाल पोस कर बड़ा किया जाता है , उनकी देखरेख सुचारू रूप से होती है, जो पूरी तरह से स्वस्थ होना चाहिए तथा जानवर में परिवार के प्रति प्यार की भावना होनी चाहिए। कुछ मुस्लिम महीने पहले कुर्बानी के लिए अच्छे स्वस्थ जानवर ऊंची कीमत में खरीद कर लाते हैं ,जिनमें मुख्य बकरा दुंबा भैंसा ऊंट होते हैं । इनमें प्रतिबंधित जानवरों की कुर्बानी जायज नहीं है। जानवरों की कुर्बानी देना जायज है या नाजायज यह सिलसिला सदियों से चला आ रहा है। कुछ लोगों को इस पर एतराज भी होता है, लेकिन लाखों जानवर व पंछी व मछली हर रोज मीट में इस्तेमाल के लिए काटे जाते हैं । जंगल का शेर व लकड़बग्घा व भेड़िया आदि जानवरों को खा कर ही जिंदा रहते हैं तथा भूख प्यास बीमारी आदि के कारण मृत्यु होना गंभीर विषय है ,उस पर एतराज कौन करता है? मानव की उत्पत्ति होने के उपरांत जानवरों को खाकर ही जिंदा रहते थे ,आग का ज्ञान नहीं था तो कच्चा मांस ही खाया जाता था ,इतिहास में ऐसा बताया गया है ।इस्लाम धर्म की मान्यता के अनुसार आखरी पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब दुनिया में तशरीफ लाए उनके आने से पहले इस्लाम की लोकप्रियता ज्यादा नहीं थी।  हजरत मोहम्मद साहब ने पूर्ण रूप धारण परंपराएं तरीके से दुनिया में फैलाई। मोहम्मद साहब से पहले 1 लाख 24 हजार पैगंबर धरती पर आए। इन्हीं में से हजरत इब्राहिम थे, इन्हीं के दौर से कुर्बानी का सिलसिला शुरू हुआ।इब्राहिम लगभग 80 साल की उम्र में पिता बने, उनके इकलौते बेटे  इस्माइल का जन्म हुआ । हजरत इब्राहिम अपने बेटे से बेइंतहा प्यार करते थे। हजरत इस्माइल की मां  इब्राहिम को पूरा सम्मान देती थी। हर सुख दुख में साथ खड़ी रही, उस समय कबीलाई का दौर था।  इब्राहिम व  हाजरा का जीवन अल्लाह के नियम पर चलकर कठिन परिस्थितियों से गुजरा। अल्लाह ताला के हुक्म के अनुसार मक्का के नजदीक रेगिस्तान में हजरत हाजरा , हजरत इस्माइल को पैगंबर इब्राहिम छोड़ आए थे , छोटी उम्र में रेगिस्थान पहाड़ों के बीच  इस्माइल पानी के बगैर तड़प रहे थे , मां  हाजरा पानी के लिए इधर-उधर दौड़ रही थी। अल्लाह ताला से दुआ मांगी और दुआ कबूल हुई।  हजरत इस्माइल एड़ी जमीन पर मार रहे थे। अल्लाह ताला का हुक्म हुआ जमीन से पानी की फुहार निकली, मां और बेटे ने प्यास बुझाई जिसे ( आबे जमजम) कहा जाता है। 12 साल की उम्र इस्माइल की होने पर पैगंबर इब्राहिम को ख्वाब में अल्लाह के यहां से फरमान आया ,बंदे कुर्बानी दे । बारी बारी से बहुत सारे जानवरों को अल्लाह की राह में कुर्बान कर दिया ,लेकिन ख्वाब बंद नहीं हुआ। इब्राहीम ने अपनी दूसरी बेगम हजरत सायरा से इसका जिक्र किया और बताया ख्वाब में सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देने का संदेश मिल रहा है। फिर वे  बेगम हाजरा बेटे इस्माइल जहां रहते थे पैगंबर इब्राहिम वहां गए। उन्होंने ख्वाब के बारे में बताया तो मां और बेटे ने अल्लाह की राह में कुर्बान होने के लिए सहमति दे दी

अल्लाह के यहां से फरमान आया ,बंदे कुर्बानी दे
12 साल की उम्र इस्माइल की होने पर पैगंबर इब्राहिम को ख्वाब में अल्लाह के यहां से फरमान आया ,बंदे कुर्बानी दे

 

इस्माइल को इब्राहिम पहाड़ों की तरफ ले गए । बताया जाता है, वहां कोई दरिया का किनारा था। हजरत इस्माइल की सहमति से  हजरत इब्राहिम ने अपनी आंखों से पट्टी बांधकर छूरी गर्दन पर चलाने को तैयार हुए तो हजरत जिब्राइल फरिश्ते ने अल्लाह ताला को पैगाम भेजा। अल्लाह ताला ने आदेश दिया दुंबा को बेटे की जगह कर दिया जाए। दुंबा की आवाज से पैगंबर  इब्राहिम नाराज हो गए और छूरी को गुस्से में फेंका , ऊपर उड़ती हुई टीडी को लगी, बहते हुए दरिया में मछली को लगी, हदीस में 3 निशानियां अल्लाह की राह में कुर्बानी की बताई जाती हैं। अल्लाह पाक के यहां से  कुर्बानी मंजूर हो गई। बताया जाता है अल्लाह पाक के आदेश अनुसार हजरत जिब्राइल फरिश्ते द्वारा पैगंबर इब्राहिम, पैगंबर इस्माइल के द्वारा मक्का मस्जिद का निर्माण हुआ। उसके बाद पैगंबर इब्राहिम  दुनिया से रुखसती कर गए और हजरत इस्माइल 135 साल की उम्र में मक्का मदीना से दुनिया को अलविदा कह गए। अगर गहराई से समझा जाए तो बलिदान व त्याग के किस्से हर जाति धर्म में पाए जाते हैं।  पैगंबर इब्राहिम व पैगंबर इस्माइल की कहानी यहां पर बिल्कुल राजा मोरध्वज के किस्से से मेल खाती नजर आती है, जिसमें भगवान श्री कृष्ण जी और अर्जुन माया रूपी शेर बना कर साधु के भेष में राजा मोरध्वज के दरबार में पहुंचे और फिर परीक्षा ली।

  लेखक:- चौधरी शौकत अली चेची, भाकियू (बलराज) के राष्ट्रीय महासचिव हैं।

 

 

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