सदका-ए-फितर की राशि 75 रूपया

 

सदका-ए-फितर की राशि इस वर्ष  75/- रूपया निर्धारित, मुसलमानों से समय पर अदा करने की अपील

मौहम्मद इल्यास- “दनकौरी”

जम्मू और कश्मीर के ग्रैंड मुफ्ती, मुफ्ती नसीर-उल-इस्लाम ने इस वर्ष के लिए सदका-ए-फितर (जकातुल-फितर) की राशि 75 रूपया प्रति व्यक्ति निर्धारित की है। यह राशि ईद-उल-फितर की नमाज़ से पूर्व अदा की जानी चाहिए।  उन्होंने मुसलमानों से आग्रह किया कि वे इस महत्वपूर्ण दान को समय पर अदा करें ताकि जरूरतमंदों को ईद की खुशियों में शामिल किया जा सके।

मुफ्ती नसीर-उल-इस्लाम ने बताया कि सदका-ए-फितर की राशि का निर्धारण एक धार्मिक परंपरा के अनुसार किया गया है, जो हर व्यक्ति पर लागू होती है, चाहे वह पुरुष हो, महिला हो या बच्चा। इस राशि को 1.75 किलोग्राम गेहूं या उसकी समकक्ष कीमत के रूप में तय किया गया है। मुसलमानों से यह भी कहा गया कि सदका-ए-फितर का दान सिर्फ उन व्यक्तियों को किया जाना चाहिए, जो सच में जरूरतमंद हों, जैसे गरीब, अनाथ या ऐसे लोग जो यात्रा में कठिनाई झेल रहे हैं।

मुफ्ती ने यह भी स्पष्ट किया कि इस दान का उद्देश्य समाज के कमजोर वर्ग की मदद करना और उपवास की शुद्धता को सुनिश्चित करना है। साथ ही उन्होंने कहा कि यह दान केवल मस्जिदों, धार्मिक संस्थाओं या राजनीतिक उद्देश्यों के लिए नहीं बल्कि सीधे तौर पर गरीबों और जरूरतमंदों के लिए होना चाहिए, ताकि उन्हें भी ईद की खुशियों का हिस्सा बनाया जा सके।

सदका-ए-फितर का दान आमतौर पर रमजान के महीने के अंत में ईद से पहले किया जाता है और इसे अनिवार्य रूप से अदा करना होता है। इससे न केवल उपवास की शुद्धता बनी रहती है, बल्कि यह एक दीनदार मुसलमान होने का भी प्रमाण है। इस दौरान, ग्रैंड मुफ्ती ने मुसलमानों से यह भी अपील की कि वे अन्य समाजिक कार्यों में भी योगदान दें और रमजान के माहौल में सामूहिकता और एकता को बढ़ावा दें।ईद-उल-फितर के दिन गरीबों को खुशी देने का यह कार्य न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज में आपसी सहयोग और सशक्तिकरण की भावना को भी बढ़ाता है।


जकात देना भी जरूरी

जकात (Zakat) इस्लाम के पाँच स्तंभों में से एक है और इसे धार्मिक रूप से अनिवार्य दान (charity) माना जाता है। यह इस्लाम में सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रणाली है।

जकात के मुख्य बिंदु:

  1. परिभाषा: जकात एक निश्चित धनराशि होती है जो हर आर्थिक रूप से सक्षम मुस्लिम को अपनी कुल संपत्ति का एक हिस्सा जरूरतमंदों को दान करना होता है।
  2. दर (Rate): आमतौर पर जकात की दर 2.5% होती है, जो बचत (नकद, सोना-चाँदी, व्यापारिक सामान, आदि) पर लागू होती है।
  3. पात्र व्यक्ति: कुरआन के अनुसार, जकात निम्नलिखित लोगों को दी जाती है:

गरीब (Fuqara)

जरूरतमंद (Masakin)

कर्ज में डूबे लोग (Gharimin)

अल्लाह के रास्ते में खर्च करने वाले (Fi Sabilillah)

यात्रा में फंसे मुसाफिर (Ibn Sabil)

दासों को मुक्त करने के लिए (Riqab)

जकात इकट्ठा करने वाले अधिकारी (Amil)

नए मुस्लिम (Muallaf)

  1. समय: आमतौर पर जकात हर इस्लामी वर्ष (हिजरी कैलेंडर) के अनुसार दी जाती है।

 

जकात का महत्व:

यह संपत्ति की शुद्धि (Purification of Wealth) का माध्यम माना जाता है।

समाज में आर्थिक असमानता को कम करता है।

यह गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता के लिए एक मजबूत सामाजिक सुरक्षा प्रणाली प्रदान करता है।

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