
वक्फ कानून पर बहस चल ही रही थी कि अचानक सुप्रीम कोर्ट ने कानून पर हंटर चला दिया। सरकार, जो अब तक कानून को अपनी सियासी लाठी समझकर चला रही थी, वह कोर्ट की सख्त टेढ़ी लाठी देखकर बैकफुट पर जा खड़ी हुई।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया—“कानून का मकसद किसी धर्म, समुदाय या वोट बैंक की तिजोरी भरना नहीं, बल्कि संविधान की मर्यादा निभाना है।” यह सुनते ही सत्ता गलियारे में खामोशी छा गई। नेताओं के चेहरे पर वैसी ही चिंता थी जैसे परीक्षा में नकल पकड़े जाने पर होती है।

सरकार की हालत अब ऐसी हो गई मानो क्रिकेट में बाउंसर पर फंसा बल्लेबाज हेलमेट उतारकर अंपायर से कह रहा हो—“सर, थोड़ा धीरे डालिए, वोट बैंक सिर पर है।” लेकिन सुप्रीम कोर्ट का हंटर कहां रुकने वाला था।
वोट बैंक की राजनीति के विशेषज्ञों को भी समझ में आ गया कि अब वक्फ कानून सिर्फ राजनीतिक अखबारों की हेडलाइन नहीं रहेगा, बल्कि अदालत की हंटर रेंज में आ गया है। नियमों का उल्लंघन करने वालों को अब सीधे हंटर की नोक दिखाई दे रही थी।

जनता इस तमाशे को किनारे से देख रही थी और कह रही थी—“पहली बार कानून के नाम पर तलवार सरकार के ही गले में लटक गई। अब समझ में आया कि कोर्ट का हंटर चलता है तो सत्ता का ढोल अपने आप फट जाता है।”
सरकार ने थोड़ी बहुत सफाई दी कि यह तो सिर्फ तकनीकी सुधार है, लेकिन अदालत ने हंसते हुए कहा—“हंटर ने आपकी सफाई खा ली। अब बैकफुट पर नाचना ही पड़ेगा।”

वास्तव में यह मामला सिर्फ वक्फ कानून का नहीं, बल्कि सत्ता और कानून की अंतरंग लड़ाई का प्रतीक बन गया है। जहां कोर्ट हंटर चलाता है, वहां राजनीति के तमाम गणित अपने आप हल हो जाते हैं।
मौहम्मद इल्यास- “दनकौरी”
संपादक