ईद-ए-मिलाद-उन-नबी (मिलादुन्नबी / 12 वफात)
एक ऐतिहासिक, धार्मिक और सामाजिक विश्लेषण

भूमिका : त्योहारों का संदेश और मानवता की राह
–चौधरी शौकत अली चेची–
मानव सभ्यता में त्योहार केवल उत्सव और आनंद का माध्यम नहीं होते, बल्कि वे समाज को एकजुट करने, भाईचारा बढ़ाने और इंसानियत की मूल भावना को मजबूत करने का कार्य करते हैं। चाहे वे किसी भी धर्म या संस्कृति से जुड़े हों, हर पर्व का मूल उद्देश्य अमन-चैन, तरक्की, भाईचारा और शांति का संदेश देना है।
भारत जैसे विविधताओं से भरे देश में यह महत्व और भी गहरा हो जाता है, क्योंकि यहाँ विभिन्न धर्मों, भाषाओं और परंपराओं के लोग रहते हैं और मिल-जुलकर त्योहार मनाते हैं। इसी कड़ी में इस्लाम धर्म का एक प्रमुख पवित्र पर्व है ईद-ए-मिलाद-उन-नबी, जिसे मिलादुन्नबी या 12 वफात भी कहा जाता है। यह पर्व पैगंबर मोहम्मद साहब के जन्म और उनकी शिक्षाओं की स्मृति में मनाया जाता है।
मिलादुन्नबी का ऐतिहासिक महत्व
इस्लामी हिजरी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी-उल-अव्वल की 12वीं तारीख को पैगंबर मोहम्मद साहब का जन्म हुआ। इसी दिन उनके इंतकाल (वफात) का भी उल्लेख मिलता है। इसलिए यह दिन खुशी और ग़म दोनों का प्रतीक माना जाता है।
वर्ष 2025 में यह पावन अवसर 5 सितंबर (शुक्रवार) को मनाया जाएगा।
पैगंबर मोहम्मद साहब का जीवन परिचय
- जन्म: मक्का, 570 ईस्वी
- पूरा नाम: मोहम्मद इब्न अब्दुल्लाह अल-हाशिमी
- बाल्यकाल: जन्म से पहले पिता का देहांत, 6 वर्ष की उम्र में माता का इंतकाल। पालन-पोषण दादा और चाचा अबू तालिब ने किया।
- युवावस्था: भेड़-बकरियाँ चराना और ईमानदारी से व्यापार करना। सच्चाई और भरोसेमंद स्वभाव के कारण अल-अमीन (विश्वसनीय) और अस-सादिक (सच्चे) कहलाए।
- विवाह: सम्मानित व्यापारी खदीजा से विवाह।
- प्रथम वह़ी: 40 वर्ष की आयु में हिरा पर्वत की गुफा में फरिश्ता जिब्राईल द्वारा कुरान का पहला संदेश।
- हिजरत (622 ई.): प्रताड़नाओं से बचने के लिए मक्का से मदीना प्रस्थान। इसी से हिजरी कैलेंडर की शुरुआत।
- मक्का विजय (630 ई.): 10,000 अनुयायियों की सेना के साथ मक्का पर विजय। काबा को मूर्तिपूजा से मुक्त कराकर इस्लाम का सबसे पवित्र स्थल घोषित किया।
- इंतकाल (632 ई.): विदाई हज के कुछ महीने बाद बीमारी से मदीना में वफात। मजार मस्जिद-ए-नबवी में स्थित।
पैगंबर मोहम्मद साहब की शिक्षाएँ
मुख्य स्रोत
- कुरान – अल्लाह का वचन, जीवन का मार्गदर्शन।
- हदीस – पैगंबर के कथन और उपदेश।
- सुन्नत – पैगंबर की जीवनशैली और आदर्श आचरण।
मूल संदेश
- अल्लाह एक है और वही सबका मालिक है।
- मूर्ति पूजा का निषेध।
- सच बोलना और न्याय करना।
- गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करना।
- शिक्षा और ज्ञान प्राप्त करना हर मुसलमान का कर्तव्य है।
- समाज में भाईचारा और समानता स्थापित करना।
त्योहार की परंपराएँ और आयोजन
- मस्जिदों में नमाज और दुआएँ।
- मिलाद शरीफ और नातखानी। पैगंबर की शान में कविताएँ और नातें।
- जुलूस। पैगंबर की शिक्षाओं का प्रचार और सामूहिक आयोजन।
- दान-पुण्य। गरीबों को भोजन, कपड़े और वस्त्र दान।
- धार्मिक प्रवचन। इस्लामी विद्वानों द्वारा पैगंबर के जीवन पर प्रवचन।
सामाजिक और वैश्विक संदेश
- सभी धर्मों का मूल संदेश शांति और भाईचारा है।
- इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है।
- असमानता और भेदभाव से दूर रहना चाहिए।
- शिक्षा और नैतिक मूल्यों के बिना समाज आगे नहीं बढ़ सकता।
भारत में यह पर्व सामाजिक सौहार्द का प्रतीक है। लखनऊ, दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद और कोलकाता जैसे शहरों में मुस्लिम समाज इसे बड़े धूमधाम से मनाता है।
पाकिस्तान, सऊदी अरब, तुर्की, मिस्र और इंडोनेशिया जैसे देशों में इसे राजकीय स्तर पर भी मनाया जाता है।
निष्कर्ष
ईद-ए-मिलाद-उन-नबी हमें पैगंबर मोहम्मद साहब के जीवन और शिक्षाओं को याद करने का अवसर देता है। उनका जीवन सादगी, ईमानदारी, करुणा और न्यायप्रियता का प्रतीक था। उन्होंने यह संदेश दिया कि अल्लाह की इबादत करो और इंसानियत की सेवा करो।
आज की दुनिया, जहाँ नफ़रत, असमानता और हिंसा बढ़ रही है, वहाँ पैगंबर मोहम्मद साहब की शिक्षाएँ और भी प्रासंगिक हो जाती हैं। यदि हम उनके संदेश को समझें और जीवन में अपनाएँ तो समाज में अमन-चैन, तरक्की और भाईचारा स्थापित हो सकता है।
कानूनी डिस्क्लेमर
इस लेख में प्रस्तुत सभी तथ्य विभिन्न ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक स्रोतों पर आधारित हैं। इसका उद्देश्य केवल जानकारी और अध्ययन प्रस्तुत करना है। इसका आशय किसी भी धर्म, सम्प्रदाय या समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं है। पाठकों से निवेदन है कि इसे केवल अध्ययन और जानकारी की दृष्टि से ग्रहण करें।
लेखक परिचय
लेखक: चौधरी शौकत अली चेची राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, किसान एकता संघ उत्तर प्रदेश सचिव (सपा) पिछड़ा वर्ग एक सामाजिक चिंतक और विचारक हैं।