भारत और श्रीलंका में एक साथ गूंजेगा रावण का नाम, दशहरे पर स्थापित होंगी ऐतिहासिक मूर्तियां


✍️  —मौहम्मद इल्यास- “दनकौरी” / ग्रेटर नोएडा


दशहरे पर जहां एक ओर देश भर में रावण दहन की परंपरा निभाई जाती है, वहीं उत्तर प्रदेश के बिसरख धाम और श्रीलंका में एक ऐतिहासिक पहल होने जा रही है। दोनों स्थानों पर रावण के सम्मान में एक जैसी भव्य मूर्तियाँ स्थापित की जाएंगी, जो न केवल ऐतिहासिक महत्व की हैं बल्कि भारत-श्रीलंका के सांस्कृतिक संबंधों को भी नया आयाम देने वाली हैं।


🔱 700 किलो की भव्य मूर्तियाँ, एक साथ स्थापना

राजस्थान के कुशल शिल्पकारों द्वारा तैयार की गईं 700-700 किलो वजनी रावण की मूर्तियाँ अब अपनी अंतिम मंज़िल पर पहुँच चुकी हैं। एक मूर्ति बिसरख धाम (गौतमबुद्ध नगर) में और दूसरी श्रीलंका के विशेष रावण मंदिर में स्थापित की जाएगी। इन मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा दक्षिण भारत के विद्वान पंडितों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चारण और विधि-विधान से की जाएगी।


🛕 बिसरख: रावण की जन्मस्थली, ऐतिहासिक शिवलिंग आज भी विद्यमान

बिसरख को रावण की जन्मस्थली माना जाता है। मान्यता है कि यहीं विश्रवा ऋषि के आश्रम में रावण का जन्म हुआ था और रावण ने इसी स्थान पर तपस्या कर पराक्रम का वरदान प्राप्त किया था। आज भी यहां पर वह शिवलिंग विद्यमान है, जिसे रावण ने स्वयं स्थापित किया था।

बिसरख धाम के पीठाधीश्वर, महामंडलेश्वर आचार्य अशोकानंद जी महाराज के अनुसार, “यह स्थापना न केवल ऐतिहासिक पहचान को पुनर्जीवित करती है, बल्कि एक नई आध्यात्मिक चेतना को भी जन्म दे रही है।”


🌍 श्रीलंका से रावण के ‘वंशज’ पहुंचे बिसरख

दशहरा से पूर्व, श्रीलंका निवासी जयलीथा बिसरख पहुंचे और उन्होंने रावण के पिता विश्रवा ऋषि द्वारा स्थापित शिवलिंग पर रुद्राभिषेक किया। जयलीथा खुद को रावण का वंशज बताते हैं और उन्होंने कहा—

“हमारे पूर्वजों को भारत की धरती पर जो सम्मान मिल रहा है, वह हमारे लिए गर्व की बात है। रावण संहिता का प्रचार-प्रसार हो रहा है और बिसरख में जो श्रद्धा है, वह अतुलनीय है।”

जयलीथा ने यह भी बताया कि श्रीलंका में रावण मंदिर में स्थापित की जाने वाली मूर्ति लंदन म्यूजियम में रखे स्टैच्यू के आधार पर तैयार की गई है, जिसे भारत में राजस्थान के मूर्तिकारों ने गढ़ा है।


🧘‍♂️ दक्षिण भारत के पंडित कराएंगे प्राण प्रतिष्ठा

रावण की पूजा विशेष रूप से दक्षिण भारत में की जाती है, जहां उन्हें विद्वता, भक्ति और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। यही कारण है कि प्राण प्रतिष्ठा के लिए दक्षिण भारतीय विद्वानों को आमंत्रित किया गया है, जो परंपरा, मंत्र और विधानों का सम्पूर्ण पालन कर स्थापना करेंगे।


🔍 एक पहल—इतिहास को सम्मान देने की

यह आयोजन उस सोच को भी दर्शाता है जिसमें रावण को केवल एक खलनायक नहीं, बल्कि शिवभक्त, ब्राह्मण, विद्वान और सामर्थ्यवान राजा के रूप में देखा जा रहा है। दशहरे जैसे पर्व पर रावण की मूर्तियों की स्थापना इस विमर्श को भी जन्म देती है कि इतिहास को केवल एक कोण से नहीं, विविध दृष्टिकोणों से देखने की आवश्यकता है।


📍  भारत के बिसरख धाम और श्रीलंका में एक साथ रावण मूर्तियों की स्थापना

भारत के बिसरख धाम और श्रीलंका में एक साथ रावण मूर्तियों की स्थापना एक ऐतिहासिक क्षण होगा—जो धर्म, परंपरा, विद्वता और सांस्कृतिक संवाद का प्रतीक बनेगा। यह न केवल रावण की स्मृति को सहेजने की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि दो देशों के साझा सांस्कृतिक ताने-बाने को भी सशक्त करता है।

👉 दशहरा 2025 को रावण के नाम—जहां दहन नहीं, पूजन होगा।


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