दनकौर में ताजियों का जुलूस निकलना शुरू , उमड़ा अकीदतमंदों का सैलाब


मोहम्मद इल्यास “दनकौरी” / गौतमबुद्धनगर

गौतमबुद्ध नगर के दादरी, सूरजपुर, जेवर और जहांगीरपुर सहित पूरे जनपद में मोहर्रम के मौके पर ताजियों के जुलूस निकाले जा रहे हैं। इसी क्रम में रविवार को दनकौर कस्बे में अलसुबह 10 बजे से ही ताजियों का ऐतिहासिक और परंपरागत जुलूस बड़े अदब और एहतराम के साथ निकाला गया। ऊंची दनकौर के कुरेशियां अखाड़े से जुलूस की शुरुआत हुई, जो पंचायती अखाड़े पहुंचकर हूर और मातमी दलों के साथ आगे बढ़ा।

जुलूस ऊंची दनकौर के विभिन्न मोहल्लों से होता हुआ थाना रोड, तेलियां अखाड़ा, मेहंदी अखाड़ा, मोहल्ला पेंठ, बिहारी लाल इंटर कॉलेज चौक और लंबा बाजार से गुजरता हुआ भिश्तिया अखाड़ा पहुंचा। यहां परंपरागत रूप से पटाबाजी की धूम रही। इसके बाद जुलूस सब्जी मंडी, पाटिया चौक, टीन का बाजार और मस्जिद रोगनगरान बरेलवी (मरकज) से होते हुए वापस थाना रोड पहुंचेगा।

शाम की नमाज (मगरिब) के बाद खाना पर उस्ताद खलीफाओं की दास्तानबंदी की रस्म अदा की जाएगी । अंत में ताजिए को ऊंची दनकौर स्थित बाबा शाह फिरोज चिश्ती की दरगाह के पास कर्बला में सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा ।

जुलूस के शुभारंभ के अवसर पर सलीम नंबरदार, सईद कुरैशी, जमाल अहमद अल्वी, शमशाद अहमद, फारूक मिस्त्री, बबली अल्वी, भोले अल्वी, हाजी इस्लाम अब्बासी, आस मोहम्मद कुरैशी, सूफी गुलाम चिश्ती साबरी समदी बसीरी, काशिफ हुसैन अब्बासी और यासीन चौधरी जैसे तमाम उस्ताद खलीफा व ताजिया दारों की अगुवाई में पट्ठों ने अपने करतबों से दर्शकों को रोमांचित कर दिया। परंपरागत पटाबाजी के दौरान कई हैरतअंगेज करतबों को देख लोगों की तालियों की गूंज सुनाई दी। मातमी दलों द्वारा मर्सिये और नोहे पढ़े गए, जिसने माहौल को ग़मगीन और आध्यात्मिक बना दिया।

सुरक्षा व्यवस्था रही चाक-चौबंद

इस मौके पर पुलिस प्रशासन ने पूरी मुस्तैदी के साथ जुलूस मार्ग पर सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित की। दनकौर कोतवाल मुनेंद्र कुमार सिंह और एसएसआई सोहन पाल सिंह पूरे काफिले के साथ डटे रहे। वहीं, डीसीपी साद मिया  खान, एडीसीपी सुधीर कुमार सिंह और एसीपी अरविंद कुमार स्वयं मौके पर निगरानी करते नजर आए। किसी भी अप्रिय घटना से बचाव के लिए एंटी बम स्क्वाड टीम ने जुलूस में शामिल ताजियों का सघन निरीक्षण किया।

अकीदत, परंपरा और अनुशासन का प्रतीक बना जुलूस

दनकौर में निकला यह जुलूस एक ओर जहां ग़म-ए-हुसैन की याद दिलाता रहा, वहीं दूसरी ओर यह भाईचारे, सौहार्द और अनुशासन का प्रतीक भी बना रहा। हर साल की तरह इस बार भी यह ताजिया जुलूस क्षेत्रीय सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बना और पूरी शांति, शालीनता और धार्मिक गरिमा के साथ संपन्न हुआ।


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