पार्क बना श्मशान: छह साल की ‘पृथ्वी’ निगल गया सिस्टम की लापरवाही का कुआं


✍️ रिपोर्ट: मौहम्मद इल्यास ‘दनकौरी’ | ग्रेटर नोएडा


“माँ, मैं जल्दी आ जाऊँगा…”
शायद यही कहकर निकला होगा छह साल का मासूम पृथ्वी, जब वो सोमवार की दोपहर घर से खेलने गया था। लेकिन किसे पता था कि वो लौटेगा ही नहीं। लौटेगा तो बस एक ख़ामोश तस्वीर बनकर, और रह जाएगी एक माँ की सूनी गोद, एक बाप की टूटी उम्मीद… और एक ऐसा सवाल जो हर दिल को चीरता है—क्या एक बच्चे की मौत पर सिस्टम की माफ़ी काफ़ी है?


खेलते-खेलते मौत की गहराई में समा गया पृथ्वी

ग्रेटर नोएडा के सेक्टर P-3 स्थित थीम पार्क में 7 जुलाई की शाम एक दर्दनाक हादसा हुआ। वर्षों से बंद पड़े, काई लगे, गंदे पानी से भरे फव्वारे में खेलते हुए मासूम पृथ्वी गिर पड़ा। कोई सुरक्षा, कोई चेतावनी बोर्ड, कोई घेराबंदी नहीं थी। फव्वारे के पास पहुंचते ही वो फिसला और डूब गया। कुछ ही मिनटों में उसकी साँसें थम गईं। अस्पताल पहुंचने तक बहुत देर हो चुकी थी।


मजदूर पिता की टूटी दुनिया, माँ की गोद सूनी

पृथ्वी, D-293 ब्लॉक कंप्लीशन फ्लैट्स में रहने वाले सुभाष कुमार का बेटा था। यह परिवार मूलतः शाहजहांपुर से आकर यहाँ दिहाड़ी मजदूरी कर गुज़ारा करता है। उसी बच्चे की हँसी, जो हर सुबह माँ की नींद खोलती थी, अब तस्वीर बन दीवार पर टंगी है। और माँ की गोद अब हमेशा के लिए ख़ाली हो गई है।


“कहते रहे, पर किसी ने सुना नहीं”

स्थानीय निवासी और पूर्व RWA अध्यक्ष अधिवक्ता आदित्य भाटी बताते हैं कि पार्क का यह फव्वारा कई सालों से बंद था। वह खुद इस मुद्दे को प्राधिकरण के समक्ष पूर्व CEO नरेंद्र भूषण की मौजूदगी में उठा चुके थे। लेकिन शिकायतें कागज़ों में गुम हो गईं। फव्वारा वहीं खुला रहा—एक मौत के कुंए की तरह। और अब जब एक मासूम जान चली गई, तो सब ‘जांच’ और ‘कार्रवाई’ की बात कर रहे हैं। क्यों हर बार किसी की जान जानी ज़रूरी होती है, तब जाकर सिस्टम जागता है?


मामा का सवाल—“अगर ढंका होता, तो क्या पृथ्वी आज ज़िंदा नहीं होता?”

पृथ्वी के मामा राहुल कुमार की आंखों में आँसू और आवाज़ में ग़ुस्सा है—“अब माफ़ी से क्या होगा? हमारा बच्चा वापस आ जाएगा? अगर समय रहते फव्वारा ढक दिया गया होता, तो शायद आज वो जिंदा होता। अब कोई और माँ अपना बच्चा न खोए, इसके लिए हर पार्क को सुरक्षित किया जाए।”


प्राधिकरण का जवाब—”हम आहत हैं…”, पर क्या यही काफ़ी है?

ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की ओएसडी गुंजा सिंह ने बयान जारी किया—“यह बहुत दुखद घटना है। हम पीड़ित परिवार के साथ हैं। जाँच कराई जा रही है और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होगी।”

लेकिन सवाल अब भी ज़िंदा हैं:

क्या सिर्फ बयान देने से ज़िम्मेदारी खत्म हो जाती है?

क्यों बच्चों के खेलने की जगहें कब्रगाह में बदल रही हैं?

क्यों अधिकारी पहले नहीं जागते, जब चेतावनी बार-बार दी जाती है?


यह सिर्फ एक हादसा नहीं, एक चेतावनी है

पृथ्वी की मौत एक कागज़ी रिपोर्ट नहीं, एक मानवता की पुकार है। हम सबको सोचने पर मजबूर करती है—कहीं अगला ‘पृथ्वी’ हमारे मोहल्ले में तो नहीं?


🔴 अब आपकी चुप्पी भी अपराध है!

क्या दोषियों को सज़ा मिलनी चाहिए?
क्या हर पार्क और सार्वजनिक स्थान की सुरक्षा की समीक्षा अनिवार्य होनी चाहिए?

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क्योंकि अब सिर्फ अफसोस नहीं, बदलाव ज़रूरी है।

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