ग्लूकोमा जागरूकता पर राष्ट्रीय वर्कशॉप: सैलफोर्ड यूनिवर्सिटी, CSIR-IGIB और ORDI की पहल ने दिखाया नई दिशा का रास्ता

विजन लाइव /नई दिल्ली
भारत में बच्चों में अंधापन रोकने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए सैलफोर्ड यूनिवर्सिटी (यूके), सीएसआईआर-इंस्टीट्यूट ऑफ़ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (CSIR-IGIB) और ऑर्गनाइज़ेशन फॉर रेयर डिजीज़ेस इंडिया (ORDI) ने मिलकर नई दिल्ली में एक राष्ट्रीय वर्कशॉप का आयोजन किया। यह वर्कशॉप सिर्फ एक इवेंट नहीं, बल्कि एक जन-जागरूकता अभियान की शुरुआत थी — जो लाखों भारतीय बच्चों की दृष्टि को बचाने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है। आने वाले समय में अगर नीति, तकनीक और मानवीय संवेदनाएं साथ आएं, तो ग्लूकोमा जैसे रोगों से होने वाला अंधापन एक टाला जा सकने वाला अध्याय बन सकता है।

इस वर्कशॉप का उद्देश्य था — ग्लूकोमा (काला मोतिया) के लिए प्रारंभिक और आनुवंशिकी-सूचित देखभाल की आवश्यकता पर जागरूकता बढ़ाना, विशेषकर उन बच्चों के लिए जो आनुवांशिक कारणों से जीवन की शुरुआत में ही दृष्टिहीनता की ओर बढ़ रहे होते हैं।

वर्कशॉप में देशभर से प्रमुख नेत्र रोग विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, नीति निर्माता, गैर-लाभकारी संस्थाएं और मीडिया प्रतिनिधि शामिल हुए। इसकी शुरुआत CSIR-IGIB के निदेशक डॉ. सौविक मैती के स्वागत भाषण से हुई। प्रमुख वक्ताओं में प्रो. अरिजीत मुखोपाध्याय (सैलफोर्ड यूनिवर्सिटी), प्रो. बी.के. थेल्मा (दिल्ली विश्वविद्यालय) और कई वरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञ शामिल रहे।

फिल्म ‘रिपल्स ऑफ़ लाइट’ ने छोड़ी गहरी छाप

इस आयोजन का मुख्य आकर्षण था शॉर्ट फिल्म ‘रिपल्स ऑफ़ लाइट’ का प्रीमियर — जो 2023 की चर्चित फिल्म ‘विज़न ऑफ़ द ब्लाइंड लेडी’ का सीक्वल है। इस 12 मिनट की फिल्म ने दिखाया कि कैसे आनुवंशिक परीक्षण और समय पर हस्तक्षेप ने बच्चों की दृष्टि बचाने में मदद की।

डॉ. असीम सिल ने कहा, “डॉक्टर बीमारी का इलाज करते हैं, लेकिन मरीज़ों की चिंता होती है – क्या वे अंधे हो जाएंगे, क्या उनके बच्चे सुरक्षित रहेंगे। हमें मरीज़ों के दृष्टिकोण से सोचने की ज़रूरत है।”

भारत में आनुवंशिक जाँच की स्थिति

ग्लूकोमा, दुनिया में अपरिवर्तनीय अंधेपन का सबसे बड़ा कारण है, और भारत की लगभग 1-2% आबादी इससे प्रभावित है। विशेष रूप से वंशानुगत मामलों में, बीमारी बिना किसी शुरुआती लक्षण के दृष्टि छीन सकती है।

हालांकि आनुवंशिक परीक्षण समय पर निदान और बचाव का रास्ता खोल सकता है, भारत में इस दिशा में न तो कोई समर्पित नीति है, न ही बीमा सहायता

प्रो. बी.के. थेल्मा ने जोर दिया, “चाहे बीमारी दुर्लभ हो या सामान्य, हर रोग एक बोझ होता है। समय रहते बचाव करने से अनगिनत जीवन-वर्ष बचाए जा सकते हैं।”
प्रसन्ना शिरोल, कार्यकारी निदेशक, ORDI ने कहा, “दुर्लभ बीमारियों के मामलों में हर परिवार आर्थिक रूप से कमजोर होता है। समाधान है — जागरूकता, वकालत और नीति परिवर्तन।”

नीति निर्माण की दिशा में कदम

दिन के अंत में नीति और समर्थन पर एक महत्त्वपूर्ण सत्र हुआ, जिसमें आनुवंशिक जांच पर आधारित ग्लूकोमा देखभाल के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना तैयार करने पर सहमति बनी। प्रतिभागियों ने सरकार, अस्पतालों और सामाजिक संगठनों से सहयोग की अपील की, ताकि आनुवंशिक परीक्षण को देश के कोने-कोने तक पहुंचाया जा सके।

डॉ. सुनीता दुबे, प्रमुख, ग्लूकोमा सेवाएं, श्रॉफ आई हॉस्पिटल ने कहा, “फिल्मों के माध्यम से मरीज़ों को जागरूक करना और उन्हें आनुवंशिक जांच के लिए प्रेरित करना ही एकमात्र उपाय है।”

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