ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की बड़ी कार्रवाई और पहल

 

कूड़ा फेंकने पर दो ट्रैक्टर-ट्रॉली जब्त, 1 लाख जुर्माना; कासना-एच्छर तक एसटीपी लाइन से होगी सिंचाई

✍️ मौहम्मद इल्यास “दनकौरी” / ग्रेटर नोएडा

ग्रेटर नोएडा। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण को लेकर शुक्रवार को दो अहम कदम उठाए। जहां एक ओर सड़कों किनारे अवैध रूप से कूड़ा डालने वालों पर तगड़ी कार्रवाई की गई, वहीं दूसरी ओर भूजल बचाने के लिए कासना से एच्छर तक 12 किलोमीटर लंबी एसटीपी लाइन चालू कर दी गई। एक तरफ स्वच्छता बनाए रखने के लिए प्राधिकरण ने कूड़ा फेंकने वालों पर कठोर कार्रवाई की, तो दूसरी ओर भूजल बचाने के लिए एसटीपी से शोधित पानी की आपूर्ति शुरू कर दी। यह दोनों कदम न केवल शहर की छवि सुधारेंगे, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी मील का पत्थर साबित होंगे।


कूड़ा फेंकने वालों पर शिकंजा

प्राधिकरण के स्वास्थ्य विभाग की क्यूआरटी टीम ने शुक्रवार को सेक्टर ज्यू-वन के पास सड़क किनारे कूड़ा गिराते हुए दो ट्रैक्टर-ट्रॉलियों को रंगे हाथ पकड़ लिया। दोनों ट्रॉली जब्त कर मालिकों पर 50-50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया। इस प्रकार कुल एक लाख रुपए का दंड लगाया गया।

स्वास्थ्य विभाग के महाप्रबंधक आरके भारती ने बताया कि जब तक मालिक जुर्माना नहीं चुकाते, तब तक ट्रैक्टर-ट्रॉली छोड़ी नहीं जाएगी। इससे पहले भी 3 सितंबर को दो ट्रैक्टर-ट्रॉलियों को पकड़ा गया था और एक लाख रुपए का जुर्माना वसूला गया था।

एसीईओ श्रीलक्ष्मी वीएस ने स्पष्ट किया कि शहर को गंदा करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने नागरिकों से अपील की कि शहर को साफ-सुथरा रखने में प्राधिकरण का सहयोग करें और इधर-उधर कूड़ा न फैलाएं।


भूजल संरक्षण की दिशा में बड़ा कदम

सीईओ एनजी रवि कुमार की पहल पर प्राधिकरण ने भूजल संरक्षण को लेकर एक और परियोजना को मूर्त रूप दिया है। एसीईओ प्रेरणा सिंह की देखरेख में जल-सीवर विभाग ने कासना एसटीपी से एच्छर तक ट्रीटेड वॉटर की डिस्ट्रीब्यूशन लाइन तैयार कर दी है।

करीब 12 किलोमीटर लंबी इस लाइन से पार्कों और ग्रीन बेल्ट की सिंचाई अब शोधित पानी से होगी। वरिष्ठ प्रबंधक जल, राजेश कुमार ने बताया कि इससे पहले तक इस क्षेत्र में सिंचाई के लिए भूजल का उपयोग हो रहा था। अब पार्कों व ग्रीन बेल्ट की सिंचाई और ईकोटेक-1 एक्सटेंशन के उद्योगों को उत्पादन के लिए पानी की आपूर्ति इसी ट्रीटेड वॉटर से होगी। इस व्यवस्था से बड़ी मात्रा में भूजल की बचत होगी और औद्योगिक इकाइयों को भी पर्यावरण-हितैषी विकल्प मिलेगा।

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