बाबा शाह फिरोज चिश्ती की ऐतिहासिक दरगाह पर 79 वां सालाना उर्स मुकद्दस-2023, 03 जुलाई-2023 से शुरू

ऐतिहासिक दरगाह
बाबा शाह फिरोज चिश्ती की ऐतिहासिक दरगाह

दनकौर में बाबा शाह फिरोज चिश्ती की ऐतिहासिक दरगाह पर 79 वां सालाना उर्स मुकद्दस-2023, 03 दिवसीय उर्स मुकद्दस-2023, मेला, 3 जुलाई-2023 से शुरू होकर 5 जुलाई-2023 तक संपन्न होगा

आइए जानिए, बाबा शाह फिरोज चिश्ती की ऐतिहासिक दरगाह की क्या है, तवारीख

मौहम्मद इल्यास-’’दनकौरी’’/गौतमबुद्धनगर

दनकौर में बाबा शाह फिरोज चिश्ती की ऐतिहासिक दरगाह पर 79 वां सालाना उर्स मुकद्दस-2023, ख्वाजा लुत्फुल्लाशाह मिया चिश्ती निजामी रहमतुल्लाह आलैहि दनकौरी की शान में इस बार भी 3 जुलाई-2023 से शुरू होने जा रहा है

इस बार 03 दिवसीय उर्स मुकद्दस-2023
इस बार 03 दिवसीय उर्स मुकद्दस-2023, मेला, 3 जुलाई-2023 से शुरू होकर 5 जुलाई-2023 तक संपन्न होगा

इस बार 03 दिवसीय उर्स मुकद्दस-2023, मेला, 3 जुलाई-2023 से शुरू होकर 5 जुलाई-2023 तक संपन्न होगा। बाबा शाह फिरोज चिश्ती निजामी रहमतुल्लाह आलैहि दनकौरी के खिदमत गुजार बन कर ख्वाजा लुत्फुल्लाहशाह मियां आए थे और पर्दा करने के बाद उनका मजार-ए-मुबारक यहीं पर बनाया गया। तब से ही ख्वाजा लुत्फुलाहशाह मियां की शान में जिलहिज्जा महीने की 14 तारीख को यहां पर उर्स का मेला सजाया जाता है। जिलहिज्जा की 14 वीं और 15 वीं तारीख को ख्वाजा लुत्फुल्लाशाह मिया चिश्ती निजामी रहमतुल्लाह आलैहि दनकौरी की शान में उर्स होता है और 16 वीं तारीख को दिन में कुल शरीफ संपन्न होता है। जिलहिज्जा की 16 वीं तारीख की शाम से चिश्तियां-ए- सिलसिला की शान में कव्वालियां होती है और सुबह फज्र की नमाज से पहले कुल शरीफ के साथ यह 3 दिवसीय उर्स मुकद्दस-2023 संपन्न होता है। जब कि ख्वाजा लुत्फुल्लाशाह मिया चिश्ती निजामी रहमतुल्लाह आलैहि दनकौरी के सज्जादानशीन अब्दुल हमीद लुत्फी चिश्ती निजामी रहमतुल्लाह आलैहि का उर्स मुकद्दस जीकाद महीने की 5 वीं तारीख को मनाया जाता हैं

चिश्तिया लुत्फिया दरगाह शरीफ दनकौर
चिश्तिया लुत्फिया दरगाह शरीफ दनकौर के खादिमुल फुकरा ( सज्जानशीन) सूफी फजूलरहमान लुत्फी हमीद चिश्ती निजामी दनकौरी ने बताया

चिश्तिया लुत्फिया दरगाह शरीफ दनकौर के खादिमुल फुकरा ( सज्जानशीन) सूफी फजूलरहमान लुत्फी हमीद चिश्ती निजामी दनकौरी ने बताया कि बाबा शाह फिरोज चिश्ती की ऐतिहासिक दरगाह पर 79 वां सालाना उर्स मुकद्दस -2023, बरोज पीर, मंगल और बुद्धवार तक संपन्न होने जा रहा है। इस बार भी यहां पर इरफान- फैजान देहलवी, बुलबुल-ए- हिंद मरहूम हबीब पेंटर के पोते गुलाम हबीब पेंटर, समीर जमीर साबरी आदि कई मशहूर कव्वाल आकर अपना कलाम पेश करने वाले हैं। उन्होंने यह भी बताया कि इस बाबा शाह फिरोज चिश्ती की ऐतिहासिक दरगाह पर बुलबुल-ए- हिंद कहे जाने वाले मशहूर फनकार हबीब पेंटर भी आकर अपना कलाम पेश कर चुके हैं। साथ ही सूफी महताब, गुलाम शाबरी, असलम वज्बी, तस्लीम आरिफ,साजन बाबू जैसे हिंदुस्तान के कई मशहूर कव्वाल यहां पर आ चुके हैं। खुशूसी मेहमानांं में यहां सूफी औलिया-ए- इकराम शिकरत करने के लिए आते रहे हैं। सियायशी तौर से यहां पर यूपी के पूर्व गर्वनर मौहम्मद उस्मान आरिफ, पूर्व श्रम मंत्री सईदुल हसन, बुलंदशहर के पूर्व डीएम जावेद उस्मानी, पूर्व विधायक राजेंद्र सोलंकी, पूर्व विधायक नरेंद्र सिंह भाटी, पूर्व विधायक वेदराम भाटी और सासंद डा0 महेश शर्मा, विधायक धीरेंद्र सिंह भी यहां आकर हाजिरी दर्ज करा चुके हैं। साथ ही दूर दराज से जायरीन यहां पर अपनी मुरादों को पूरा करने के लिए आते हैं और इस दर पर हर दीन दुखी की दुआ का कुबूल होती हैं

 

आइए जानिए, बाबा शाह फिरोज चिश्ती की ऐतिहासिक दरगाह की क्या है, तवारीखः-

सूफी संत बाबा शाह फिरोज चिश्ती की यह दरगाह
सूफी संत बाबा शाह फिरोज चिश्ती की यह दरगाह करीब 500 वर्ष पुरानी मानी जाती है

दनकौर में सूफी संत बाबा शाह फिरोज चिश्ती की यह दरगाह करीब 500 वर्ष पुरानी मानी जाती है। बताया जाता है कि उस समय यमुना नदी दनकौर से सट कर बहती थी और जहां आज बाबा शाह फिरोज चिश्ती का मजार-ए-मुबारक बना हुआ है, यहां पर मल्लाह नावों को खडा किया करते थे। इस जगह पर मल्लाहों की झोपडियां होती थी, क्योंकि पहले आवागमन के लिए यहीं एक हरियाणा, दिल्ली या दूसरी जगहों पर जाने के लिए रास्ता हुआ करता था। बाबा शाह फिरोज चिश्ती, चिश्तियां सिलसिले से ताल्लुक रखते थे। सूफी विद्वान बताते हैं कि जब इनकी शिक्षा दीक्षा पूरी हुई तो इन्होंने अपने पीर से पूछा कि क्या हुकूम है? इनके पीर ने कह दिया कि ए- फिरोज जाइए अल्लाह के संदेशों का प्रचार प्रसार करिए,सफर मेंं जहां शाम हो जाए, वहीं आपका आखिरी मुकाम होगा। बाबा शाह फिरोज चिश्ती दिल्ली की ओर से यमुना नदी को पार करते हुए इधर की ओर आ रहे थे। किश्ती से जब इन्होंने अपना कदम-ए-मुबारक दनकौर की इस सरजमीं पर रखा, उस समय शाम हो रही थी, यानी सूरज डूब रहा था। इस मुशाफिर से मल्लाहों ने कहा कि अब शाम हो रही है, यहीं रूक जाइए, कल सुबह जहां जाना है, चले जाना। दनकौर की यह सरजंमी ही आखिरी मुकाम है, यह समझ कर जहां आज इनकी दरगाह है, मल्लाहों की झोपिडयों के पास बाबा शाह फिरोज चिश्ती ठहर गए

एक वाकया ऐसा भी हुआ…………………………………………………..

अचानक बच्चे के आेंंठों पर मुस्कान आ उठी। बच्चे के अंदर चेतना आ जाने पर
अचानक बच्चे के आेंंठों पर मुस्कान आ उठी। बच्चे के अंदर चेतना आ जाने पर वहां खडे मल्लाह लोग और बच्चे के माता पिता के आश्चर्य का ठिकाना नही रहा

बाबा शाह फिरोज चिश्ती मल्लाहों की झोपिडयों के पास खुदा की इबादत में लीन थे। मल्लाहों ने सोचा यह मुसाफिर चले जाएंगा, मगर, ऐसा नही हुआ। सूफी विद्वान यह भी बताते हैं कि बाबा शाह फिरोज चिश्ती को न कुछ खाते और न कूछ पीते हुए देखा, बस खुदा की इबादत में ही लीन रहते थे। मल्लाह भी बाबा शाह फिरोज चिश्ती की इस बात से हैरान थे। एक दिन वाकया ऐसा हुआ कि एक मुसाफिर जोडा रोता बिलखता हुआ यहां से नदी पार करने के लिए आया। मल्लाहों ने पता किया तो बताया गया कि वह मिया बीबी खुर्जा के पास किसी गांव में विवाह समारोह में शामिल होने के लिए गए थे और वहीं उनका छोटा बच्चा खत्म हो गया। अब इस मृत बच्चे को लिए वापस अपने गांव लौट रहे हैं। मल्लाहों ने यह बात बाबा शाह फिरोज चिश्ती को बताई और मृत बच्चे को उनके पास ले गए। बाबा शाह फिरोज चिश्ती ने नमाज पढने के बाद सलाम ही फेरा था। सारा माजरा जानने के बाद बाबा शाह फिरोज चिश्ती ने दुआ मांगी। हुकूम तो अल्लाह का ही था, अचानक बच्चे के आेंंठों पर मुस्कान आ उठी। बच्चे के अंदर चेतना आ जाने पर वहां खडे मल्लाह लोग और बच्चे के माता पिता के आश्चर्य का ठिकाना नही रहा। जब यह माजरा यहां के मनसबदार को पता चला तो फौरन ही वहां पहुंच कर बाबा शाह फिरोज चिश्ती के कदमों पर गिर पडा और अपने किले में ठहरने की गुजारिश की। बाबा शाह फिरोज चिश्ती ने कह दिया कि फकीरों की रहने की जगह किले या महलों में नही होती है। इस चमत्कार के बाद बाबा शाह फिरोज चिश्ती की कीर्ति दूर दूर तक फैल गई। अब क्या था जो बच्चा जिंदा हो उठा था और वह उसके माता पिता, बाबा शाह फिरोज चिश्ती की खिदमत में लीन हो गए। आखिर इनके पर्दा करने के बाद इसी जगह पर मजार-ए-मुबारक बनाया गया

 

कुतुब-ए-मशाइख ख्वाजा लुत्फल्लाह शाह मियां, दनकौर आए

सज्जानदशीन अब्दुल हमीद लुत्फी ने बाबा शाह फिरोज चिश्ती निजामी रहमतुल्लाह आलैहि
सज्जानदशीन अब्दुल हमीद लुत्फी ने बाबा शाह फिरोज चिश्ती निजामी रहमतुल्लाह आलैहि और ख्वाजा लुत्फुल्लाह शाह मिया चिश्ती निजामी रहमतुल्लाह आलैहि दनकौरी के मजार-मुबारक को पक्का कराते हुए यह सुंदर दरगाह बनवाई

ख्वाजा लुत्फुल्लाहशाह मियां को 52 जिलों की सूफी सल्तनत का रहनुमा माना जाता है। ख्वाजा लुत्फुल्लाहशाह मियां ने ही दनकौर की इस सरजंमी पर आकर बाबा शाह फिरोज चिश्ती के बारे में एक इल्म के जरिए तवारीख को जाना और लोगों बताया कि इस कब्र-ए- मुबारक में अल्लाह के वली बाबा शाह फिरोज चिश्ती निजामी रहमतुल्लाह आलैहि हैं। इसके बाद बाबा शाह फिरोज चिश्ती की इस दरगाह की मान्यता दूर दूर तक फैल गई। ख्वाजा लुत्फुल्लाह शाह मियां का ताल्लुक बसी किरतपुर बिजनौर से रहा हैं। सूफी विद्वान यहां बताते चले आए हैं कि आजादी के दीवानों में ख्वाजा लुत्फुल्लाह शाह मियां भी कूद गए थे। आखिर घर बार छोड कर गुमनाम जिंदगी जीते हुए आजादी के लिए लडते रहे। एक बार की बात है कि हरियाणा के पटौदी शरीफ में थे और ब्रिटिश पुलिस के सिपाही इन्हे तलाश रहे थे। वहीं एक बागीचे में एक खुदा के बंदे इबादत कर रहे थे। सिपाहियों को आता हुआ देख ये बगीचे में जा पहुंचे और इबादत में लीन खुदा के बंदे से मद्द मांगी। खुदा बंदे ने इनसे कह दिया कि कोई बात नही, यहां बैठ जाओे। पुलिस के सिपाही बगीचे मेंं आए और हर जगह की तलाशी ली। पुलिस के सिपाहियों ने खुदा के बंदे से पूछा कि यहां पर कोई बाहर से व्यक्ति आया है? इस पर खुदा के बंदे ने सिपाहियों को जवाब दिया कि ढूंढ लो, मिल जाए तो ले जाओ। यह क्या ख्वाजा लुत्फुल्लाह शाह मियां बगीचे में खुदा के बंदे यानी फकीर दर्वेश के सामने ही बैठे थे? और पुलिस के सिपाही झक मार कर चले गए। जब पुलिस के सिपाही दूर चले गए तो खुदा के बंदे यानी फकीर दर्वेश ने ख्वाजा लुत्फुल्लाह शाह मियां से कहा कि मुसाफिर, पुलिस अब चली गई है, कोई खतरा नही है जहां जाना है, चले जाओ। इस घटना से तो मानो ख्वाजा लुत्फुल्लाह शाह मियां का हृदय परिर्वन ही हो गया और बगीचे में उन फकीर दर्वेश के मुरीद हो गए तथा पूरी तरह से वैराग्य ले लिया। ख्वाजा लुत्फुल्लाह शाह मियां ने अपने पीर -गुरू- हाजी फजलहुकनमा-उल हुरमैन से शिक्षा दीक्षा प्राप्त की और फिर हारियाणा के रायपुर में आ गए, जहां 12 साल कयाम फरमाया। रायपुर में कायम फरमाने के बाद दनकौर आ गए और बाबा शाह फिरोज चिश्ती की दरगाह पर खिदमत में लीन हो गए। तकरीबन 12 साल यहां भी कायम फरमाया और 79 साल पहले पर्दा कर गए। ख्वाजा लुत्फुल्लाह शाह मियां के खादिमुल फुकरा (सज्जानदशीन) अब्दुल हमीद लुत्फी चिश्ती निजामी को बनाया गया। सज्जानदशीन अब्दुल हमीद लुत्फी ने बाबा शाह फिरोज चिश्ती निजामी रहमतुल्लाह आलैहि और ख्वाजा लुत्फुल्लाह शाह मिया चिश्ती निजामी रहमतुल्लाह आलैहि दनकौरी के मजार-मुबारक को पक्का कराते हुए यह सुंदर दरगाह बनवाई। जब सज्जादनशीन अब्दुल हमीद लुत्फी ने पर्दा किया तो इन्हें भी दरगार के अंदर ही दफनाया गया

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