जानिए:- मुहूर्त के शुभ अशुभ समय

 

मुहूर्त के शुभ अशुभ समय:- कौन-सा ‘समय’ सर्वश्रेष्ठ होता है, ध्यान से समझे

आचार्य अशोकानंद जी महाराज

किसी भी कार्य का प्रारंभ करने के लिए शुभ लग्न और मुहूर्त को देखा जाता है। जानिए वह कौन-सा वार, तिथि, माह, वर्ष लग्न, मुहूर्त आदि शुभ है जिसमें मंगल कार्यों की शुरुआत की जाती है।
मुहूर्त संबंधित ग्रंथ : मुहूर्त संबंधित कई ग्रंथ हैं जो वेद, स्मृति आदि धर्मग्रंथों पर आधारित है। ये ग्रंथ है- मुहूर्त मार्तण्ड, मुहूर्त गणपति, मुहूर्त चिंतामणि, मुहूर्त पारिजात, धर्म सिंधु, निर्णय सिंधु, मुहूर्त प्रकरण आदि।
श्रेष्ठ दिन : दिन और रात में दिन श्रेष्ठ है।
श्रेष्ठ मुहूर्त : दिन-रात के 30 मुहूर्तों में ब्रह्म मुहूर्त ही श्रेष्ठ है।
श्रेष्ठ वार : सात वारों में रवि, मंगल और गुरु श्रेष्ठ है।
चौघड़िया : शुभ चौघड़िया श्रेष्ठ है जिसका स्वामी गुरु है। अमृत का चंद्रमा और लाभ का बुध है।
श्रेष्ठ पक्ष : कृष्ण और शुक्ल पक्षों के दो मास में शुक्ल पक्ष श्रेष्ठ है।
श्रेष्ठ एकादशी : प्रत्येक वर्ष चौबीस और अधिकमास हो तो 26 एकादशियां होती हैं। शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में एकादशियों को श्रेष्ठ माना है। उनमें भी इसमें कार्तिक मास की देव प्रबोधिनी एकादशी श्रेष्ठ है।
श्रेष्ठ माह : मासों में चैत्र, वैशाख, कार्तिक, ज्येष्ठ, श्रावण, अश्विनी, मार्गशीर्ष, माघ, फाल्गुन श्रेष्ठ माने गए हैं उनमें भी चैत्र और कार्तिक सर्वश्रेष्ठ है।
श्रेष्ठ पंचमी : प्रत्येक माह में पंचमी आती है उसमें माघ माह के शुक्ल पक्ष की बसंत पंचमी श्रेष्ठ है।
श्रेष्ठ अयन : दक्षिणायन और उत्तरायण मिलाकर एक वर्ष माना गया है। इसमें उत्तरायण श्रेष्ठ है।
श्रेष्ठ संक्रांति : सूर्य की 12 संक्रांतियों में मकर संक्रांति ही श्रेष्ठ है।
श्रेष्ठ ऋ‍तु : छह ऋतुओं में वसंत और शरद ऋतु ही श्रेष्ठ है।
श्रेष्ठ नक्षत्र : नक्षत्र 27 होते हैं उनमें कार्तिक मास में पड़ने वाला पुष्य नक्षत्र श्रेष्ठ है। इसके अलावा अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, उत्तराषाढ़ा, श्रावण, धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तरा भाद्रपद, रेवती नक्षत्र शुभ माने गए हैं।
सभी श्रेष्ठ समय में उक्त कार्य किए जाते हैं:-

  1. गर्भाधान, पुंसवन, जातकर्म-नामकरण, मुंडन, विवाह आदि संस्कार।
  2. भवन निर्माण में मकान-दुकान की नींव, द्वार, गृहप्रवेश, चूल्हा भट्टी आदि का शुभारंभ।
  3. व्यापार, नौकरी आदि आय प्राप्ति के साधनों का शुभारंभ।
  4. पवित्रता हेतु किए जाने वाले स्नान।
  5. यात्रा और तीर्थ आदि जाने के लिए भी शुभ मुहूर्त को देखा जाता है।
  6. पंचकों में ये कार्य निषेध माने गए हैं- श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तरा भाद्रप्रद तथा रेवती नक्षत्रों में पड़ने वाले पंचकों में दक्षिण की यात्रा, मकान निर्माण, मकान छत डालना, पलंग खरीदना-बनवाना, लकड़ी और घास का संग्रह करना, रस्सी कसना और अन्य मंगल कार्य नहीं करना चाहिए। किसी का पंचकों में मरण होने से पंचकों की विधिपूर्वक शांति अवश्य करवानी चाहिए।
  7. बुधवार और शुक्रवार के दिन पड़ने वाले पुष्य नक्षत्र उत्पातकारी भी माने गए है। ऐसे में शुभ कार्यों से बचना चाहिए। जैसे विवाह करना, मकान खरीदना, गृह प्रवेश आदि। रवि तथा गुरु पुष्य योग सर्वार्थ सिद्धिकारक माना गया है।
  8. रविवार, मंगलवार, संक्राति का दिन, वृद्धि योग, द्विपुष्कर योग, त्रिपुष्कर योग, हस्त नक्षत्र में लिया गया ऋण कभी नहीं चुकाया जाता। अंत: उक्त दिन में ऋण का लेना-देना भी निषेध माना गया है।

    लेखक/ प्रेषक
    शुभाकांक्षी
    महामण्डलेश्वर
    आचार्य
    अशोकानंद जी महाराज
    अखाड़ा सूर्यवंशी
    पीठाधीश्वर / अध्यक्ष
    बिसरख धाम

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