दीपावली की तमसावृता रजनी में जलते हुए असंख्य दीप

सुखवीर सिंह आर्य
सुखवीर सिंह आर्य

महर्षि दयानन्द सरस्वती का महाप्रयाण अखण्ड प्रेरणा स्रोत

सुखवीर सिंह आर्य

भारतीय संस्कृति में दीपावली के त्यौहार का एक महत्वपूर्ण स्थान हैं। दीपावली हमें हर प्रकार की उत्तम प्रेरणा, शिक्षा और आनन्द प्रदान करने वाला सर्वश्रेष्ठ उत्सव है। इसे हम अज्ञान के अन्धकार में न डुबोयें, अपितु ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशमान करें। प्रतिदिन यज्ञ रचायें, वेद मन्त्रों की मधुर ध्वनि से, स्वाहा.स्वधाकार से धरती और आकाश को गुंजायमान कर दें। दीपों और यज्ञाग्रि के प्रकाश से अमावस्या के अन्धकार को दूर कर समूची वसुधा को जगमग.जगमग कर दें। सुविचारों.सुसंस्कारों और सत्संकल्पों से अपनी जीवन.ज्योति को प्रदीप्त करें। प्रकाश पर्व पर यज्ञ में उच्चार्यमाण मन्त्रों के अर्थ पर यदि हम चिन्तन करेंगे तो हमारा जीवन पथ आलोकित होगा।

जलते हुए असंख्य दीप
जलते हुए असंख्य दीप

असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्माऽमृतं गमय। हमें असत्य से सत्य की ओर, अन्धकार से प्रकाश की ओर तथा मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो, इन तीन प्रार्थनाओं में जीवन का समग्र सार अनुस्यूत है। असत्य, अन्धकार और मृत्यु पर विजय प्राप्त कर सत्यपथ गामी, ज्योतिष्मान होकर मोक्ष का अधिकारी बनना ही तो मानव जीवन का लक्ष्य है। पुरुषार्थ चतुष्ट्य में भी यही भाव ओत.प्रोत है। जलते हुए दीप इसी भाव को जागृत करते हैं। आत्मदीपो भव् का यही अभिप्राय है। हम अपने जीवन को जलते हुए दीपक के समान बनायें। दीपोत्सव हमारे भीतर इसी संकल्पना को जगाता है। इस पर्व को शारदीय नवसस्येष्टि भी कहा जाता है। वर्षभर में यही एक ऐसा अवसर होता है, जब हम अपने भवनों को स्वच्छ बनाने का अभियान चलाते है। विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव सारे दुर्गुण, दुर्व्यसनो की तरह घर का सारा कूड़ा.करकट दूर कर घर को निर्मल बनाना, केवल इसी त्यौहार के साथ जुड़ा हुआ है।

स्वामी दयानन्द
स्वामी दयानन्द

दीपावली की तमसावृता रजनी में जलते हुए असंख्य दीप हमें सन्देश देते हैं. मानव! अपने भीतर के अन्धकार को दूर कर परमात्म ज्योति से उसे आलोकित करो। जब तक काम, क्रोध, लोभ, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष आदि का अंधेरा दूर नहीं होगा, तब तक बाहर का प्रकाश भला क्या करेगा। आज इसी की सर्वाधिक आवश्यकता है। आज से करीब १३७ वर्ष पूर्व अपना जीवन दीप शान्त कर कोटि.कोटि मानवों के जीवन को ज्ञानालोक से आलोकित करने वाले युगप्रवर्तक, देशोद्धारक, आदित्य ब्रह्मचारी महर्षि दयानन्द सरस्वती का महाप्रयाण हम भारतवासियों के लिए अखण्ड प्रेरणा स्रोत है और सदैव प्रकाशमार्ग पर चलने की प्रेरणा देता रहेगा। प्रतिवर्ष दिवाली का पर्व उस महान् योगी के जीवन का पावन स्मरण कराता है। स्वामी दयानन्द के हम पर इतने उपकार हैं कि उन्हें गिनाया नहीं जा सकता। उनके महाप्रयाण का अलौकिक दृश्य आज भी हमें रोमांचित करता है, क्षौर कर्म कराके, स्नान आदि से निवृत्त होकर, पद्मासन लगाकर योग अवस्था में स्थित होकर मन्त्रोच्चारण करते हुए अंतिम श्वास लेने से पूर्व अलौकिक ईश्वरीय आभा से देदीप्यमान मुख चन्द्रमा वाले ऋषि ने प्रभु का स्मरण करते हुए कहा था. प्रभो तेरी इच्छा पूर्ण हा,ए तूने बड़ी लीला की। प्राणोत्सर्ग के इस अद्भुत दृश्य को देखकर नास्तिक गुरुदत्त महान् आस्तिक बन गए थे और कोटि.कोटि भारतीयों के अन्तःकरण प्रकाशमान हो गए। ऋषि के उपकारों को स्मरण करते हुए उर्दू के एक कवि ने कितना अच्छा लिखा है.

गिने जायें मुमकिन है सेहरा के जर्रे।

समुन्दर के कतरे फलक के सितारे।।

मगर कैसे मुमकिन है कि गिन सकें हम।

जो अहसां किये हैं ऋषि ने वे सारे।।

असंख्य दीप
असंख्य दीप
महर्षि दयानन्द निर्वाणोत्सव के दूसरे दिन गोवर्धन का अनुष्ठान भी प्रबल प्रेरणा देने वाला है। हमने गौ को माँ कहकर पुकारा है। गौ को सर्वदेवमयी कहा जाता है। भगवती श्रुति कहती हैं. माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभि। यह रुद्रों की माताए वसुओं की पुत्री एवं आदित्यों की भगिनी और अमृत की नाभि है। महर्षि दयानन्द ने गोकरुणानिधि नामक अपनी अमर कृति में गौ माता के उपकारों की गौरव गाथा वर्णित की है और कहा है कि कृषि प्रधान भारत देश की अर्थव्यवस्था का केन्द्र बिन्दु जिस दिन गौ माता होगी, उस दिन यह देश विश्व का सर्वधिक वैभवशाली, स्वस्थ, रोगरहित राष्ट्र होकर विश्वगुरु पद को प्राप्त कर सकेगा।

लेखकः- सुखवीर सिंह आर्य, वैदिक विचारधारा से ओतप्रोत और सामाजिक चिंतक व विचारक हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate

can't copy

×