भारी-भरकम दान-दहेज और दिखावे वाली शादियों से गुर्जर समाज की किरकिरी

समाज सुधार की दिशा में अग्रणीयों और राजनीतिक हस्तियों को पहल करनी होगी

✍️ लेखक: कर्मवीर नागर प्रमुख, सामाजिक चिंतक एवं विचारक


प्रस्तावना

हर समाज की पहचान उसके संस्कार, परंपरा और सामाजिक मूल्यों से होती है। गुर्जर समाज भी अपने साहस, वीरता और परिश्रम के लिए पूरे देश में जाना जाता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में एक गंभीर कुरीति ने समाज की छवि को गहरी चोट पहुँचाई है। यह कुरीति है – भारी-भरकम दान-दहेज और दिखावे वाली शादियाँ

इन शादियों ने समाज के मध्यम और गरीब वर्ग की कमर तोड़ दी है। बेटियों के विवाह के समय परिवारों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ डालकर यह प्रथा न केवल परिवारों को कर्जदार बना रही है बल्कि समाज की छवि को भी धूमिल कर रही है।


दान-दहेज: बोझ से बढ़कर अभिशाप

गुर्जर समाज में आज दान-दहेज का प्रचलन सिर्फ एक “रिवाज” नहीं रहा बल्कि “प्रतिष्ठा की होड़” बन चुका है।

  • मध्यम वर्ग के परिवार, जिनके पास सीमित संसाधन हैं, मजबूरी में अपनी बेटियों की शादी में लाखों-करोड़ों खर्च करने को विवश हो जाते हैं।
  • यह आर्थिक बोझ उन्हें कर्ज और सामाजिक अपमान की दलदल में धकेल देता है।

असलियत यह है कि भारी-भरकम दान-दहेज से की गई कई शादियाँ कुछ ही समय में टूटने के कगार पर पहुँच जाती हैं। पंचायतों में होने वाले शादी विच्छेद (तलाक) के मामलों का बड़ा प्रतिशत गुर्जर समाज में देखने को मिल रहा है, जो चिंता का विषय है।


समाज की किरकिरी और अन्य जातियों का मखौल

जहाँ कुछ लोग ऐसी शादियों को “शान” मानकर उनकी प्रशंसा करते हैं, वहीं दूसरी ओर अन्य जातियाँ गुर्जर समाज की आलोचना करके समाज की हंसी उड़ाती हैं

  • वे कहते हैं कि “गुर्जर समाज में शादी = दिखावा + दहेज”।
  • यह तंज समाज की गंभीर छवि को नुकसान पहुँचा रहा है।

गुर्जर समाज की युवा पीढ़ी, जो शिक्षा और रोजगार में आगे बढ़ रही है, उसके सामने यह कुरीति बेड़ियों की तरह है।


निक्की भाटी हत्याकांड: समाज के लिए सबक

ग्रेटर नोएडा के सिरसा गाँव का निक्की हत्याकांड केवल एक आपराधिक घटना नहीं थी बल्कि पूरे समाज के लिए चेतावनी थी। भले ही उसके कारण अलग-अलग रहे हों, लेकिन इस घटना ने पूरे देश को हिला दिया।

इस घटना के बाद समाज को आत्ममंथन करना चाहिए था कि आखिर ऐसी स्थिति क्यों उत्पन्न होती है? लेकिन दुर्भाग्य है कि लोगों ने इसे सिर्फ एक समाचार बनाकर छोड़ दिया।


दिखावे की बीमारी और नवधनाढ्य वर्ग

आजकल कुछ लोग, जिन्होंने हाल ही में आर्थिक समृद्धि पाई है, उन्होंने सामाजिक योगदान करने के बजाय शादी समारोहों को प्रचार का माध्यम बना लिया है

  • करोड़ों रुपये खर्च करके, बारात में विदेशी गाड़ियाँ, फिल्मी कलाकारों के शो और फिजूलखर्ची का दिखावा करके समाज में “मैं बड़ा हूँ” साबित करने की होड़ लगी है।
  • इन आयोजनों के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते हैं और लोग वाहवाही करते हैं।

लेकिन सच्चाई यह है कि यह सब समाज के लिए कलंक है।


सामाजिक दुष्परिणाम

  1. मध्यम वर्ग की कमर टूटी – दहेज और दिखावे की प्रतिस्पर्धा ने गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों को बर्बादी की कगार पर ला दिया।
  2. परिवारों का विघटन – दहेज से जुड़ी समस्याओं ने कई वैवाहिक संबंधों को टूटने पर मजबूर किया।
  3. युवा पीढ़ी पर दबाव – बेटियों के परिवारों में तनाव और चिंता बढ़ गई है।
  4. समाज की छवि धूमिल – अन्य जातियाँ इसका मज़ाक बनाती हैं।

समाधान की राह

👉 समाज के अग्रणीय और राजनीतिक सेलिब्रिटी आगे आएं
यदि गुर्जर समाज के अग्रणीय लोग और राजनीतिक हस्तियाँ यह प्रण कर लें कि वे ऐसी शादियों में शिरकत नहीं करेंगे, तो निश्चित रूप से इसका बड़ा असर पड़ेगा।

👉 प्रण-पत्र और सार्वजनिक घोषणा

  • सभी प्रभावशाली लोग प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक बयान जारी करें कि वे दहेज और दिखावे वाली शादियों में भाग नहीं लेंगे।
  • इससे आम लोग भी अनुकरण करेंगे और धीरे-धीरे इस कुप्रथा पर अंकुश लगेगा।

👉 सोशल मीडिया पर रोक

  • ऐसी शादियों के वीडियो वायरल करना बंद होना चाहिए।
  • समाज और सरकार को इस दिशा में नियम बनाने चाहिए ताकि कुरीति का प्रचार न हो।

👉 युवा पीढ़ी की भूमिका

  • युवाओं को यह प्रण लेना होगा कि वे बिना दहेज और सादगी से विवाह करेंगे।
  • इस बदलाव की असली शक्ति नई पीढ़ी ही है।

कानूनी पहलू

भारतीय दंड संहिता (IPC) और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के तहत दहेज देना और लेना दोनों दंडनीय अपराध हैं।

  • कानून के अनुसार दहेज मांगने पर 5 साल तक की सज़ा और 15,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
  • लेकिन विडंबना यह है कि समाज के लोग ही कानून की धज्जियां उड़ाते हैं।

कानूनी डिस्क्लेमर:

यह आलेख केवल सामाजिक जागरूकता और सुधार के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। किसी संस्था, व्यक्ति या संगठन की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाना उद्देश्य नहीं है। यदि किसी नाम, घटना या प्रसंग का उल्लेख हुआ है तो वह केवल उदाहरण स्वरूप है।


निष्कर्ष

भारी-भरकम दान-दहेज और दिखावे वाली शादियाँ आज गुर्जर समाज की सबसे बड़ी सामाजिक बीमारी बन चुकी हैं।

  • इससे परिवार टूट रहे हैं।
  • मध्यम वर्ग बर्बाद हो रहा है।
  • समाज की छवि धूमिल हो रही है।

यदि समाज के जागरूक और अग्रणीय लोग इस कुप्रथा के खिलाफ खड़े नहीं हुए तो आने वाली पीढ़ियाँ इस बीमारी का ठीकरा आज के नेताओं और सामाजिक प्रतिनिधियों के सिर फोड़ेंगी।

इसलिए अब समय आ गया है कि सभी लोग सादगीपूर्ण विवाह को बढ़ावा दें और दान-दहेज व दिखावे को सख्ती से नकार दें।


लेखक परिचय

कर्मवीर नागर प्रमुख
एक सामाजिक चिंतक और विचारक हैं, जो समाज की कुरीतियों और सुधार के विषयों पर बेबाक लेखन करते हैं।


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