
गुरु नानक देव महाराज जयंती प्रकाश पर्व
–मौहम्मद इल्यास “दनकौरी–
गुरु नानक देव महाराज जयंती, जिसे प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है, भारतीय अध्यात्म, सामाजिक चेतना और वैश्विक मानवीय मूल्यों का अद्वितीय उत्सव है। यह दिन न केवल सिख पंथ के प्रथम गुरु गुरु नानक देव के जन्म दिवस का प्रतीक है, बल्कि यह उदारता, समता, सत्य, सेवा और ईश्वर की एकता पर आधारित जीवन पथ का भी संकेत करता है। पांच शताब्दियों से अधिक समय बीत जाने के बाद भी गुरु नानक का संदेश मानवता के लिए उतना ही प्रासंगिक, प्रेरक और मार्गदर्शक है, जितना उनके समय में था।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य और जन्म
गुरु नानक का जन्म 1469 में तलवंडी (वर्तमान ननकाना साहिब, पाकिस्तान) में हुआ। उनके पिता मेहता कालू स्थानीय प्रशासन में कार्यरत थे और माता तृप्ति गृहस्थ जीवन की मर्यादाओं और धार्मिक संस्कारों से सम्पन्न थीं। बचपन से ही नानक असाधारण बुद्धिमत्ता, आध्यात्मिक चिंतन और मानवता के प्रति गहन संवेदना के धनी थे। पारंपरिक धार्मिक कर्मकांडों में उनकी रुचि कम थी, बल्कि वे ईश्वर के नाम सिमरण, दया, समानता और सच्चे आचरण पर ध्यान केंद्रित करते थे।
आध्यात्मिक दर्शन
गुरु नानक का दर्शन अत्यंत व्यापक और बहुआयामी है। उनके विचार निम्न आधारों पर टिके हैं:
• एक ओंकार: ईश्वर एक है, निराकार है, सर्वव्यापक है और समस्त सृष्टि उसका प्रतिबिंब है। • नाम जपना: ईश्वर के नाम का स्मरण आत्मा को शुद्ध करता है और मन को स्थिरता प्रदान करता है। • किरत करनी: ईमानदारी और परिश्रम से जीवन यापन करना मनुष्य का धर्म है। • वंड छकना: समाज के जरूरतमंदों के साथ भोजन और संसाधनों का साझा करना मानवीय एकता का आधार है। • समानता और भाईचारा: स्त्री-पुरुष समानता, जाति-वर्णभेद का विरोध, और मानवता को सर्वोपरि रखना उनका मुख्य संदेश है।
सामाजिक सुधार और यात्राएं
गुरु नानक ने अपने जीवन का बड़ा भाग मानव upliftment और धार्मिक कुरीतियों के उन्मूलन में लगाया। उन्होंने चार प्रमुख यात्रा-चक्र (उदासियाँ) किए, जिनमें हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध, जैन और सूफी परंपराओं के विद्वानों से संवाद किया। वे मक्का, हरिद्वार, काशी, तिब्बत और श्रीलंका जैसे अनेक स्थानों पर गए और जहां-जहां गए, वहां सत्य, सेवा और समानता का संदेश फैलाया।
उनका संदेश था कि धर्म विभाजन का नहीं, बल्कि आत्मोन्नति और समाज सुधार का साधन है। उन्होंने जातीय भेदभाव, पाखंड, रूढ़िवाद और बाह्य आडंबर का विरोध किया तथा कर्म, दया और सत्य पर आधारित जीवन को सर्वोच्च बताया।
गुरबाणी और आध्यात्मिक साहित्य
गुरु नानक की वाणी, जिसे गुरबाणी कहा जाता है, बाद में गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हुई। इसमें आध्यात्मिक ज्ञान, जीवन का यथार्थ, और ईश्वर भक्ति का सार निहित है। उनकी वाणी आत्मा को जाग्रत करने वाली, मन को पवित्र करने वाली और समाज को दिशा प्रदान करने वाली है।
उनकी पंक्ति “न को बैरी नहि बिगाना, सगल संग हम कौं बन्ध” सम्पूर्ण मानवता को एक परिवार के रूप में देखने का संदेश देती है।
आधुनिक सन्दर्भ में प्रासंगिकता
आज के युग में जब दुनिया संघर्षों, प्रदूषण, असमानता, धार्मिक कट्टरता और मानसिक तनाव से जूझ रही है, गुरु नानक की शिक्षाएं मार्गदर्शक प्रकाश की तरह सामने आती हैं:
• पर्यावरण संरक्षण: वे प्रकृति को ईश्वर की रचना और पूजा योग्य मानते थे। • मानव समानता: आज भी जाति, धर्म, नस्ल और लैंगिक भेदभाव समाज की चुनौतियां हैं। उनके सिद्धांत समाधान प्रस्तुत करते हैं। • सेवा भाव: लंगर की परंपरा इसका उत्कृष्ट उदाहरण है। • परिश्रम और ईमानदारी: प्रतिस्पर्धी विश्व में नैतिक कार्यशैली का महत्व और बढ़ गया है।
गुरु नानक का सामाजिक-राजनीतिक दृष्टिकोण
गुरु नानक का दृष्टिकोण केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक-राजनीतिक सुधार की ओर भी केंद्रित था। उन्होंने सत्ता, लालच, अन्याय और शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई। उनका संदेश सत्ता के धर्म के बजाय, धर्म की सत्ता की स्थापना के लिए था, जहां नैतिकता और मानव मूल्य सर्वोपरि हों।
धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह मानवीय चेतना, आध्यात्मिक जागरण और सामाजिक बंधुत्व का महोत्सव
गुरु नानक देव महाराज की जयंती केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह मानवीय चेतना, आध्यात्मिक जागरण और सामाजिक बंधुत्व का महोत्सव है। उनका जीवन, वाणी और कार्य युगों तक प्रेरणा देते रहेंगे। आज आवश्यकता है कि उनके सिद्धांतों को गृहस्थ जीवन, सामाजिक व्यवहार और राष्ट्र निर्माण में उतारा जाए।

कानूनी डिस्क्लेमर
इस लेख का उद्देश्य केवल ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संदर्भों पर आधारित जानकारी प्रस्तुत करना है। यह लेख किसी भी धर्म, समूह, विचारधारा या व्यक्ति का पक्ष लेने, अपमान करने या विवाद उत्पन्न करने के उद्देश्य से नहीं लिखा गया है। प्रस्तुत सभी जानकारी ऐतिहासिक और प्रसिद्ध स्रोतों पर आधारित है और केवल जन-सामान्य सूचना, अध्ययन एवं प्रेरणा हेतु है। पाठक किसी भी धार्मिक निर्णय, व्यक्तिगत विश्वास या कानूनी उद्देश्य के लिए स्वतंत्र स्रोतों एवं विशेषज्ञ सलाह का उपयोग करें। लेख में प्रयुक्त सभी नाम, घटनाएं और विवरण उच्च श्रद्धा एवं तटस्थ भाव से उल्लिखित हैं। इस लेख के आधार पर किसी भी प्रकार के दावे, विवाद, धार्मिक व्याख्या, न्यायिक कार्यवाही या सामाजिक टिप्पणी के लिए लेखक/प्रस्तुतकर्ता उत्तरदायी नहीं होगा।
लेखक
लेखक: मौहम्मद इल्यास “दनकौरी” — पत्रकार, सामाजिक चिंतक और विचारक हैं।
यह लेख ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन, धार्मिक साहित्य और मानवीय दर्शन के आधार पर विश्लेषणात्मक शैली में प्रस्तुत किया गया है। इसका उद्देश्य गुरु नानक देव महाराज के जीवन, उपदेशों और मानवीय मूल्यों का शास्त्रसम्मत, समावेशी एवं विवेचनात्मक प्रस्तुतीकरण करना है।