अधिनियम में कोई भूमिका न होने के बावजूद सरकार की असीमित दखलंदाजी से पंगु बन गए हैं औद्योगिक विकास प्राधिकरण
–राजेश बैरागी-
उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास प्राधिकरणों की प्रकृति क्या है? क्या ये प्राधिकरण उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास प्राधिकरण अधिनियम 1976 के अनुसार स्ववित्त पोषित होने के बावजूद स्वायत्तशासी संस्थान भी हैं? व्यापक महत्व के मामलों को छोड़िए, छोटी से छोटी बातों के लिए भी लखनऊ की ओर टकटकी लगाकर देखने वाले इन प्राधिकरणों में अन्तर प्राधिकरण तबादला नीति लागू होने के बाद इन प्राधिकरणों की हालत नगर निकायों से भी बद्तर हो गई है।
यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि उत्तर प्रदेश राज्य के ताज समझे जाने वाले जनपद गौतमबुद्धनगर के तीनों औद्योगिक विकास प्राधिकरण यीडा, ग्रेटर नोएडा और नोएडा में नियुक्त श्रेष्ठ आईएएस अधिकारी केवल रबर स्टाम्प बनकर रह गए हैं।इन प्राधिकरणों में मुख्य कार्यपालक अधिकारी का पद सबसे महत्वपूर्ण होता है। उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास अधिनियम 1976 में वर्णित मुख्य कार्यपालक अधिकारी को असीमित शक्तियां प्रदान की गई हैं। यदि वह मुख्य कार्यपालक अधिकारी के साथ साथ अध्यक्ष भी है (एक डेढ़ दशक पहले तक ऐसा ही होता था) तो नीति निर्धारण और उनके अनुपालन की समस्त शक्तियां एक ही व्यक्ति में निहित होती थीं।तब प्रमुख सचिव स्तर के आईएएस अधिकारी को नोएडा ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों का अध्यक्ष सह मुख्य कार्यपालक अधिकारी नियुक्त किया जाता था। समय के साथ इस व्यवस्था में बदलाव आया और कनिष्ठ तथा प्रोन्नति पाकर आईएएस बने अधिकारियों को यहां केवल मुख्य कार्यपालक अधिकारी के तौर पर नियुक्त किया जाने लगा। इसके साथ ही इन प्राधिकरणों में राज्य सरकार की दखलंदाजी बढ़ने लगी। अधिनियम में इन प्राधिकरणों के कार्यों में राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं बताई गई है सिवाय शीर्ष अधिकारियों की नियुक्ति करने के। वर्तमान में किसानों से संबंधित जितने भी मामले उलझे हुए हैं उनमें सरकार का बिना कारण पांव फंसा हुआ है।
बिल्डरों को अंधाधुंध भूमि का आवंटन तत्कालीन सरकार के आदेश पर किया गया जिसका खामियाजा फ्लैट खरीदार तो भुगत ही रहे हैं, प्राधिकरणों को भी उनकी भूमि का पैसा नहीं मिल पाया है। अब तो औद्योगिक भूखंडों के आवंटन की नीति भी राज्य सरकार ही तय कर रही है। तो फिर यहां नियुक्त किए गए उत्तर प्रदेश के श्रेष्ठ आईएएस अधिकारी क्या केवल सरकार के एजेंट के तौर पर काम कर रहे हैं जो केवल आवंटियों से राजस्व उगाही व आवंटन पत्र जारी करते हैं? इनमें से एक प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने तो सरकार की दखलंदाजी से आजिज आकर यहां तक कहा कि मैं बिना किसी से कुछ भी पूछे फलां काम कर दूंगा, फिर मेरा कोई क्या कर लेगा। हालांकि यह केवल आक्रोश में व्यक्त विचार थे,अब राज्य सरकार की इच्छा के विरुद्ध इन प्राधिकरणों में पत्ता हिलना भी संभव नहीं रहा है। तो क्या इन प्राधिकरणों में व्याप्त भ्रष्टाचार भी राज्य सरकार की इच्छा पर हो रहा है? अधिनियम इस प्रश्न पर पूरी तरह मौन है।
लेखक:- राजेश बैरागी ,स्वतंत्र पत्रकार, सामाजिक विचारक और चिंतक हैं।