पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी: अदम्य संकल्प, दूरदर्शिता और राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की प्रतीक


चौधरी शौकत अली चेची

भारत की प्रथम और अब तक की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी भारतीय इतिहास की उन विलक्षण शख्सियतों में सम्मिलित हैं, जिन्होंने अपने राजनीतिक कौशल, निर्णायक नेतृत्व और राष्ट्रीय हित के प्रति अटूट निष्ठा से देश को विश्व पटल पर विशिष्ट पहचान दिलाई। उनका जन्म 19 नवंबर 1917 को प्रयागराज में कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ। पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री रहे तथा माता कमला नेहरू स्वतंत्रता संग्राम की सक्रिय सहभागी थीं। इंदिरा गांधी का बचपन राजनीतिक उथल-पुथल और व्यक्तिगत संघर्षों से घिरा रहा। माता की असमय मृत्यु और पिता की जेल यात्राओं ने उनमें असाधारण धैर्य, आत्मनिर्भरता और संघर्षशीलता का विकास किया।

विश्व-भारती, जेनेवा और ऑक्सफोर्ड सहित प्रतिष्ठित संस्थानों से शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात उन्होंने 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की। 26 मार्च 1942 को उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी फिरोज गांधी से वैवाहिक संबंध स्थापित किए। स्वतंत्रता के पश्चात वह नेहरू जी की सहयोगी रहीं और 1959 में कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं। 1964 में राज्यसभा सदस्य बनने के बाद वह लाल बहादुर शास्त्री मंत्रिमंडल में सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहीं। शास्त्री जी के निधन के बाद उन्होंने 24 जनवरी 1966 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।

इंदिरा गांधी का नेतृत्व काल लगभग 15 वर्ष रहा। 1966 से 1977 तथा पुनः 1980 से 1984 तक वह भारत की प्रधानमंत्री रहीं। उनके कार्यकाल में भारत ने राजनीतिक, आर्थिक, सामरिक और कृषि क्षेत्रों में ऐतिहासिक उपलब्धियां प्राप्त कीं। 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण, प्रिवी पर्स की समाप्ति, ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग विस्तार, औद्योगिक क्षेत्र में राज्य नियंत्रण, हरित क्रांति के माध्यम से खाद्य आत्मनिर्भरता, 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश का निर्माण, भारत सोवियत मैत्री संधि, 1974 का परमाणु परीक्षण और सीमावर्ती राज्यों का गठन जैसे निर्णयों ने भारत को आत्मनिर्भरता और सशक्त राष्ट्रवाद की दिशा में अग्रसर किया। उनके नेतृत्व में भारतीय लोकतंत्र ने चुनौतियों का सामना किया। 1975 का आपातकाल राजनीतिक विमर्श का महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसका मूल्यांकन समय, इतिहास और जनमत द्वारा विविध दृष्टियों से किया जाता रहा है। आलोचना और प्रशंसा के मध्य खड़ी इंदिरा गांधी सदैव परिवर्तन हेतु दृढ़ संकल्पित रहीं।

31 अक्टूबर 1984 को दो अंगरक्षकों द्वारा उनकी हत्या कर दी गई। यह घटना राष्ट्र के लिए गहरा आघात थी। इसके उपरांत हुए सांप्रदायिक दंगों ने सामाजिक ताने-बाने को चोट पहुंचाई। यद्यपि विवादों के बावजूद किंतु यह निर्विवाद तथ्य है कि इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय एकता, सामरिक आत्मनिर्भरता और आर्थिक सुदृढ़ीकरण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। उन्हें भारत रत्न (1971) और बांग्लादेश द्वारा स्वतंत्रता सम्मान (2011, मरणोपरांत) प्रदान किया गया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उन्हें दृढ़ इच्छाशक्ति और निर्णायक नेतृत्व के लिए सम्मानित किया जाता है। इतिहास में उनकी पहचान एक साहसी, प्रखर और जनोन्मुखी नेतृत्व के रूप में सुदृढ़ है।

आज उनकी 41वीं पुण्यतिथि पर समस्त राष्ट्र उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है। उनके द्वारा स्थापित मूल्यों को कांग्रेस नेतृत्व, विशेषतः श्रीमती सोनिया गांधी, राहुल गांधी तथा प्रियंका गांधी आगे बढ़ाने का संकल्प निरंतर व्यक्त करते रहे हैं। इंदिरा गांधी की विरासत भारतीय राज्य व्यवस्था में सशक्तिकरण, आत्मनिर्भरता और सामाजिक न्याय की निरंतर प्रेरणा के रूप में बनी रहेगी।


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यह लेख ऐतिहासिक तथ्यों, सार्वजनिक अभिलेखों और सामान्यतः स्वीकृत स्रोतों पर आधारित विश्लेषणात्मक प्रस्तुति है। प्रस्तुत सामग्री किसी राजनीतिक दल, संस्था अथवा व्यक्ति के समर्थन या विरोध के उद्देश्य से नहीं है। यह लेख लेखक के सामाजिक-चिंतनात्मक दृष्टिकोण का सुसंगत प्रतिपादन है जिसका प्रयोजन ऐतिहासिक जानकारी और सार्वजनिक जागरूकता है। किसी भी प्रकार की वैचारिक व्याख्या या निष्कर्ष का आशय कानूनी, राजनीतिक या सामाजिक विवाद उत्पन्न करना नहीं है।


इंदिरा गांधी जी को शत-शत नमन
भारत माता की जय

लेखक: चौधरी शौकत अली चेची, सामाजिक चिंतक एवं विचारक हैं।

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