
चौधरी शौकत अली चेची
पंजाब : कृषि की जननी का डूबना
पंजाब को देश की अन्न भंडार और हरित क्रांति का जन्मदाता कहा जाता है। वही पंजाब आज 1988 के बाद की सबसे भयावह बाढ़ से गुजर रहा है।
26 अगस्त 2025 को रावी नदी का बांध टूट गया।

1 सितंबर 2025 को हथिनीकुंड से लगभग 3 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया।
23 जिले बाढ़ की चपेट में हैं।
1655 गांव डूब चुके हैं।
40 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
करीब 3 लाख हेक्टेयर खड़ी फसल तबाह हो चुकी है।
हजारों मवेशी बह गए और सैकड़ों मवेशी पाकिस्तान की ओर भी बह गए।
पंजाब की धरती, जिसने देश को अन्न दिया, दूध दिया और सीमाओं की हिफाजत के लिए लाखों बेटे दिए, आज राजनीति की बेरुखी का शिकार है।

हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड : प्राकृतिक आपदा और मानवीय संकट
भारी बारिश, भूस्खलन और बादल फटने ने हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में तबाही मचा दी है। सतलुज, व्यास, रावी और मौसमी नाले खतरे के निशान से ऊपर बह रहे हैं। पहाड़ी इलाकों में सड़कें, पुल और मकान बह गए हैं।
उत्तराखंड में बादल फटने और भूस्खलन ने गांव-गांव को तबाह कर दिया है। हजारों परिवार उजड़ गए हैं।
उत्तर प्रदेश और गौतमबुद्ध नगर : किसानों पर दोहरी मार
गौतम बुद्ध नगर, जिसे 100 विंडो कहा जाता है और जो उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में सबसे ज्यादा रेवेन्यू देता है, वह भी बाढ़ की चपेट में है।
ग्रेटर नोएडा के कासना क्षेत्र सहित कई गांवों में पानी घुस गया है।
धान की हजारों एकड़ फसल बर्बाद हो चुकी है।
सुरक्षा और संसाधन के लिहाज से हालात शून्य हैं।
जुलाई 2023 में भी बाढ़ ने यहां हजारों एकड़ फसल चौपट की थी। यानी किसानों के लिए यह हर साल की स्थायी त्रासदी बन चुकी है।

राजस्थान से लेकर बंगाल तक : पूरे देश में तबाही
राजस्थान जैसे सूखा प्रभावित राज्य भी इस बार बाढ़ से नहीं बच सके।
बिहार, असम, बंगाल, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश में बाढ़ ने करोड़ों लोगों को प्रभावित किया है।
देशभर में अनुमानित 4 लाख करोड़ रुपये का नुकसान अब तक दर्ज किया गया है।
भारत में हर साल लगभग 34.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित होता है।
उत्तर प्रदेश : 7.3 लाख हेक्टेयर
बिहार : 4.2 लाख हेक्टेयर
पंजाब : 3.9 लाख हेक्टेयर
राजस्थान : 3.3 लाख हेक्टेयर
असम : 3.1 लाख हेक्टेयर
हर साल बाढ़ लगभग ₹14 अरब का सीधा नुकसान करती है।
36.8 लाख हेक्टेयर फसल बर्बाद होती है।
औसतन 1700 लोगों की मौत होती है।
करीब 97 हजार मवेशी मर जाते हैं।
नेता वोट की फसल काटने में व्यस्त
सबसे बड़ी चिंता यह है कि जब जनता बाढ़ से जूझ रही थी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन से लौटकर सीधे बिहार चुनावी रैलियों में वोट मांगने पहुंच गए। सत्ता पक्ष अपनी प्रशंसा और पैकेजों में उलझा है, जबकि विपक्ष केवल बयानबाजी कर रहा है।
जनता के टैक्स से अरबों रुपये रैलियों और सुरक्षा में खर्च किए जाते हैं। लेकिन बाढ़ राहत के नाम पर केवल “दिखावा और फोटो सेशन” होता है।
किसान की अनदेखी और उद्योगपतियों की मौज
उद्योगपतियों के खरबों रुपये माफ कर दिए जाते हैं।
किसानों के नाममात्र कर्ज तक माफ नहीं होते।
बाढ़ से तबाह किसानों को राहत के नाम पर केवल कागजों में पूर्ति दिखाई जाती है।
याद रखिए, कोरोना लॉकडाउन के समय जब हर सेक्टर रसातल में चला गया था, तब किसान ही थे जिन्होंने देश को भूखा नहीं सोने दिया।
इंसानियत बनाम राजनीति
जहां नेता और सरकारें केवल राजनीति में उलझी हैं, वहीं असल राहत इंसानियत से मिल रही है।
मस्जिदें और मदरसे बाढ़ पीड़ितों के लिए अपने दरवाजे खोल रहे हैं।
किसान संगठन और सामाजिक संस्थाएं राहत सामग्री पहुंचा रही हैं।
हरियाणा के मेवात से लोग पंजाब और अन्य प्रभावित क्षेत्रों में राहत सामग्री लेकर जा रहे हैं।
यही असली भारत की तस्वीर है—जहां जाति और धर्म से ऊपर उठकर इंसानियत खड़ी होती है।
स्थायी समाधान की आवश्यकता
बाढ़ केवल राहत और बचाव से नहीं रुक सकती। इसके लिए स्थायी समाधान की जरूरत है—
- नदियों का वैज्ञानिक प्रबंधन।
- मजबूत तटबंध और बांध।
- ड्रेनेज और जलनिकासी सिस्टम का आधुनिकीकरण।
- किसानों को 100% नुकसान की भरपाई।
- आपदा प्रबंधन को राजनीतिक नियंत्रण से बाहर निकालना।

जब किसान की आंख में आंसू—-
आज समय आ गया है कि जनता जाति और धर्म से ऊपर उठकर अपने अधिकारों के लिए सवाल करे। जो नेता और सेवक अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते, वे लोकतंत्र नहीं बल्कि तानाशाही के प्रतीक हैं।
जब किसान की आंख में आंसू होता है तो धरती भी कांपती है।
“जय जवान, जय किसान” केवल नारा नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है और इस आत्मा को बचाने के लिए राजनीति की नहीं, बल्कि इंसानियत और संवेदना की जरूरत है।
👉 लेखक:- चौधरी शौकत अली चेची, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, किसान एकता (संघ) एवं पिछड़ा वर्ग सचिव, समाजवादी पार्टी, उत्तर प्रदेश ,सामाजिक चिंतक और विचारक हैं।