
दस्तान-ए-कर्बला (पार्ट-3)
यजीद की हुकूमत के खात्मे से लेकर इमाम मेहदी के दौर तक
✍️ रिपोर्ट: मौहम्मद इल्यास “दनकौरी”
प्रस्तावना
कर्बला की त्रासदी केवल एक युद्ध नहीं थी, यह इंसानियत, सच्चाई, हक और अन्याय के बीच एक ऐतिहासिक टकराव थी। यह टकराव यजीद जैसे जालिम शासक और इमाम हुसैन जैसे न्यायप्रिय रहनुमा के बीच हुआ था। इमाम हुसैन की शहादत ने इस्लाम के असली उसूलों को ज़िंदा किया। लेकिन क्या इसके बाद जालिमों को उनके कर्मों की सजा मिली? क्या यजीद को उसका अंजाम मिला? इमाम मेहदी का इंतजार क्यों अब भी जारी है? इस लेख में हम इन तमाम सवालों के जवाब ऐतिहासिक संदर्भों के साथ तलाशेंगे।
- कैसे इमाम हुसैन के परिवार, खासकर औरतों की मौत यजीद की हिरासत में हुई?
कर्बला की लड़ाई के बाद जब इमाम हुसैन और उनके साथियों को शहीद कर दिया गया, तब उनके घर के औरतों, बच्चों और इमाम हुसैन के इकलौते जीवित बेटे, इमाम जैनुल आबिदीन (अली इब्ने हुसैन) को गिरफ़्तार कर लिया गया।
यह काफिला कूफ़ा से दमिश्क (यजीद की राजधानी) तक अपमानजनक स्थिति में ले जाया गया। यह सफर कई हफ़्तों तक चला, जिसमें बेपर्दा औरतों को ऊँटों पर बिना सवारी के बिठाया गया, बच्चे भूख और प्यास से बेहाल हो गए।
रूख़ैय्या बिंते हुसैन, इमाम हुसैन की छोटी बेटी, दमिश्क के क़ैदखाने में अपने पिता का सिर देखकर शोक में चल बसी। कुछ और औरतें, जिनमें बूढ़ी ज़ैनब बिन्ते अली की सेविकाएं भी थीं, दमिश्क की जेलों में बीमारी और सदमे से मौत को गले लगा गईं।
यह मौतें न केवल शारीरिक तकलीफों से हुईं, बल्कि अपमान, मानसिक यातना और बेरहमी की इंतिहा ने उनकी रूह को तोड़ दिया।
- यजीद की मौत कैसे हुई?
इतिहासकारों में यजीद की मौत को लेकर अलग-अलग मत हैं, लेकिन कई इस्लामी इतिहासकारों के मुताबिक यजीद को अचानक मौत आई थी।
कहा जाता है कि:
वह शराब और अश्लीलता का आदी था।
अपनी अत्यधिक विलासिता और अनैतिक जीवनशैली के चलते उसकी मौत 33 साल की उम्र में, 683 ईस्वी में हो गई।
कुछ शिया स्रोतों के अनुसार यजीद की मौत खतरनाक बीमारी (संभवत: आंतरिक सड़न या प्लेग) से हुई, जिसमें वह तड़प-तड़प कर मरा।
यजीद की मौत को कर्बला के “गुनाहों की सजा” के रूप में भी देखा जाता है। कर्बला के बाद उसका शासन केवल तीन साल ही चल पाया, और फिर उसकी औलाद सत्ता में नहीं टिक सकी।

- इमाम हुसैन के कातिलों – इब्ने ज़ियाद और उबर – की मौत कैसे हुई?
🔴 उबैदुल्लाह इब्ने ज़ियाद (गवर्नर ऑफ कूफ़ा):
यह वही शख्स था जिसने यजीद के आदेश पर इमाम हुसैन को शहीद करने का इंतजाम किया।
कर्बला के बाद वह कुछ समय तक सत्ता में रहा।
बाद में उसे मुख्तार साक़फी के विद्रोह का सामना करना पड़ा।
684 ई. में खज़िर नदी की लड़ाई में इब्ने ज़ियाद मारा गया।
बताया जाता है कि वह मौत से पहले घंटों तड़पता रहा, और उसका सिर काट कर कोफ़ा लाया गया, ठीक उसी तरह जैसे इमाम हुसैन का सिर दमिश्क लाया गया था।
🔴 शिम्र इब्ने जौशन (उबर):
यह वो शख्स था जिसने कर्बला में इमाम हुसैन का गला काटा।
शिया और सुन्नी इतिहासकारों के अनुसार, मुख्तार साक़फी की सेना ने शिम्र को पकड़ कर जिंदा जला दिया।
कुछ रोایतों में है कि उसने मौत से पहले अपने किए पर पछतावा जताया, लेकिन उसे माफ नहीं किया गया।
इन कातिलों की मौतें बता देती हैं कि अन्याय का अंजाम कितना भयावह हो सकता है।

- कर्बला की जीत के बाद किस बादशाह की हुकूमत कायम हुई?
कर्बला के कुछ वर्षों बाद यजीद और उसकी औलाद की हुकूमत टूट गई।
इसके बाद उम्मयद शासन में मारवान बिन हकम, फिर अब्दुल मलिक बिन मारवान और आगे चलकर हज्जाज बिन यूसुफ जैसे अत्याचारी गवर्नरों का दौर आया।
हालांकि, कर्बला की घटना ने धीरे-धीरे उम्मयद शासन को जड़ से कमजोर कर दिया। अंततः 750 ईस्वी में अब्बासी खिलाफत ने उम्मयदों को समाप्त कर दिया।
अब्बासी खलीफा अबुल अब्बास सफ्फाह ने सत्ता संभाली और उम्मयद राजवंश के अधिकतर सदस्यों को खत्म कर दिया।
- कर्बला के बाद से अब तक किन इमामों की खिलाफत (इमामत) कायम हुई?
शिया मत के अनुसार, अल्लाह ने कुल 12 इमामों को बतौर रहनुमा नियुक्त किया:
- इमाम अली (अ.स)
- इमाम हसन (अ.स)
- इमाम हुसैन (अ.स)
- इमाम जैनुल आबिदीन (अ.स)
- इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स)
- इमाम जाफ़र सादिक (अ.स)
- इमाम मूसा काज़िम (अ.स)
- इमाम अली रज़ा (अ.स)
- इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स)
- इमाम अली नक़ी (अ.स)
- इमाम हसन असकरी (अ.स)
- इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स) – जो अब “गायब” हैं और एक दिन “ज़हूर” (प्रकट) करेंगे।
इन इमामों में से अधिकतर को या तो जहर दिया गया या हत्या कर दी गई। उनके दौर में अत्याचारी खलीफा उनका विरोध करते रहे और उन्हें बंदी बनाकर रखा।
- इमाम मेहदी (अ.स) का दौर कैसा रहा?
इमाम मेहदी (अ.स) बारहवें और आखिरी इमाम माने जाते हैं।
वह 869 ई. में पैदा हुए और इमाम हसन असकरी के बेटे हैं।
उनके “गायब” हो जाने के दो चरण हैं:
🔶 गैबत-ए-सुग़रा (छोटा पर्दा):
यह दौर लगभग 70 साल चला (874-941 ई.) जिसमें चार विशेष प्रतिनिधि लोगों और इमाम के बीच संपर्क साधते थे।
🔶 गैबत-ए-कुबरा (बड़ा पर्दा):
यह आज भी जारी है। इसमें इमाम मेहदी लोगों की नज़रों से पूरी तरह गायब हैं, लेकिन एक दिन अल्लाह के हुक्म से ज़हूर करेंगे।
जब उनका ज़हूर होगा:
दुनिया में न्याय स्थापित करेंगे।
अत्याचारियों का खात्मा करेंगे।
इस्लाम के असली रूप को पुनः स्थापित करेंगे।
हज़रत ईसा (अ.स) उनके साथ नमाज़ पढ़ेंगे।

निष्कर्ष
कर्बला की घटना के बाद भले ही इमाम हुसैन और उनके साथियों को शहीद कर दिया गया, लेकिन यह शहादत जालिम हुकूमतों के लिए नाक का कांटा बन गई। यजीद और उसके साथियों का अंजाम सबक देने वाला रहा। इमामों की इमामत ने हक की आवाज़ को कायम रखा, और अब दुनिया इमाम मेहदी (अ.स) के इंतजार में है, जो ज़ुल्म के इस अंधेरे को खत्म करेंगे।
⚖️ कानूनी डिस्क्लेमर:
नोट: यह लेख इस्लामी इतिहास से जुड़े विभिन्न शिया और सुन्नी स्रोतों के आधार पर लिखा गया है। इसमें उल्लिखित घटनाएं धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं। विज़न लाइव न्यूज़ इन बातों की ऐतिहासिक प्रामाणिकता की गारंटी नहीं लेता और न ही किसी भी धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाने का उद्देश्य रखता है। कृपया इसे एक धार्मिक-सांस्कृतिक अध्ययन की दृष्टि से पढ़ा जाए।