
दास्तान-ए-कर्बला (पार्ट-3)
कर्बला के बाद का मंज़र: बीबी ज़ैनब का खुतबा और इमाम ज़ैनुल आबेदीन की इमामत
कर्बला: इतिहास की सबसे दर्दनाक दास्तान
10 मुहर्रम 61 हिजरी (680 ईस्वी) को कर्बला की तपती रेत पर इमाम हुसैन और उनके 72 जानिसारों ने शहादत पेश की। यह शहादत सिर्फ़ सत्ता के सामने सर न झुकाने और इस्लामी मूल्यों को बचाने के लिए थी। लेकिन कर्बला की कहानी सिर्फ इमाम हुसैन की शहादत तक सीमित नहीं है। असली इम्तिहान तब शुरू हुआ जब उनके बाद औरतों और बच्चों को यजीद की फौज ने कैद कर लिया।

कैद और कूच: शहीदों के घरवालों की तकलीफ भरी राह
जब इमाम हुसैन, उनके भाई अब्बास, बेटे अली अकबर और 6 महीने के अली असगर समेत तमाम साथी शहीद हो गए, तब यजीदी फौज ने उनके तंबुओं पर हमला किया। बीबी ज़ैनब, बीबी उम्मे कुलसूम और अन्य महिलाएं व मासूम बच्चे उस समय बिना किसी मर्द के, जलते हुए तंबुओं से जान बचाकर निकले। कैद कर उन्हें रस्सियों से बाँधा गया और कर्बला से कूफ़ा, फिर वहां से दमिश्क (शाम) ले जाया गया।
इन बंदियों में इमाम हुसैन के इकलौते बचे हुए बेटे इमाम ज़ैनुल आबेदीन (जो उस समय बीमार थे) भी शामिल थे। उन्हें ज़ंजीरों में जकड़कर ऊंटों पर सवार किया गया। यह काफिला कई मील का सफर तय करते हुए दमिश्क पहुँचा।

यज़ीद का दरबार और बीबी ज़ैनब का ऐतिहासिक खुतबा
जब यह काफिला यजीद के दरबार में पहुंचा, तो यजीद ने उन्हें अपमानित करने की कोशिश की। दरबार को सजाया गया था, शहीदों के सिर भाले पर रखकर पेश किए गए। मगर बीबी ज़ैनब (स.अ.) ने वहां जो खुतबा (उपदेश) दिया, वह आज भी इस्लामिक इतिहास की सबसे बुलंद आवाज़ माना जाता है।
बीबी ज़ैनब ने यजीद के दरबार में निडर होकर कहा:
“ऐ यज़ीद! क्या तू समझता है कि तूने हम पर ज़ुल्म करके फतह हासिल कर ली है? नहीं, तूने हमारी औरतों को बेपरदा कर, हमें कैद करके अपनी शर्मिंदगी को और बढ़ाया है। तूने हमें रस्सियों में बांधकर दरबदर घुमाया, मगर तू भूल रहा है कि हमारी कुर्बानी बेकार नहीं जाएगी। वक़्त गवाह बनेगा कि हक़ की आवाज़ को दबाया नहीं जा सकता।”
बीबी ज़ैनब ने अपने भाई हुसैन की शहादत को एक क्रांति बताया और इस्लाम के असल उसूलों को सामने रखा। यह खुतबा इतना प्रभावशाली था कि दरबार में मौजूद लोग रोने लगे और यजीद खुद भी कुछ देर के लिए निरुत्तर रह गया।

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) का किरदार और सैयदों की इमामत
कर्बला की इस दास्तान के बाद जो शख्सियत सबसे महत्वपूर्ण बनी, वह थे इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अली इब्ने हुसैन)। उन्होंने बीमार होने के बावजूद हर मौके पर बीबी ज़ैनब का साथ दिया और बाद में उम्मत को इमामत की राह दिखाई। इमाम ज़ैनुल आबेदीन ने हिंसा और युद्ध की जगह दुआ, इल्म और इबादत के ज़रिए इस्लाम की सच्चाई को फैलाया।
उनकी मशहूर दुआओं की किताब “सहिफा सज्जादिया” आज भी रहनुमाई का स्रोत है। उन्होंने लोगों को दिखाया कि जुल्म के खिलाफ सबसे मजबूत हथियार ईमान, सब्र और दुआ है।

कर्बला की दास्तान का असर
कर्बला के बाद बीबी ज़ैनब और इमाम ज़ैनुल आबेदीन ने अपने बोल और व्यवहार से यज़ीद के पूरे शासन को हिला दिया। यह दास्तान सिर्फ एक मातम नहीं, बल्कि इंसाफ, इंसानियत और इमामत का प्रतीक बन गई। दुनिया के हर कोने में जब-जब हक और बातिल की लड़ाई होगी, कर्बला का नाम लिया जाएगा।

कानूनी डिस्क्लेमर:
नोट: यह लेख ऐतिहासिक और धार्मिक स्रोतों से एकत्रित जानकारी पर आधारित है। इसमें वर्णित घटनाएं इस्लामी परंपराओं, शिया मुस्लिम इतिहास और हदीसों पर आधारित हैं। लेख का उद्देश्य केवल जानकारी देना है, किसी धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाना नहीं। विजन लाइव न्यूज़ या लेखक किसी भी प्रकार की वैचारिक या धार्मिक व्याख्या की ज़िम्मेदारी नहीं लेता है ।