
पांच साल बाद चुनाव, पुराना वर्चस्व टूटा, नई पीढ़ी ने रचा इतिहास

मौहम्मद इल्यास “दनकौरी”/ सूरजपुर
कलेक्ट्रेट कंपाउंड स्थित डिस्ट्रिक्ट बार एसोसिएशन सूरजपुर के बहुप्रतीक्षित चुनाव ने पांच वर्षों से जमी चुप्पी को तोड़ा और एक नए सामाजिक-सामरिक समीकरण को जन्म दिया। गुरुवार, 22 मई 2025 को हुए मतदान में दलित-गुर्जर गठजोड़ ने ब्राह्मण-ठाकुर धड़े को करारी शिकस्त देते हुए ऐतिहासिक जीत दर्ज की। कलेक्ट्रेट बार सूरजपुर का यह चुनाव सिर्फ पदों की अदला-बदली नहीं, बल्कि स्थानीय न्यायिक समुदाय की सोच, सामाजिक ध्रुवीकरण और नेतृत्व के नए प्रारूप को दर्शाता है। आने वाले वर्षों में यह बदलाव शायद जिले भर की बार राजनीति को नई दिशा दे।
चुनाव की नींव करीब छह महीने पहले ही तब पड़ गई थी, जब पूर्व ब्लॉक प्रमुख दनकौर चौधरी जयपाल सिंह भाटी को सर्वसम्मति से एसोसिएशन का अंतरिम अध्यक्ष चुना गया। भाटी की अगुवाई में ही चुनाव की घोषणा हुई और फिर पहली बार ऐसा हुआ कि सूरजपुर बार चुनाव वास्तव में लोकतांत्रिक लड़ाई में तब्दील हो गया।
चुनाव के नतीजे:
दुजाना निवासी मनोज नागर एडवोकेट को लगातार दूसरी बार अध्यक्ष चुना गया। उन्होंने 41 वोट हासिल कर एकतरफा जीत दर्ज की। उनके साथ महेंद्र सिंह जाटव ने भी सचिव पद पर उतनी ही मज़बूती से अपनी दावेदारी पेश करते हुए 41 मतों के साथ जीत दर्ज की।

दूसरी ओर, विरोधी खेमे के प्रत्याशी ठाकुर देवेंद्र सिंह रावल (अध्यक्ष पद) और हेमंत शर्मा (सचिव पद) को मात्र 24-24 वोट पर ही संतोष करना पड़ा। यह पराजय सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक रूप से भी अहम मानी जा रही है।
परिवर्तन का संकेत:
इस चुनाव को सिर्फ बार एसोसिएशन का चुनाव नहीं, बल्कि एक सामाजिक संदेश के रूप में भी देखा जा रहा है। पहली बार ऐसा हुआ कि ठाकुर-ब्राह्मण गठजोड़ के सामने दलित-गुर्जर एकता दीवार बनकर खड़ी हुई और उसे पूरी तरह ढहा दिया।
मनोज नागर के पिता ऋषिराज नागर एडवोकेट भी दादरी में अधिवक्ता हैं और पूर्व बार अध्यक्ष रहे हैं। दूसरी ओर हेमंत शर्मा, पूर्व सचिव के रूप में कार्यरत रहे और भाजपा नेता अतुल शर्मा एडवोकेट के सगे जीजा हैं। अतुल शर्मा ने हर बार की तरह इस बार भी हेमंत के लिए पूरी ताकत झोंकी, लेकिन जमीनी हकीकत के सामने राजनीति टिक नहीं पाई।
चौधरी जयपाल सिंह भाटी का धैर्य, रणनीति और संतुलन

चौधरी जयपाल सिंह भाटी का धैर्य, रणनीति और संतुलन इस पूरी प्रक्रिया की रीढ़ बना। चुनावों को लेकर लंबे समय से जो गतिरोध था, उसे उन्होंने न सिर्फ तोड़ा, बल्कि एक निष्पक्ष, पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित कर लोकतंत्र का नया अध्याय रच दिया।