भैंसों की जल क्रीड़ा

 

आर्य सागर खारी
मानसून के आगमन से पूर्व गर्मी के भीषण दौर में नहर तालाबों में जल क्रीड़ा करती हुई भैंसों के झुंडो का दृश्य आपको किसी भी ग्रामीण अंचल में आसानी से दिखाई दे सकता है विशेष तौर पर हरियाणा पंजाब पश्चिम उत्तर प्रदेश के ग्रामीण परिक्षेत्र में। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मामले में तो भैंसें विशेष तौर पर गंगाजल में ही स्नान करती है क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जितने भी रजवाहे ,नहरे , बंबा , आदि सिंचाई के साधन संरचना है सब गंग नहर से निकली है और गंग नहर खुद गंगा जी से निकली है।

ग्रीक पौराणिक कथाओं में जल परियों का उल्लेख मिलता है उन परियों को तो किसी ने आजतक देखा नहीं है लेकिन सच्चे अर्थों में भैंस ही जलपरी है। भैंसे को घंटो पानी में तैरना, पड़े रहना विशेष रास आता है। भैंस इकलौता ऐसा स्तनधारी पशु है जो लंबा समय पानी में गुजर सकता है। वही गाय आदि अन्य दुधारू स्तनधारी पशुओं की बात करें तो वह पानी से परहेज करते है पानी के मामले में गाय हाइड्रोफोबिक है। वहीं पानी भैंस की कमजोरी है भैंस जहां भी पानी देखती हैं पानी की ओर अनायास ही आकर्षित होकर जल स्रोत में प्रवेश कर जाती है। कहावत भी प्रचलित है ‘गई भैंस पानी में’।

पानी से भैंस के लगाव का ही कारण समझे प्राणी शास्त्रियों ने भैंसों का वर्गीकरण मुख्य रूप से दो वर्गों में किया है। स्वेम्प बफेलो अर्थात दलदलीय प्रजाति की भैंस । रिवर बफेलो अर्थात नदी प्रजाति की भैंस। नदी प्रजाति की भैंसें आकार में बड़ी दुधारू होती है पांच नदियों की भूमि पंजाब की सतलुज ,व्यास रावी आदि नदी क्षेत्र से जिन भैंसों का मूल आवास उत्पत्ति क्षेत्र माना जाता है उनमें मुर्रहा, नीली रावी जैसी दुधारू भैंसों की नस्ल शामिल हैं वहीं दलदलीय प्रजाति की भैंसें आकार में छोटी उनका दुग्ध उत्पादन क्षमता कम होती है सींग बड़े-बड़े होते हैं।

भैंसों को लेकर एक किंवदंती ग्रामीण लोक मानस में आज भी प्रचलित है कहा जाता है यूनान का सम्राट सिकंदर ईरान के महान राजा दारा को जब पराजित करता है तो उसकी सेना भारत भूमि के पंचनद अर्थात पंजाब की सीमा में प्रवेश करती है कहा जाता है सिकंदर के भारत में आगमन से पूर्व भैंसों को पालतू नहीं बनाया गया था । सिकंदर ने नदियों से भैंसों को निकलवाया उनके दूध का प्रयोग अपनी सेना के लिए किया।

वही विकासवादी जीव वैज्ञानिक भी मानते हैं आज की स्तनधारी भैंसों का पूर्वज प्राचीन काल में पूरी तरह जलचर कोई जीव रहा होगा। जो धीरे-धीरे जल से निकल कर स्थल पर भी विचरण करने लगा।

मिथक को आगे बढ़ते हुए कहा जाता है देखा देखी भारत में भी भैंस पालन प्रचलित हो गया लेकिन कौटिल्य अर्थशास्त्र ग्रंथ में गायों के प्रबंध देखरेख व्यवस्था के साथ साथ भैंस पालन व्यवस्था देखरेख का भी विस्तृत विधान मिलता है । आयुर्वेद के ग्रंथ चरक संहिता आदि में गाय के दूध के साथ-साथ भैंस के दूध के का भी प्रमुखता से वर्णन मिलता है। भैंस का दूध गाय के दूध की अपेक्षा पचने में भारी गुरु प्रकृति काम शक्ति व निद्रावर्धक माना गया है। बहुत से रोगों में भैंस का दूध आयुर्वेद में प्रयोग किया जाता है तो ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता की भैंस भारत में प्राचीन काल से पालतू नहीं रही है लेकिन एक सत्य यह भी है सामान्य जन गाय के दूध का ही प्रयोग करता था। बहुसंख्यक लोग गोपालन ही करते थे।

आज बदलते हुए परिवेश में जहां दिल्ली एनसीआर में खेती की जमीन सुकड़ती जा रही है सुनियोजित विकास के नाम पर औद्योगिक शहरी क्षेत्र बसाये जा रहे हैं वहां भैंस पालन घाटे का सौदा है । भैंस को प्राकृतिक जलीय स्रोत में विचरना रास आता है भैंस की दुग्ध उत्पादन क्षमता पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जहां जमीनों का अधिग्रहण कर लिया जाता है प्राकृतिक जलीय स्रोतों को अवरोधित कर दिया जाता है उनमें पानी नहीं छोड़ा जाता ऐसे में सीधा नकारात्मक असर पशुपालन पर पड़ता है। नतीजा दूध का उत्पादन गिरता है। इसका सीधा-सीधा प्रभाव नागरिकों के स्वास्थ्य पर पड़ता है प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता घटती है जमीन अधिग्रहण का स्वास्थ्य पर प्रभाव का कभी इस दृष्टि से आकलन ही नहीं किया जाता है।

पानी में तैराकी करती इन भैंसों की यह छवि दादरी तहसील जनपद गौतम बुद्ध नगर के बिसाहडा गांव की है ।जहां यह भैंसें और उनके मालिक भैंसिया गांव की नहर में नहा रहे हैं जो फोटो फ्रेम में नहीं है लेकिन चिंता का विषय है ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने ग्रेटर नोएडा फेस 2 के लिए इस समुचे नहरी सिंचित क्षेत्र को अधिसूचित कर दिया। यदि प्रस्तावित ग्रेटर नोएडा फेस 2 के गांवों के किसानों ने ग्रेटर नोएडा के किसानों की स्थिति, उनके प्राधिकरण के साथ काले व कटु अनुभव से सबक नहीं लिया तो निकट भविष्य में वहां भी यह प्राकृतिक दृश्य देखने को नहीं मिलेगा। नहर के अवरुद्ध होने से भु जल स्तर भी तेजी से गिरेगा क्योंकि सिंचाई विभाग ने जैसे ग्रेटर नोएडा में नेहरो में पानी छोड़ना बंद कर दिया है अधिसूचित क्षेत्र की बात कर ,ठीक ऐसे ही इस क्षेत्र में भी नेहरो को सुखा दिया जाएगा नहरी क्षेत्र तो छोड़िए ग्रेटर नोएडा में नेहरो की जमीन पर बिल्डर परियोजनाएं खड़ी कर दी गई। ठीक ऐसे ही ग्रेटर नोएडा फेस टू में नेहरो के आसपास की जैव विविधता भी इससे बुरी तरह प्रभावित होगी।

न नहर रहेगी ना तालाब ना भैंसें। रहेगी तो केवल कंक्रीट की ऊंची ऊंची इमारत, 50 डिग्री सेल्सियस तापमान, लोहे की दूध देने वाली भैंसें अर्थात डेरी इंडस्ट्री के मुल्य वर्धित मानकहीन दुग्ध उत्पाद। ना जमीन बचेगी , ना प्राकृतिक संपदा और ना ही शारीरिक स्वास्थ्य।

लेखक :–आर्य सागर खारी, तिलपता, ग्रेटर नोएडा है।

 

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