
🗞️ RTI का बड़ा खुलासा: ग्रेटर नोएडा के 133 गांवों में नहीं हो रहा डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन — हाईटेक सिटी बदरंग, जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहा प्राधिकरण!

एक्सक्लूसिव स्टोरी:— ग्रेटर नोएडा के गांवों में स्वच्छता की हकीकत”
– मौहम्मद इल्यास “दनकौरी” / ग्रेटर नोएडा
ग्रेटर नोएडा की चमक-दमक और हाईटेक इमेज के पीछे एक चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई है। इटैडा गांव निवासी एडवोकेट मनीष पाल की ओर से दाखिल की गई एक सूचना का अधिकार (RTI) याचिका में बड़ा खुलासा हुआ है कि ग्रेटर नोएडा के 133 गांवों में आज तक डोर-टू-डोर गार्बेज कलेक्शन (कूड़ा उठान) की कोई व्यवस्था नहीं है।

🧾 आरटीआई का जवाब खुद ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने दिया
28 अक्टूबर 2025 को ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण (GNIDA) के वरिष्ठ प्रबंधक एवं जन सूचना अधिकारी (स्वास्थ्य) द्वारा जारी आधिकारिक पत्र (संख्या – स्वा०वि०/2025/2487 व 2488) में यह स्पष्ट कहा गया है कि
“वर्तमान में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा 124 ग्रामों और 9 माजरों में सफाई का कार्य तो कराया जा रहा है, परंतु डोर-टू-डोर गार्बेज कलेक्शन का कोई प्रावधान नहीं है।”
यानी, गांवों की सफाई जिम्मेदारी से जुड़े अनुबंधों में केवल मैनुअल क्लीनिंग और कूड़ा निस्तारण का प्रावधान है, लेकिन घर-घर से कूड़ा उठाने की सुविधा अभी तक शुरू ही नहीं की गई है।

🏘️ पंचायत खत्म, जिम्मेदारी GNIDA की — फिर भी सफाई व्यवस्था अधूरी
ग्रेटर नोएडा के अधिकतर गांवों में पंचायत व्यवस्था समाप्त कर दी गई है। ऐसे में स्वच्छता और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (Solid Waste Management) की जिम्मेदारी पूरी तरह से ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पर है।

इसके बावजूद, आरटीआई में मिले जवाब से स्पष्ट है कि प्राधिकरण ने गांवों की सफाई व्यवस्था को केवल कागजों में सीमित रखा है, जबकि जमीन पर गंदगी और कूड़े के ढेर हर गली-मोहल्ले में देखने को मिलते हैं।


🗑️ ग्रेटर नोएडा की ‘हाईटेक’ सिटी बनी कूड़े का शहर
जहाँ एक ओर प्राधिकरण “स्मार्ट सिटी”, “ग्रीन सिटी” और “क्लीन सिटी” के दावे करता है, वहीं दूसरी ओर गांवों में कूड़े के ढेर और जलभराव की स्थिति ने ग्रेटर नोएडा की छवि को धूमिल कर दिया है।
कई गांवों जैसे इटैडा, बिसरख, हैबतपुर, तिलपता, कसना, खैरपुर और नालेज पार्क से सटे क्षेत्रों में कूड़ा निस्तारण स्थल नहीं हैं, जिससे स्थानीय लोगों को गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

⚖️ एडवोकेट मनीष पाल बोले — “गांवों को दोहरी नीति का शिकार बनाया गया”
आरटीआई आवेदनकर्ता एडवोकेट मनीष पाल ने कहा कि —
“ग्रेटर नोएडा में उद्योगों, मॉल और सेक्टरों की सफाई व्यवस्था आधुनिक है, लेकिन गांवों को दूसरी श्रेणी का नागरिक मान लिया गया है। न डोर-टू-डोर कलेक्शन है, न नियमित गाड़ियां, और न ही ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की कोई योजना।”
उन्होंने यह भी कहा कि वह इस मामले को आगे लोकायुक्त और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) तक ले जाएंगे, ताकि गांवों में भी शहर जैसी सफाई व्यवस्था लागू हो सके।

🚨 सरकार के लिए सवाल
इस खुलासे ने न केवल ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण, बल्कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के “स्वच्छता अभियान” और “स्मार्ट ग्राम मिशन” पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।
सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि विकास केवल सड़कों और इमारतों तक सीमित न रहकर, गांवों की स्वच्छता और नागरिक जीवन स्तर तक पहुँचे।