सावधान!– दुर्व्यसन सबकों लीलते हैं


आर्य सागर खारी

1750 से लेकर 1800 ईस्वी के बीच सिगरेट बनाने वाली मशीन का आविष्कार हुआ। मशीन का आविष्कार भले ही हो गया लेकिन यूरोप अमेरिका में सिगरेट के उद्योग में कोई वृद्धि नहीं हुई। प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात सिगरेट उद्योग से जुड़ी हुई कंपनियों की चांदी कट गई लाखों में सालाना उत्पादित होने वाली सिगरेट की मांग प्रतिदिन करोड़ों में पहुंची। दरअसल प्रथम विश्व युद्ध के दौरान घर से हजारों मील दूर मोर्चो पर तैनात परिवार से दूर एकांत और अवसाद से ग्रस्त सैनिक सिगरेट की लत के शिकार हुए । युद्ध समाप्ति के पश्चात जब वह सिविल सोसाइटी में लौटे तो अमेरिका के आम ग्रामीण समाज में भी सिगरेट स्मोकिंग का व्यसन तेजी से फैल गया। नतीजा 1920 से लेकर 1950 के बीच अमेरिका में फेफड़ों के कैंसर रोगियों की संख्या 5 गुनी हो गई। लेकिन 1950 तक किसी को यह मालूम नहीं था की फेफड़ों के कैंसर का मुख्य कारण क्या है सिगरेट स्मोकिंग के कारण फेफड़े का कैंसर होता है ।इस ओर किसी का दिमाग नहीं दौड़ा अनेक विश्व प्रसिद्ध कैंसर रोग विशेषज्ञ उन दिनों अपनी अपनी प्रयोगशाला में शोध कर रहे थे विभिन्न कैंसरों को लेकर। 1930 व 40 के दशक में जब फेफड़ों के कैंसर ने अमेरिका में तबाही मचा दी तो इस समस्या पर विचार के लिए अमेरिकी इतिहास की जाने-माने थोरेसिक सर्जन इवर्टस ग्राहम का ध्यान आकर्षित हुआ।

ग्राहम अमेरिकी सेना के सृजन थे जिन्होंने 1933 में फेफड़ों के कैंसर की दुनिया में सबसे पहले न्यूमोनेक्टोमी सर्जरी की जिसमें कैंसर ग्रस्त एक फेफड़ों को निकाल दिया जाता है जिस मरीज की उन्होंने सर्जरी की वह बिलमोर नामक मरीज सर्जरी के पश्चात 30 वर्ष तक जिया ।ग्राहम जहां भी इस सर्जरी का प्रशिक्षण देते मेडिकल वर्कशॉप करते वहां अपने इस प्रिय मरीज को साथ ले जाते थे। ग्राहम ने पित्त की थैली की इमेजिंग के लिए सबसे पहले कोलसिस्टोग्राफी की तकनीक भी विकसित की थी लेकिन हैरत इस बात की थी वक्ष रोगों की शल्य क्रिया के अमेरिकी इतिहास के सबसे महानतम सर्जन को भी यह पता नहीं था कि फेफड़े का कैंसर मुख्यतः किस कारण से होता है।

1950 में उन्होंने एक चिकित्सीय शोध छात्र के साथ मिलकर फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित 684 मरीज का साक्षात्कार किया साक्षात्कार के आधार पर उन्होंने शोध प्रस्तुत किया तो बहुत ही विस्मयकारी जानकारी निकाल कर आयी। सभी कैंसर पीड़ित सिगरेट स्मोकर थे। इस हैरतअंगेज शोध ने कैंसर अनुसंधान में लगे हुए चिकित्सा विज्ञानियों में खलबली मचा दी। 1950 में एक शोध बताता है 50 फ़ीसदी अमेरिकी सिगरेट की स्मोकिंग करते थे जब यह शोध निकल कर आया तो 14 फ़ीसदी अमेरिकियों ने सिगरेट स्मोकिंग को छोड़ दिया ऐसा करने वालों में खुद सर्जन ग्राहम भी शामिल थे जो खुद 40 वर्षों से सिगरेट स्मोकिंग कर रहे थे। नतीजा सिगरेट निर्माता कंपनियों में हड़बड़ी मच गई उन्होंने अमेरिका के बड़े-बड़े समाचार पत्रों स्वास्थ्य से जुड़ी एजेंसियों को खरीद लिया शोध की आलोचना इस आधार पर की यह कोई वैज्ञानिक अनुसंधान नहीं है महज एक सांख्यिकी शोध है इस आधार पर कैसे कहा जा सकता है कि सिगरेट के कारण फेफड़ों का कैंसर होता है। लेकिन धुन के पक्के ग्राहम ने ठान लिया कि वह सिगरेट के भयानक जानलेवा दुष्प्रभाव को सिद्ध कर के रहेंगे। ग्राहम ने एडेल क्रोनिगर नाम की महिला वैज्ञानिक के साथ मिलकर 1953 में एक अनोखा धूम्रपान उपकरण तैयार किया। इस उपकरण में वह एक साथ 100 से अधिक सिगरेटों को लगाकर उनका दहन करते थे उनके दहन से जो टार बनता था वह एसीटोन से भरे हुए जार में जाकर मिल जाता था। टार युक्त इस मिश्रण को वह अपनी प्रयोगशाला के 81 चूहों की पीठ की त्वचा में सप्ताह में तीन दिन लगाते थे एक वर्ष के दौरान उन्होंने अपने शोध में पाया कि चूहों की पीठ पर त्वचा का कैंसर व पेपीलोमा ट्यूमर विकसित हो गया। इस प्रयोग ने दूध का दूध पानी का पानी कर दिया। चिकित्सा जगत को पता चल गया कि फेफड़ों को कैंसर का मुख्य कारण सिगरेट स्मोकिंग है।

फेफड़ों के कैंसर के इलाज में इस शोध से बल मिला‌ लेकिन कैंसर का रोग तब भी बड़ी त्रासदी था आज भी त्रासदी है मानवता इसे आज भी जूझ रही है । जनवरी 1957 के दौरान सर्दियों की एक शाम जब सर्जन ग्राहम को थकावट बुखार महसूस हुआ तो उन्होंने समझा कि यह कोई साधारण फ्लू है जब एक-दो दिन तक उनका बुखार नहीं उतरा तो उन्होंने नजदीकी Barnes Hospital में जाकर अपना एक्सरे कराया। उनके दोनों फेफड़ों उग्र फेफड़ों के कैंसर की सैकड़ो गांठों से क्षतिग्रस्त पाए गए।

ग्राहम ने अपनी पहचान छुपा कर अपनी एक्स रे रिपोर्ट को एक सर्जिकल कॉलेज में दिखाया पहले तो उन सर्जनों के पैनल ने कहा सर आप हमारे साथ मजाक क्यों कर रहे हैं आज अमेरिका में फेफड़ों की सर्जरी फेफड़ों की रेडियोलॉजी का जितना भी विज्ञान विकसित हुआ है सब आपके ज्ञान परिश्रम की देन है फिर भी यदि आप इस एक्सरे रिपोर्ट को पढ़ने में असमर्थ हैं तो हम आपको बताते हैं इस रिपोर्ट में ट्यूमर है जो कैंसर से ग्रस्त है और इस मरीज के बचने की कोई उम्मीद नहीं है यह सब सुनकर सर्जन ग्राहम ने शांति से आह भरते हुए कहा की – यह ट्युमर मेरा है वहां सन्नाटा पसर गया कैंसर रोग का सबसे बड़ा शल्य चिकित्सक आज खुद इसकी चपेट में आ गया। सर्जन ग्राहम का स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन गिर रहा था। फरवरी 1957 को उन्होंने अपने मित्र अमेरिका के ही एक प्रसिद्ध सर्जन आल्टन ऑशनर को एक पत्र लिखा था । जिसमें उनकी बेबसी पछतावा दोनों ही झलकता है।

पत्र की शब्द रचना इस प्रकार है —मित्र जैसा कि तुम्हें पता है मेरे दोनों फेफड़ों कैंसर से ग्रस्त है कैंसर मेरे शरीर में रात्रि के चोर की तरह आया तुम जानते हो मैं 5 वर्ष पहले अपने ही सिगरेट स्मोकिंग को छोड़ चुका हूं लेकिन चिंता इस बात की है मैंने 50 साल स्मोकिंग की। इस पत्र के दो सप्ताह बाद साथी चिकित्सकों द्वारा नाइट्रोजन मस्टर्ड की कीमो थेरेपी के देने के पश्चात भी 26 फरवरी 1957 को सर्जन ग्राहम ने आखरी सांस ली । उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार उनका शरीर चिकित्सा अध्ययन के लिए उनके ही द्वारा स्थापित चिकित्सा संस्थान के डिपार्मेंट आफ एनाटॉमी को दान कर दिया गया। इस त्रासदी में रोचक बात यह है कि 30 साल पहले जिस गिल्मोर नामक अपने प्रिय मरीज की कैंसर ग्रस्त फेफड़ों की सर्जरी करके चिकित्सा जगत में उन्होंने कृतिमान स्थापित किया था उसकी जान बचाई थी उनका वह मरीज सर्जन ग्राहम की मृत्यु के 6 वर्ष पश्चात तक जीवित रहा। उनसे 6 वर्ष अधिक जिया।

इस लेख का यही निष्कर्ष निकलता है कि हमें समय रहते ही सिगरेट स्मोकिंग अल्कोहल मांसाहार खराब दिनचर्या से जुड़ी आदतों को छोड़ देना चाहिए यदि हमने देरी कर दी तो फिर उन्हें छोड़ने का कोई औचित्य नहीं रहता सुखायु दुखायु में बदल जाती है। धन से स्वास्थ्य एक सीमा तक ही मिल सकता है

चिंताजनक विषय यह भी है भारत में विकराल होते वायु प्रदूषण व कोरोना के कारण पहले से ही कमजोर फेफड़े व युवाओं में सिगरेट आदि स्मोकिंग की बढ़ती खतरनाक दुष्प्रवृत्ति के कारण कैंसर के जोखिम को सर्वाधिक बढा दिया है। धूम्रपान नशे से मुक्त जीवन जीने के लिए आर्य समाज के साथ जुड़े। नशे को ना, जीवन को हां कहे।

लेखक आर्य सागर खारी

साभार ग्रन्थ- 1

भारतवंशी अमेरिकी प्रसिद्ध कैंसर रोग अनुसंधान कर्ता चिकित्सक सिद्धार्थ मुखर्जी की कैंसर बीमारी के चिकित्सीय इतिहास को लेकर लिखी गई पुलित्जर पुरस्कार से पुरस्कृत विश्व प्रसिद्ध पुस्तक “द एंपरर ऑफ़ ऑल मेलाडाइज”

2 अमेरिकन मेडिकल हिस्ट्री म्यूजियम की वेबसाइट।

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