
रिपोर्ट | असलम परवेज, देवरिया
देवरिया। “जाति-धर्म नहीं, इंसानियत हो पहचान” — इसी मूलमंत्र के साथ क्षेत्र के प्रतिष्ठित कवि, शिक्षक, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता मकसूद अहमद भोपतपुरी ने एक बार फिर समाज को आईना दिखाया है। 6 जुलाई 2025 को मुहर्रम के अवसर पर क्षेत्र भ्रमण के दौरान उन्होंने जो अनुभव साझा किए, वे दिल को छू लेने वाले हैं और एक मजबूत सामाजिक संदेश भी देते हैं।
श्री मकसूद अहमद ने बताया कि मुहर्रम के मौके पर वह क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में गए। उन्होंने देखा कि मुस्लिम समाज के लोग परंपरागत रूप से ढोल-ताशा और अन्य आयोजनों में व्यस्त थे, लेकिन कई स्थानों पर उन्हें जिस आत्मीयता और प्रेम से आमंत्रित किया गया, वह किसी एक धर्म या जाति की भावना से परे था।
भवानी छापर बाजार में चन्दन जायसवाल ने उन्हें ज़िद करके अपनी दुकान पर बुलाया, भुजा और जलेबी खिलाई। वहीं हाता चौराहा स्थित बाघा छापर कर्बला में शिक्षक लाल बहादुर शाह ने भीड़ में पहचानते हुए उन्हें रोका, आत्मीयता से बातचीत की और जबरन जलेबी खिलाई। इस दौरान कई ब्राह्मण और राजपूत समाज के लोगों ने भी गर्मजोशी से चाय-पानी का आग्रह किया।
मकसूद अहमद ने कहा कि “समाज में आज भी इंसानियत और प्रेम जीवित है। जो व्यक्ति दूसरों से जातीय या धार्मिक भेदभाव करता है, उसे ही समाज से भेदभाव मिलता है। मैंने कभी अपने जीवन में जाति या धर्म के आधार पर कोई भेदभाव महसूस नहीं किया।”
उन्होंने यह भी बताया कि जब वह 2010 में जिला पंचायत चुनाव लड़े थे, तब उनके साथ सबसे ज़्यादा युवा और छात्र हिंदू समाज से जुड़े थे। उनके समर्थन में 95% से अधिक वोट हिंदू समाज से मिले थे, जबकि उस चुनाव में दो मुस्लिम प्रत्याशी और थे। उनके लिए होली-ईद, दीपावली-शब-ए-बरात, मंदिर-मस्जिद, यज्ञ और जलसा सब समान और आदरणीय हैं।
मकसूद अहमद का कहना है कि “मैं अपने लेखन, कर्म, वाणी और व्यवहार से समाज में अमन, भाईचारा, देशभक्ति और साम्प्रदायिक सौहार्द की मशाल जलाता रहा हूं, और इसी कारण मुझे सभी वर्गों का प्रेम और समर्थन प्राप्त होता है।”
अंत में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा:
“अब समय आ गया है कि हम ‘हिंदू-मुसलमान’, ‘अगड़ा-पिछड़ा’ जैसी बातों को पीछे छोड़ें। एक इंसान बनें, नेक इंसान बनें। यही सच्चा राष्ट्रधर्म है।”