बाराही मेले की चौपाल: फूंस के छप्पर तले गांव की रूह फिर से जिंदा”

 

 

   मौहम्मद इल्यास “दनकौरी”/  सूरजपुर

बाराही मेला 2025 में ग्रामीण संस्कृति को जीवंत करता एक अनूठा आकर्षण बना है – फूंस का छप्पर और पारंपरिक चौपाल, जो न सिर्फ बीते वक्त की याद दिलाता है, बल्कि आज की पीढ़ी को भारत की जड़ों से भी जोड़ता है। शिव मंदिर सेवा समिति द्वारा निर्मित यह चौपाल आज मेले में संस्कृति प्रेमियों, बुजुर्गों और युवाओं के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है।

बैठक का स्वरूप और निर्माण
मेले के प्रांगण में बनी यह चौपाल 20 गुणा 30 फीट के क्षेत्रफल में फैली हुई है, जिसमें लगभग 200 फूंस के पूले20 बींड, और मूंज की रस्सियों का उपयोग किया गया है। छप्पर की मजबूती के लिए 23 बांसों और एक बड़े लोहे के पाइप का सहारा लिया गया है, जिससे इसका पारंपरिक स्वरूप आधुनिक टिकाऊपन के साथ साकार हो सका है।

छप्पर से जुड़ा 20 x 30 फीट का आंगन भी दर्शकों को खूब लुभा रहा है, जहां विश्व की सबसे बड़ी खाटसबसे बड़ा हुक्कासबसे बड़ी रईबैलगाड़ीविशाल पीढ़ा, और ग्रामीण जीवन से जुड़ी अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं। यहां बैठने के लिए पारंपरिक मुंढे भी रखे गए हैं, जो किसी फिल्मी दृश्य की तरह अतीत के गांवों की याद दिलाते हैं।

प्राकृतिक सौंदर्य के बीच संस्कृति की छांव
इस बैठक के सामने स्थित पीपल का विशाल वृक्ष न केवल दृश्यात्मक सौंदर्य को बढ़ाता है, बल्कि उसकी शीतल छांव और उसमें से गुजरती शुद्ध हवा आगंतुकों को ठहरने के लिए विवश कर देती है। इसके पास स्थित पुराना कुआं, जहां कभी गांववाले ठंडा जल पीते थे, अब इस चौपाल के ऐतिहासिक संदर्भ को और गहराई प्रदान करता है।

संयोजन समिति की भूमिका
इस संकल्पना को साकार रूप देने में शिव मंदिर सेवा समिति की अहम भूमिका रही है। समिति के अध्यक्ष धर्मपाल भाटीमहामंत्री ओमवीर बैसलाकोषाध्यक्ष लक्ष्मण सिंघल और मीडिया प्रभारी मूलचंद शर्मा ने सामूहिक रूप से यह जानकारी दी कि यह चौपाल केवल देखने योग्य स्थल नहीं, बल्कि एक संवाद का मंच है – जहां लोग बैठकर अपनी संस्कृति, विरासत और आपसी संवाद का मूल्य समझ सकें।

उनके अनुसार, “आज जब लोग डिजिटल दुनिया में व्यस्त हैं, तब इस प्रकार की चौपालें हमें हमारे मूल की ओर लौटने का अवसर देती हैं। यह बैठक एक प्रयास है कि अगली पीढ़ी भी अपने गांव, अपनी परंपराओं और अपनी मिट्टी को समझे।”

संस्कृति का जीवंत संग्रहालय
यह चौपाल न सिर्फ ग्रामीण जीवन की झलक है, बल्कि एक जीवंत संग्रहालय है – जहां हर वस्तु, हर कोना, हर पीढ़ा एक कहानी कहता है। यहां बैठकर लोग न केवल विश्राम करते हैं, बल्कि समय के साथ खोती जा रही परंपराओं को भी आत्मसात करते हैं।

बाराही मेला 2025 की यह चौपाल दर्शकों के दिल में एक स्थायी छाप छोड़ रही है – जैसे किसी लोकगीत की वह मधुर पंक्ति, जो वर्षों बाद भी स्मृति में बनी रहती है।

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