खतरे की घंटी:— बढ़ते पलूशन से सांस संबधी मामलों के मरीज बढ़े

  सांस,खांसी और अस्थमा जैसी समस्या से जूझ रहे हैं, हर 10 में से 4-5 मरीज

मास्क पहनने, घर के अंदर रहने और एयर प्यूरीफ़ायर उपयोग करके इसकी रोकथाम संभव:— डॉ राजेश गुप्ता

मौहम्मद इल्यास- “दनकौरी” / गौतमबुद्धनगर

सर्दी के दस्तक देने के साथ ही हवा में प्रदूषण का स्तर लगभग हर जगह बढ़ गया है, जो सांस संबंधी विभिन्न बीमारियों का कारण बन रहा है। सर्दी का मौसम आने के साथ आस-पास राज्यों में पराली जलाने और दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में वाहनों की अधिकता, निर्माण कार्यों से उड़ने वाली धूल, उद्योगों से निकलते धुएं की वजह से प्रदूषण सामान्य से कई गुना बढ़ गया है। दीपावली का त्योहार भी करीब है जिसमें पटाखे फोड़ने की वजह से वायु प्रदूषण और अधिक बढ़ने की संभावना है। अभी भी सभी प्रमुख जगहों का प्रदूषण का स्तर ( एक्यूआई 200-300 के आस-पास या उससे अधिक है। जो एक खतरनाक स्तर है। खतरनाक स्तर पर पहुंच चुके प्रदूषण का सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर देखने को मिल रहा है। लगभग सभी जगहों पर सांस संबंधी मामलों संबंधित मरीजों की संख्या बढ़ गई है।

फोर्टिस हॉस्पिटल, ग्रेटर नोएडा के पल्मोनोलॉजिस्ट (छाती रोग विशेषज्ञ), डॉ. राजेश गुप्ता, ने बताया कि वायु प्रदूषण के मानव स्वास्थ्य, विशेषकर श्वास प्रणाली पर हानिकारक प्रभाव पड़ रहा है। यही कारण है कि सर्दियों शुरू होते ही वायु प्रदूषण से जुड़े मरीज़ों की संख्या में 40 से 50 प्रतिशत की वृद्धि हो गई है। इसकी वजह से खाँसी, साँस लेने में तकलीफ़, सीने में दर्द, आँख, नाक और गले में खुजली आदि जैसी शिकायतें मरीज़ों में बढ़ गई हैं।

डॉ. गुप्ता ने बताया कि हमारे पास ओपीडी में आने मरीजों को इस समय बढ़े हुए वायु प्रदूषण के चलते अलग – अलग तरह की परेशानी का सामना कर रहे हैं। दरअसल, इस तरह की समस्याएं नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड और ओजोन जैसे सूक्ष्म वायु प्रदूषकों के संपर्क में आने से हो सकती हैं, जिनमें श्वसन संबंधी समस्याएँ जैसे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज (सीओपीडी), हृदय सम्बंधी रोग दिल का दौरा, स्ट्रोक, कैंसर जैसे फेफड़ों के कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है। मधुमेह एवं तंत्रिका संबंधी विकार जैसे अल्जाइमर रोग, पार्किंसन रोग आदि भी वायु प्रदूषण के कारण हो सकते हैं।

वह आगे बताते हैं कि लंबे समय तक उच्च स्तर के वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से गंभीर दीर्घकालिक स्वास्थ्य दुष्परिणाम हो सकते हैं, जैसे क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज (सीओपीडी), यह फेफड़ों की जटिल बीमारी है, जिससे सांस लेने में परेशानी हो सकती है। वायु प्रदूषण अस्थमा के अटैक को ट्रिगर कर सकता है और अस्थमा से पीड़ित लोगों में लक्षणों को खराब कर सकता है। ऐसे ही वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। इतना ही नहीं वायु प्रदूषण समय के साथ फेफड़ों की कार्यक्षमता में गिरावट का कारण बन सकता है।

डॉ. गुप्ता ने कहा कि बच्चे, बुजुर्ग और पहले से स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रसित व्यक्ति वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं। उन्होंने व्यक्तियों को वायु गुणवत्ता की निगरानी करने, मास्क पहनने, खराब हवा की गुणवत्ता के दौरान घर के अंदर रहने और एयर प्यूरीफ़ायर का उपयोग करने जैसे उपाय करने का सुझाव दिया।

उन्होंने कहा, ‘वायु प्रदूषण से उत्पन्न गंभीर स्वास्थ्य जोखिमों को समझना और खुदके और अपने प्रियजनों की रक्षा के लिए सक्रिय कदम उठाना महत्वपूर्ण है। जागरूकता बढ़ाने और निवारक उपायों को बढ़ावा देकर, हम सभी के लिए एक स्वस्थ और स्वच्छ वातावरण की दिशा में काम कर सकते हैं।’

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