
आपातकाल के सेनानी से लेकर जेवर मंडी समिति के चेयरमैन तक—कई दशकों की सियासी यात्रा फिर आई सुर्खियों में**

मौहम्मद इल्यास “दनकौरी” / गौतमबुद्धनगर
मेरठ–सहारनपुर खंड (स्नातक) एमएलसी चुनाव से पहले भाजपा में गहमा–गहमी लगातार बढ़ती जा रही है। वर्तमान एमएलसी दिनेश गोयल का कार्यकाल समाप्ति की ओर है और पार्टी नए चेहरे की तलाश में है। इसी बीच जिन नामों पर मंथन तेज हुआ है, उनमें सबसे अधिक चर्चा जिस चेहरे की हो रही है, वह है—लोकतंत्र सेनानी, आरएसएस पृष्ठभूमि से जुड़े, सूरजपुर अदालत में प्रैक्टिस करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता एडवोकेट किशन लाल पाराशर।
सूत्रों की मानें तो भाजपा इस बार वकील समाज से ही प्रत्याशी उतारने के मूड में है। और यदि ऐसा होता है, तो रबूपुरा के निवासी, मजबूत सामाजिक पकड़ और बेदाग राजनीतिक इतिहास रखने वाले एडवोकेट किशन लाल पाराशर भाजपा की पहली पसंद बन सकते हैं।
आपातकाल के संघर्ष से निकला एक सियासी सिपाही
किशन लाल पाराशर का राजनीतिक संघर्ष किसी कहानी से कम नहीं।
25 जून 1975—जिस दिन देश पर आपातकाल की काली रात छाई, उसी दिन उनका गौना भी था। गौना संपन्न हुआ, और शाम होते-होते उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। विवाह को मुश्किल से दो सप्ताह हुए थे और पाराशर सीधे जेल की कोठरी में पहुँचा दिए गए।
लगभग 11 महीने जेल में रहे
उस समय वे बीए प्रथम वर्ष के छात्र और एबीवीपी कार्यकर्ता थे
परीक्षा देने के लिए पैरोल नहीं मिला
इसके बाद छात्रों के विरोध पर सरकार को जेल में ही परीक्षा केंद्र बनाने पड़े
पाराशर ने जेल में रहकर ही अपनी परीक्षा दी
आपातकाल के दौरान उनकी भूमिका इतनी सक्रिय थी कि DIR और MISA जैसे कड़े कानूनों में उन्हें बंद किया गया।
उनके राजनीतिक सक्रियतावाद के कारण उनके बड़े भाई कंछीलाल शर्मा को भी जेल जाना पड़ा।
जेपी आंदोलन के दौरान वे बुलंदशहर में जयप्रकाश नारायण की सभाओं के आयोजनों में प्रमुख जिम्मेदारियों में रहे। इसी दौर के लोकतंत्र सेनानी आज भाजपा के भीतर सम्मानपूर्वक देखे जाते हैं और पार्टी उन्हें कई बार विशेष कार्यक्रमों में सम्मानित कर चुकी है।

सियासत में निरंतर सक्रिय—कल्याण सिंह शासन में जेवर मंडी समिति के चेयरमैन
आपातकाल के बाद से लेकर अब तक पाराशर विभिन्न आंदोलनों और विरोध प्रदर्शनों में अग्रणी रहे।
उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार के दौरान भाजपा ने उनकी सक्रियता और संगठनात्मक पकड़ को देखते हुए उन्हें मंडी समिति जेवर का चेयरमैन नियुक्त किया। चेयरमैन रहते हुए—
ग्रामीण सड़कों का निर्माण
शिक्षा संस्थानों की स्थापना
किसानों और स्थानीय व्यापारियों के लिए विकासात्मक सुविधाएँ
जैसे कई महत्वपूर्ण कार्य उनके कार्यकाल की उपलब्धियों में शामिल हैं।
शिक्षा, बार और संगठन—तीनों जगह मज़बूत पकड़
1983 में MMH कॉलेज, गाजियाबाद से एलएलबी करने के बाद एडवोकेट पाराशर कई दशकों से सूरजपुर कचहरी में प्रैक्टिस कर रहे हैं।
उनका वकील समुदाय में मजबूत दखल है और यही कारण है कि भाजपा के भीतर उनकी दावेदारी को बेहद गंभीरता से लिया जा रहा है।
इसके अतिरिक्त रबूपुरा क्षेत्र और ब्रज–पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उनका सामाजिक प्रभाव भी व्यापक माना जाता है।

विपक्ष भी मैदान में—सपा ने लगाया बार अध्यक्ष पर दांव
समाजवादी पार्टी भी इस सीट को लेकर पूरी तैयारी में है।
सपा ने गौतमबुद्धनगर दीवानी एवं फौजदारी बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एडवोकेट प्रमेन्द्र भाटी पर दांव लगाकर चुनाव को रोचक बना दिया है।
यदि भाजपा भी वकील समाज से यानी एडवोकेट किशन लाल पाराशर को टिकट देती है, तो यह चुनाव सीधे—
वकील बनाम वकील
के दिलचस्प मुकाबले में बदल जाएगा।
भाजपा में क्यों मजबूत है पाराशर की दावेदारी?
भाजपा के रणनीतिकारों के अनुसार पाराशर के पक्ष में कई ठोस बातें जाती हैं—
RSS की वैचारिक पृष्ठभूमि
लंबा संगठनात्मक अनुभव
लोकतंत्र सेनानी का दर्जा
कानूनी और सामाजिक दोनों क्षेत्रों में प्रभाव
सूरजपुर बार में मजबूत पकड़
रबूपुरा–जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक जनाधार
भाजपा के प्रति निष्ठा और लगातार सक्रियता
बीते वर्षों में एक बार उन्हें एमएलसी के लिए नामित किए जाने की चर्चा भी खूब चली थी, लेकिन उसी समय जतिन प्रसाद के भाजपा में आने के चलते टिकट समीकरण बदल गया था।

“यदि पार्टी मौका दे तो उच्च सदन में युवाओं और शिक्षा की आवाज़ बुलंद करूंगा” — पाराशर
विजन लाइव से बातचीत में एडवोकेट किशन लाल पाराशर ने कहा—
“मुझे भाजपा द्वारा एमएलसी प्रत्याशी बनाए जाने की खबर मीडिया के जरिए ही मिल रही है।
यदि पार्टी मुझ पर विश्वास जताती है, तो मैं संगठन के हर फैसले को सिर माथे लूँगा।”
उन्होंने आगे कहा—
“उच्च सदन में जाने का अवसर मिला तो
शिक्षा को सस्ता और सरल बनाने,
शिक्षित युवाओं के रोजगार समाधान,
तथा
जनता के ज्वलंत मुद्दों
को सदन में पूरी मजबूती से उठाऊँगा।”

—भाजपा की तरफ झुक रहा संतुलन?
सूत्रों के अनुसार पार्टी के भीतर अब तक जिन नामों पर मंथन हुआ है, उनमें सबसे मजबूत सहमति जिस नाम के आसपास दिखाई दे रही है, वह है—एडवोकेट किशन लाल पाराशर।
यदि कोई बड़ा राजनीतिक समीकरण अंतिम समय में न बदले, तो बहुत संभव है कि भाजपा उन्हें मेरठ–सहारनपुर खंड (स्नातक) का एमएलसी प्रत्याशी घोषित कर दे।