हुमायूँ के मकबरे पर इतिहास की जीवंत कक्षा: जी. डी. गोयनका पब्लिक स्कूल, ग्रेटर नोएडा के विद्यार्थियों ने किया विरासत का साक्षात अनुभव

  मौहम्मद इल्यास- “दनकौरी”/ ग्रेटर नोएडा

शिक्षा तभी पूर्ण मानी जाती है जब विद्यार्थी पुस्तकों से आगे बढ़कर इतिहास, संस्कृति और वास्तुकला को प्रत्यक्ष अनुभव करें। इसी शैक्षिक पद्धति को अपनाते हुए जी. डी. गोयनका पब्लिक स्कूल, स्वर्ण नगरी, ग्रेटर नोएडा ने कक्षा 6 से 8 के छात्रों के लिए नई दिल्ली स्थित यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हुमायूँ का मकबरा शैक्षणिक भ्रमण आयोजित किया, जिसने विद्यार्थियों के ज्ञान और दृष्टि दोनों को नए आयाम प्रदान किए।

मुग़ल स्थापत्य कला का प्रत्यक्ष अध्ययन

हुमायूँ का मकबरा भारत में मुग़ल स्थापत्य का पहला बाग़-मकबरा माना जाता है, जिसकी चारबाग शैली, विशाल मेहराबें, ऊँचे गुंबद, लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर का अद्भुत संगम, तथा बारीक नक्काशी इसे विश्व स्तरीय स्मारक बनाती है। विद्यार्थियों ने इन स्थापत्य विशेषताओं का अवलोकन किया और समझा कि इसी शैली ने आगे चलकर ताजमहल जैसी अनंत धरोहर का मार्ग प्रशस्त किया।

शिक्षकों ने मकबरे के ऐतिहासिक संदर्भ में हुमायूँ, मुग़ल वंश, पर्शियन वास्तु प्रभाव और इस स्मारक के संरक्षण प्रयासों के बारे में विद्यार्थियों को विस्तार से बताया। छात्रों ने गाइडेंस नोट्स बनाए, संरचना का अवलोकन किया और इतिहास को सजीव रूप में आत्मसात किया।

जिज्ञासा और सीखने की ऊर्जा

पूरे भ्रमण के दौरान छात्रों में उत्साह स्पष्ट नजर आया। उन्होंने वास्तुकला, इतिहास, बाग़ योजना और सांस्कृतिक कलात्मकता से संबंधित प्रश्न पूछे। कई विद्यार्थियों ने कहा कि यह अनुभव उन्हें इतिहास विषय को और भी रोचक तरीके से समझने में सहायक होगा।

इस यात्रा में छात्रों ने यह भी जाना कि भारत की धरोहर केवल पुरानी इमारतें नहीं, बल्कि इतिहास, संघर्ष, कला और गौरव का जीवंत दस्तावेज हैं, जिन्हें संरक्षित रखना प्रत्येक नागरिक का उत्तरदायित्व है।

विद्यालय के शैक्षिक दृष्टिकोण में अनुभवात्मक शिक्षा की भूमिका

विद्यालय वर्षों से ‘एक्टिव और अनुभवात्मक लर्निंग’ के सिद्धांत पर कार्य कर रहा है, जिसके अंतर्गत विद्यार्थियों को राष्ट्रीय धरोहर स्थलों, विज्ञान केंद्रों, संग्रहालयों, शोध संस्थानों और सांस्कृतिक केंद्रों की शैक्षणिक यात्राओं पर ले जाया जाता है। यह भ्रमण उसी क्रम का एक महत्वपूर्ण अध्याय रहा।

प्रिंसिपल डॉ. रेनू सहगल का विस्तारपूर्वक उद्बोधन

विद्यालय की प्रिंसिपल डॉ. रेनू सहगल ने कहा,
“गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को समझने के लिए फील्ड विज़िट अत्यंत आवश्यक हैं। हुमायूँ के मकबरे की यात्रा ने विद्यार्थियों को इतिहास के सैद्धांतिक ज्ञान को वास्तविक संरचना के माध्यम से समझने में सहायता प्रदान की। यह हमारे छात्रों को न केवल एक बेहतर विद्यार्थी, बल्कि एक जागरूक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध नागरिक के रूप में विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण है। विद्यालय निरंतर ऐसे भ्रमण आयोजित करेगा ताकि बच्चों में ज्ञान के साथ निरीक्षण, सवाल पूछने की क्षमता और देश की विरासत के प्रति गर्व विकसित हो।”

उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रकार के अनुभव छात्रों में नेतृत्व, टीमवर्क, अनुशासन और सामाजिक व्यवहार जैसे गुणों को भी सुदृढ़ करते हैं, जो जीवन में सफलता की बुनियाद होते हैं।

यात्रा का निष्कर्ष

यह शैक्षणिक भ्रमण छात्रों के लिए स्मरणीय रहा। इतिहास उनके लिए पुस्तकों से निकलकर वास्तविकता के रूप में सामने आया। छात्रों ने अपने देश की विरासत को गहराई से महसूस किया और उनमें यह विश्वास और दृढ़ हुआ कि भारत का सांस्कृतिक इतिहास विश्व के लिए अद्वितीय और प्रेरणास्रोत है।

इस आयोजन ने विद्यार्थियों में जिज्ञासा, गौरव और सीखने की सकारात्मक ऊर्जा को न केवल बढ़ाया, बल्कि शिक्षा के मूल उद्देश्य “ज्ञान से चरित्र और जागरूकता” की दिशा में महत्वपूर्ण कदम भी सिद्ध हुआ।

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