रिपोर्टकार्ड पेश करने की बजाय भाजपा ने धर्म की कॉकटेल के साथ चुनाव लड़ा

 

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4 जून को 400 पार या फिर 400 आर होगा, अब कुछ ही समय बाकी

मौहम्मद इल्यास-दनकौरी

लोकसभा चुनाव अंतिम चरण में हैं। कल दिनांक 1 जून-2024 को आखिर चरण का मतदान भी संपन्न हो जाएगा। 4 जून को 400 पार या फिर 400 आर होगा, अब कुछ ही समय बाकी है। सिंहासन खाली करो की जनता आती है। कुल मिला कर नेता नगरी जनता की ओर टकटकी लगाए हुए देख रही है। बहरहाल जनता ने फैसला तो सुना ही दिया है उद्घोषणा किया जाना बाकी है। देश में सरकार किसकी बनेगी और नया प्रधानमंत्री कौन बनेगा? यह सवाल सबके मन में हैं। वर्ष 2014 का चुनाव भाजपा गठबंधन जीता और फिर वर्ष 2019 में भी जीत का डंका बजाया। किंतु इस बार वर्ष 2024 का लोकसभा चुनाव कुछ भाजपा के लिए अलग रहा।  2014 चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस की हठधार्मिता और घमंड को जनता के सामने रखा। वर्ष 2019 में पुलवामा हमला हुआ और देश भक्ति की बयार बह निकली। वर्ष 2024 के इस लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए पूरे 10 साल के कार्यकाल की उपलब्धियों को खाका था और वहीं दूसरी ओर राममंदिर और धारा 370 जैसे मुद्दे थे। धर्म की कॉकटेल के साथ यह चुनाव लड़ा गया। एक तरफ जहां उनके पास हवाई अड्डों, मेट्रो, एक्सप्रेस- वे, आवास योजनाओं, औद्योगिक विकास, डिफेंस कॉरीडोर जैसी झोला भर उपलब्धियां रही है, वहीं राम मंदिर निर्माण, काशी, मथुरा व चित्रकूट के विकास के साथ तमाम अहम धार्मिक मुद्दे रहे। किंतु इस चुनाव में रिपोर्टकार्ड पेश करने की बजाय भाजपा ने राममंदिर निमार्ण की उपलिब्ध और धारा 370 हटाने जैसे मुद्दों को खासी तरजीह दी। शुरू के 2 चरणों तक तो सब कुछ ठीक रहा मगर जैसे जैसे चुनाव के चरण आगे बढते गए, जिस विपक्ष को जनता सुनना नही चाह रह थी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और यूपी के सीएम योगी से संजीवनी मिलती ही चली गई। भाजपा के इन नेताओं के बयानों में संयम,परिवक्वता और बडपन्न डोलने लगी। हिंदु मुसलमान, हिंदु मुसलमान, हिंदुस्तान पाकिस्तान- हिंदुस्तान पाकिस्तान से विपक्ष को मजबूती मिलती ही चली गई। देश की राजनीति में एक समय अछूत बनी भाजपा ने जब चेहरा बदला और नारा दिया कि सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास तो जनता ने भी अंर्तमन से स्वीकारना शुरू किया। किंतु इस चुनाव में जिस प्रकार खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुसलमानों को खुले तौर पर अपने निशाने पर रखा वास्तव में भाजपा की सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के नारे की नीवं जरूर दरक गई। देश में प्रधानमंत्री का कद और गरिमा वाकई अलग होती है फिर मंगलसूत्र की बात किया जाना गरिमा से परे नही है। यह सब झुझलाहट, बोखालाहट का परिणाम ही दिखाई देता है। लोकसभा-2024 से मात्र 1 महीने पहले तक जो भाजपा देश को वर्ष 2047 तक विकसित देशों की कडी में शामिल किए जाने के लिए गांव गांव और गली गली तक पहुंच कर मिशन में लगी हुई थी, इस बार भी हिंदुतत्व की चासनी में मतदाताओे को डुबोती हुई नजर आई। इससे एक बडा वर्ग जो हिंदुस्तान- पाकिस्तान- 2, हिंदु- मुसलमान-2 से उबते हुए नजर आया। वैसे कांग्रेस की बात छोड दें तो विपक्षी घटक दल पूरे 5 साल कहीं भी नजर नही आए। समाजवादी पार्टी आराम से घर बैठी रही और विधानसभा का चुनाव करीब आने पर जो थोड़ी बहुत गतिविधियां शुरु की वह मुंहदिखाई से ज्यादा कुछ भी नहीं साबित हुई। उत्तर प्रदेश की राजनीति पर गहरी नजर रखने वालों का मानना है कि अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा में उस धार और जज्बे की कमी साफ दिखती है जो कभी विपक्ष में रहते हुए मुलायम सिंह यादव में नजर आती थी। नौजवानों की नयी सलाहकार से घिरे अखिलेश यादव किसी जमीनी संघर्ष के बिना सत्ता पक्ष को हिट एंड रन के जरिए परेशान करने की नाकाम कोशिश ही करते दिखते हैं। उत्तर प्रदेश के एक अन्य प्रमुख विपक्षी दल बहुजन समाज पार्टी तो लकवे की हालात में नजर आती है। इन पांच सालों में एक भी मौका नहीं आया जब बसपा ने सड़क पर उतर कर सरकार का विरोध किया हो, उल्टा तमाम मौके पर बसपा सुप्रीमो मायावती के बयानों के सरकार को मजबूत करने का ही काम किया है। लंबे अरसे से जमीन तलाश रही कांग्रेस जरुर अपने को स्थापित किए जाने के मिशन में जुटी हुई है। पप्पू छवि से अलग हट कर अब राहुल गांधी की बात को भी लोग थोडा संजीजगी से सुनने लगे है। तमाम मौकों पर असली विपक्ष की भूमिका में कांग्रेस ही नजर आयी है।

 

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