
चौधरी शौकत अली चेची
भारत की स्वतंत्रता संग्राम की गाथा लाखों शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों से लिखी गई है। इन्हीं में से एक अमर क्रांतिकारी शहीद-ए-आज़म भगत सिंह हैं, जिन्होंने मात्र 23 वर्ष की आयु में अपने प्राणों की आहुति देकर देश की आज़ादी की मशाल को नई रोशनी दी।
जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि
- जन्म : 27/28 सितंबर 1907, बंगा गांव, जिला लायलपुर (अब पाकिस्तान)
- पिता : सरदार किशन सिंह सिंधु
- माता : विद्यावती कौर
- चाचा : अजीत सिंह – प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी
भगत सिंह का जन्म एक किसान और क्रांतिकारी परिवार में हुआ। बचपन से ही परिवार का वातावरण उन्हें देशभक्ति की ओर प्रेरित करता रहा।
शिक्षा और प्रारंभिक जीवन
- दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल, लाहौर से शिक्षा
- नेशनल कॉलेज, लाहौर से बी.ए. की पढ़ाई
- नाटकों और मंचन के माध्यम से युवाओं में जोश और देशभक्ति का संचार
- 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह की सोच को गहराई से प्रभावित किया।
क्रांतिकारी गतिविधियाँ
- 1926 : नौजवान भारत सभा के सेक्रेटरी बने।
- 1928 : हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) में शामिल हुए, जिसकी स्थापना चंद्रशेखर आज़ाद ने की थी।
- 30 अक्टूबर 1928 : लाला लाजपत राय पर पुलिस लाठीचार्ज के बाद उनकी मृत्यु से आहत होकर भगत सिंह ने बदले की शपथ ली।
- पुलिस अधिकारी जॉन पी. सांडर्स की हत्या की गई।
- पहचान छुपाने हेतु दाढ़ी-बाल कटवाए।
- 8 अप्रैल 1929 : सेंट्रल असेंबली, दिल्ली में बटुकेश्वर दत्त के साथ बम फेंका और “इंकलाब जिंदाबाद” का नारा लगाते हुए आत्मसमर्पण किया।
जेल जीवन और बलिदान
- जेल में कठोर यातनाओं और लंबी भूख हड़ताल के बावजूद अडिग रहे।
- 7 अक्टूबर 1930 : भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सज़ा सुनाई गई।
- 23 मार्च 1931 : शाम 7:33 बजे तीनों को लाहौर जेल में फांसी दी गई।
- अंग्रेजों ने शवों को चोरी-छिपे जलाकर सतलुज नदी में फेंक दिया, लेकिन जनता ने अधजले शवों को एकत्रित कर विधिवत अंतिम संस्कार किया।
विचार और दर्शन
- भगत सिंह समाजवादी विचारधारा से प्रभावित थे।
- उन्होंने कहा – “क्रांति की तलवार विचारों की शान से तेज होती है।”
- वे धर्मनिरपेक्ष, वैज्ञानिक सोच और समानता के समर्थक थे।
- उनकी लेखनी और जेल डायरी आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा है।
कानूनी लड़ाई और ऐतिहासिक महत्व
- वकील आसफ़ अली ने उनका केस लड़ा।
- 68 पृष्ठों का निर्णय देकर उन्हें फांसी की सज़ा दी गई।
- महात्मा गांधी, पं. मदन मोहन मालवीय समेत कई नेताओं ने फांसी माफ करने का प्रयास किया, लेकिन भगत सिंह स्वयं फांसी से पीछे हटना नहीं चाहते थे।
- आज भी पाकिस्तान की अदालत में उनके मामले की पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल होती हैं।
आज का महत्व
- भगत सिंह केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे उपमहाद्वीप के युवाओं के आदर्श हैं।
- पाकिस्तान में भी उन्हें सम्मान से याद किया जाता है।
- 117वीं जयंती (28 सितंबर 2025) पर हम उनके बलिदान को नमन करते हैं।
लेखक परिचय
चौधरी शौकत अली चेची
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष – किसान एकता (संघ) व
पिछड़ा वर्ग सचिव – समाजवादी पार्टी, उत्तर प्रदेश है।
कानूनी अस्वीकरण (Disclaimer)
यह लेख केवल ऐतिहासिक तथ्यों और सार्वजनिक अभिलेखों पर आधारित है। इसमें व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। किसी भी संस्था, संगठन अथवा व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुँचाना उद्देश्य नहीं है। पाठकों से निवेदन है कि इसे केवल शैक्षिक और प्रेरणात्मक सामग्री के रूप में ग्रहण करें।