
✍️ चौधरी शौकत अली चेची
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, किसान एकता संघ एवं पिछड़ा वर्ग उ.प्र., सचिव (सपा)
आज हम उस दौर में जी रहे हैं जहाँ सच बोलना गुनाह और हक़ की आवाज़ उठाना अपराध बन गया है।
RTI जैसे लोकतांत्रिक औज़ार को लगभग निष्क्रिय कर दिया गया है। अब तो बुद्धिमान चुप रहना बेहतर समझते हैं, क्योंकि जो सवाल उठाता है — उसे ही निशाना बनाया जाता है।
राजनीतिक और प्रशासनिक विडंबनाएँ
राजकीय दल से टिकट लेकर चुनाव जीतने वाला, जब पैसे के दम पर दूसरी पार्टी में शामिल होता है, तो उसे रोकने वाला कोई कानून नहीं है।
चुनाव आयोग वोटिंग डेटा को 11 दिनों तक छुपा लेता है, लेकिन बिहार जैसे राज्य में 25 दिनों के भीतर 8 करोड़ मतदाताओं की ‘जाँच’ कर लेता है — यह कैसे संभव है?
243 विधानसभा सीटों वाले बिहार में अगर हर सीट पर 320 बूथ हैं और हर बूथ से 10 वोट भी हटा दिए जाएँ, तो 3200 वोट प्रति सीट गायब हो सकते हैं।
क्या यही चुनावी षड्यंत्र नहीं है?
आरक्षण की राजनीति: एकतरफा न्याय?
5% आरक्षण की माँग में 72 गुर्जर शहीद हुए, 4% के लिए 17 जाट, और 6% के लिए 15 पटेल — लेकिन आरक्षण नहीं मिला।
वहीं सवर्णों के लिए 10% आरक्षण तुरन्त लागू कर दिया गया।
क्या यह न्याय है या सत्ता का संतुलन?
डिजिटल इंडिया की असलियत
सड़कों पर ठेले-रेहड़ी चलाने वाले 13,000 छोटे दुकानदारों को UPI और पेटीएम का इस्तेमाल करने पर GST विभाग ने नोटिस थमा दिए जाते हैं।
क्या यही “डिजिटल क्रांति” है?
धार्मिक भेदभाव और दोहरा मापदंड
कावड़ यात्रियों के लिए नेशनल हाइवे बंद हो सकते हैं, लेकिन सड़कों पर 15 मिनट की नमाज पर पाबंदी है।
लहसुन-प्याज़ ढाबों पर वर्जित, मगर देसी शराब और भांग खुलेआम उपलब्ध —
कविता पर FIR, सवाल पर धमकी — ये कैसा ‘धार्मिक संतुलन’ है?
शिक्षा से सवाल उपजते हैं — इसलिए शिक्षा काटी जा रही है
SC-ST, OBC और सफाईकर्मी समुदाय के मेधावी छात्रों के लिए विदेश में पढ़ाई वाली राष्ट्रीय छात्रवृत्ति योजना का बजट 99.8% घटा दिया गया — कुल ₹1 करोड़ भी नहीं।
वहीं राम मंदिर पर ₹2150 करोड़, कुंभ पर ₹12670 करोड़ और सिंहस्थ पर ₹5200 करोड़ खर्च कर दिए गए।
सरकार के पास त्योहारों और भवनों के लिए पैसा है, मगर गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए नहीं।
किसान: देश की रीढ़, मगर सत्ता के लिए बोझ
MSP की गारंटी, खाद की उपलब्धता और भूमि अधिग्रहण के सही मुआवज़े के लिए किसान सालों से संघर्ष कर रहे हैं।
DAP, NPK, यूरिया जैसी खादों पर अब चीन की निर्भरता भारी पड़ रही है, लेकिन सरकार ने घरेलू उत्पादन पर कोई ठोस नीति नहीं बनाई।
खाद की बोरियों पर प्रधानमंत्री की तस्वीर तो है, लेकिन किसानों की जमीन पर भरोसे की नीतियाँ नहीं।
क्या अब न्याय भी वर्ग देखता है?
100 साल पुरानी बस्ती को तोड़ा जा रहा है, जबकि कानून कहता है 12 साल से ज्यादा कब्जा करने वाला मालिक हो सकता है।
पुनर्वास की अनदेखी, जीने के अधिकार की अनदेखी — ये अब नीतिगत चुप्पी बन गई है।
राहुल गांधी से डर क्यों?
एक अकेले आदमी से लड़ने के लिए 200 विधायक, 23 मंत्री, 18 मुख्यमंत्री, 110 सांसद और बिकाऊ मीडिया उतर पड़े हैं।
अगर इतनी ताकत किसान, मज़दूर, छात्र और महिला की समस्याओं पर लगती — तो शायद भारत आज बेहतर होता।
जनता क्या बचा रही है, और क्या बेच दिया गया है?
तेल, गैस, बैंक, बीमा, रेलवे, एयरपोर्ट… सब बिक गया।
GDP फेल, रुपया गिरा, महंगाई बढ़ी —
लेकिन सरकार को फर्क नहीं, क्योंकि मंदिर और नफरत के मुद्दे अभी स्टॉक में हैं।
आख़िर में — हम क्या हैं?
मैं जाट नहीं, मुसलमान नहीं, ब्राह्मण नहीं, दलित नहीं…
मैं सिर्फ़ “घंटा” हूं — जिसे नेता हर पाँच साल में बजाते हैं।
अब नहीं।
अब जवाब चाहिए।
अब “जय जवान, जय किसान” नहीं — अब “जय सवाल” चाहिए।
🛡️ कानूनी अस्वीकरण (Disclaimer):
यह लेख चौधरी शौकत अली चेची (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, किसान एकता संघ एवं पिछड़ा वर्ग उत्तर प्रदेश, सचिव – सपा) के निजी विचारों पर आधारित है। इसमें व्यक्त की गई राय लेखक की स्वतंत्र अभिव्यक्ति है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) द्वारा संरक्षित है।
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