मोहर्रम (ताजिया) मनाने का उद्देश्य: एक शहादत की अमर गाथा


बलिदान, सत्य और इंसानियत की विरासत

विश्व के सभी प्रमुख त्योहार किसी न किसी रूप में सत्य और असत्य, बलिदान और त्याग, न्याय और अन्याय के बीच के संघर्ष का प्रतीक होते हैं। इसी तरह इस्लाम धर्म का मोहर्रम पर्व भी एक अत्यंत भावनात्मक और ऐतिहासिक महत्व रखता है। इसे “शहादत का महीना” कहा जाता है, जिसमें हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों की कर्बला के मैदान में दी गई कुर्बानी को याद किया जाता है।


मुख्य उद्देश्य और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

1. इस्लामिक नववर्ष की शुरुआत

मोहर्रम इस्लामी हिजरी कैलेंडर का पहला महीना होता है। इस वर्ष (1447 हिजरी) की शुरुआत 27 जून 2025, शुक्रवार से हुई है। हिजरी कैलेंडर की गणना चंद्रमा की गति के अनुसार की जाती है और यह 355 दिनों का होता है।

2. हिजरत: मक्का से मदीना

इस्लाम के अंतिम पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने जब मक्का से मदीना की ओर हिजरत (प्रवास) की, उसी घटना को आधार बनाकर हिजरी कैलेंडर की शुरुआत मानी जाती है (622 ईस्वी)।

3. कर्बला का बलिदान

मुहर्रम का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष कर्बला की वह ऐतिहासिक घटना है, जिसमें हजरत इमाम हुसैन—पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे—ने अन्याय और अत्याचार के खिलाफ लड़ते हुए अपने परिवार और साथियों सहित शहादत दी।

4. यजीद का अत्याचार और हुसैन का संघर्ष

60 हिजरी में यजीद नामक क्रूर शासक ने स्वयं को खलीफा घोषित किया। हुसैन ने उसकी बेदीन नीतियों के खिलाफ आवाज उठाई और उसे खलीफा मानने से इनकार कर दिया। इसी संघर्ष ने उन्हें कर्बला की ओर बढ़ने पर मजबूर किया।

5. कर्बला: सत्य की विजय की मिसाल

61 हिजरी, 10वीं मोहर्रम (680 ईस्वी) को कर्बला के तपते रेगिस्तान में हुसैन के 72 साथियों ने यजीद की 80,000 की सेना से लोहा लिया। पानी की एक बूंद के बिना, भूखे-प्यासे, उन्होंने धर्म और मानवता की रक्षा हेतु जीवन अर्पण किया।


मुख्य परंपराएं और प्रतीक

1. ताजिया और मातम

  • मोहर्रम में ताजिया निकाले जाते हैं, जो कर्बला के शहीदों की याद में प्रतीकात्मक मकबरे होते हैं।
  • मातम (शोक) किया जाता है — लोग छाती पीटते हैं, “या हुसैन” की सदा लगाते हैं।
  • महिलाओं की आंखों में आंसू होते हैं और पुरुष रक्त तक बहा देते हैं, यह सब हुसैन की शहादत की पीड़ा को जीने के लिए होता है।

2. मरसिया और नौहे

कर्बला की घटना पर लिखे गए मरसिये और नौहे—(शोक गीत)—गाए जाते हैं। मीर अनीस और दबीर जैसे शायरों ने इन गीतों के ज़रिए इस दर्द को शब्द दिए हैं।

3. खिचड़ा और हलीम

मोहर्रम में विशेष भोजन हलीम (या खिचड़ा) बनाया जाता है। माना जाता है कि कर्बला में जब राशन खत्म हो गया था, तब यह मिश्रित अनाज का भोजन तैयार किया गया था।

4. अहिंसा और आत्मबल का संदेश

मोहर्रम हिंसा का नहीं, बल्कि सहिष्णुता, त्याग, संयम और नैतिक साहस का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि अत्याचार के आगे झुकना नहीं चाहिए, भले ही कीमत जान क्यों न हो।


आधुनिक संदर्भ और आयोजन

  • भारत में विशेष रूप से लखनऊ, दिल्ली, हैदराबाद और कश्मीर में मुहर्रम की शोक सभाएं भव्य रूप से मनाई जाती हैं।
  • दिल्ली में जोरबाग में ‘मिनी कर्बला’ बसाई गई है, और कोटला फिरोजशाह से ताजियों का विशाल जुलूस निकलता है।
  • लखनऊ के नवाबों द्वारा बनाए गए इमामबाड़े आज भी शहादत की याद को जीवंत रखते हैं।

मोहर्रम का सार्वभौमिक संदेश

  • मोहर्रम हमें जाति, पंथ और धर्म की सीमाओं से ऊपर उठकर सत्य, इंसानियत और न्याय के लिए लड़ने की प्रेरणा देता है।
  • यह पर्व दमन के खिलाफ आवाज उठाने और नैतिकता की रक्षा के लिए शहादत देने की शिक्षा देता है।

उपसंहार

मोहर्रम कोई साधारण शोक पर्व नहीं, बल्कि यह एक जीवित इतिहास है, जो हर वर्ष हमें यह याद दिलाता है कि हुसैन आज भी जिंदा हैं, क्योंकि उन्होंने अपने लहू से इंसानियत की ज़मीन सींची थी। उनकी शहादत इस बात की गवाही है कि बातिल चाहे जितना भी ताकतवर हो, सच्चाई कभी नहीं मरती


लेखक:-चौधरी शौकत अली चेची, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष – किसान एकता संघ,पिछड़ा वर्ग सचिव – समाजवादी पार्टी (उत्तर प्रदेश) हैं।


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