
हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद संदेह बरकरार: प्रमोद कुमार वर्मा एडवोकेट

मौहम्मद इल्यास- “दनकौरी”/ग्रेटर नोएडा
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण क्षेत्र के किसानों को उनके अधिग्रहित भूमि के बदले मिलने वाले 10% विकसित आबादी भूखंड आज तक नहीं मिल पाए हैं, जबकि माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा इस विषय में दो बार स्पष्ट आदेश दिए जा चुके हैं। इससे प्रभावित किसानों में रोष है और वे प्रशासनिक प्रक्रिया को लेकर गंभीर संदेह जता रहे हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, 26 दिसंबर 2023 को ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने इस मुद्दे पर सैद्धांतिक सहमति प्रदान की थी। इसके बाद 19 जनवरी 2024 को यह प्रस्ताव शासन को स्वीकृति के लिए भेजा गया और 13 फरवरी 2024 को दोबारा शासन को प्रेषित किया गया। बावजूद इसके, इस प्रस्ताव को ‘हाई पावर कमेटी’ के पास भेज दिया गया, जबकि इसकी कोई स्पष्ट आवश्यकता नहीं थी। अब तक इस पर कोई निर्णय नहीं आ पाया है।
खैरपुर गुर्जर गांव निवासी व पूर्व अध्यक्ष, जनपद दीवानी एवं फौजदारी बार एसोसिएशन गौतम बुद्ध नगर प्रमोद कुमार वर्मा एडवोकेट ने “विजन लाइव” से बातचीत में कहा,
“10 प्रतिशत आबादी भूखंड किसानों का वैध अधिकार है। हाईकोर्ट ने दो बार अपने आदेशों में इसे स्पष्ट किया है, लेकिन प्राधिकरण और शासन की उदासीनता से किसानों को न्याय नहीं मिल रहा। जो किसान न्यायालय नहीं गए थे, उन्हें भी प्लॉट मिल चुके हैं — यह मिसाल बन चुकी है। फिर अन्य किसानों के मामलों में इसे नकारना अनुचित है। यह मामला अब पारदर्शिता की कमी और न्यायिक आदेशों की अवहेलना का प्रतीक बनता जा रहा है।”
किसानों का आरोप है कि प्रशासन द्वारा यह कह कर मामले को टाल दिया जाता है कि जिन्हें बिना कोर्ट गए भूखंड दिए गए है उनका आवंटन निरस्त किया जाएगा। प्राधिकरण उन्हें निरस्त नहीं कर सकता क्योंकि प्राधिकरण को कोई भी ऐसा विधिक अधिकार नहीं है कि प्राधिकरण बिना कोर्ट गए किसानों को दिए गए 10% भूखंडों को निरस्त कर सके ।

गौरतलब है कि माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने 2 अप्रैल 2025 और 30 अप्रैल 2025 को किसानों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट आदेश दिए हैं कि ऐसे सभी मामलों में एक समान नीति लागू की जाए। अदालत ने निर्देशित किया है कि जिन्होंने कोर्ट का रुख नहीं किया और भूखंड पाए, उसी आधार पर अन्य किसानों के दावे भी तय किए जाएं।
फिलहाल स्थिति यह बन गई है कि न्यायालय के स्पष्ट निर्देश और प्राधिकरण की प्रारंभिक सहमति के बावजूद किसानों को उनका अधिकारिक हक नहीं मिल पाया है। कई किसान अब न्यायालय की शरण लेने को मजबूर हो रहे हैं।
किसानों ने शासन से अपील की है कि न्यायालय के आदेशों का पालन सुनिश्चित किया जाए और 10% विकसित आबादी भूखंड आवंटन में पारदर्शिता लाते हुए पात्र किसानों को शीघ्र लाभान्वित किया जाए।