
राष्ट्रीय सचिव रामशरण नागर की कानूनी पहल से मिला न्यायालय का निर्देश, पुलिस पर उठे सवाल

मौहम्मद इल्यास- “दनकौरी”/ग्रेटर नोएडा
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सोशल मीडिया के माध्यम से गोली मारने की धमकी देने वाले युवक पर अब कानूनी शिकंजा कस गया है। इस मामले में द्वितीय अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट रवि कुमार सागर ने सूरजपुर थाना अध्यक्ष को एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू करने का आदेश दिया है।
इस पूरे मामले में समाजवादी पार्टी अधिवक्ता सभा के राष्ट्रीय सचिव एवं वरिष्ठ अधिवक्ता रामशरण नागर की भूमिका निर्णायक रही। पुलिस की निष्क्रियता के बीच उन्होंने न्यायालय में एक प्रार्थना पत्र दाखिल कर आरोपी पर कार्रवाई की मांग की, जिसे अदालत ने गंभीरता से लेते हुए संज्ञान में लिया।

फेसबुक पर वायरल हुआ धमकी भरा वीडियो
घटना के अनुसार, अमरेंद्र प्रताप सिंह नामक युवक ने अपनी फेसबुक आईडी से एक वीडियो अपलोड किया, जिसमें उसने अखिलेश यादव को गोली मारकर जान से मारने की धमकी दी थी। यह वीडियो वायरल होने के बाद समाजवादी पार्टी में आक्रोश फैल गया।
पुलिस रही मौन, अधिवक्ता सभा ने उठाई आवाज
वीडियो सामने आने के बाद सपा के जिला पदाधिकारियों ने सूरजपुर थाने में तहरीर दी और पुलिस आयुक्त को पत्र लिखकर आरोपी के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की मांग की। मगर पुलिस ने इस संवेदनशील मामले में कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की, जिससे पार्टी कार्यकर्ताओं में नाराजगी फैल गई।

रामशरण नागर की कानूनी पहल से मिला न्याय
पुलिस की उदासीनता के बीच समाजवादी अधिवक्ता सभा के राष्ट्रीय सचिव रामशरण नागर ने मामले को गौतम बुद्ध नगर न्यायालय में उठाया। उन्होंने सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत आरोपी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के लिए प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया, जिसे स्वीकार करते हुए अदालत ने तुरंत कार्रवाई का आदेश दिया।
रामशरण नागर ने कहा:
“लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों को धमकाना गंभीर अपराध है। जब प्रशासन चुप्पी साधे, तब न्यायपालिका और जागरूक अधिवक्ता ही जनता के अधिकारों की रक्षा करते हैं। यह आदेश संवैधानिक मूल्यों की जीत है।”
पार्टी ने जताया आभार, पुलिस की भूमिका पर सवाल
सपा जिलाध्यक्ष सुधीर पार्टी ने न्यायालय के आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि यह अधिवक्ता सभा की सजगता का परिणाम है। उन्होंने कहा कि यदि पुलिस समय रहते कार्रवाई करती, तो मामला अदालत तक न पहुंचता। उन्होंने भविष्य में ऐसे मामलों में तत्परता से कार्रवाई की मांग की।

भले ही प्रशासन चुप क्यों न हो
यह मामला न केवल एक जननेता को दी गई धमकी का है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि जब संवैधानिक संस्थाएं और जिम्मेदार नागरिक सजग हों, तो न्याय सुनिश्चित किया जा सकता है — भले ही प्रशासन चुप क्यों न हो।