गौतमबुद्धनगर महिलाओं के लिए सुरक्षित ?

गौतम बुद्ध नगर में दहेज अपराध से जुड़े मामलों का सूचना के अधिकार से अर्जित अधिकारिक आंकड़ा

आर्य सागर खारी

देश की सरकारें समय-समय पर तपेदिक मुक्त, रेबीज मुक्त या अन्य किसी संक्रामक बीमारी से मुक्त होने का लक्ष्य तय करती है लक्ष्य को हासिल भी करती हैं लेकिन आज भी सरकारों की प्राथमिकता में दहेज के खतरनाक वायरस से संक्रमित समाज को मुक्त करने की कोई प्रतिबद्धता दिखाई नहीं देती है कोई दहेज मुक्ति कार्यक्रम हमें दिखाई नहीं देता जबकि महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में दहेज से जुड़े अपराध सर्वाधिक होते हैं। कुछ लोग कहते हैं सरकार अकेले कुछ नहीं कर सकती इसमें समाज का सहयोग अपेक्षित है। बगैर नागरिक सहयोग सुधार के कोई भी सफलता अर्जित नहीं की जा सकती।

दहेज एक व्यापक भारतीय समाज में प्रचलित कुरीति है वर्ष 2002 में विश्व बैंक की रिपोर्ट इसकी पुष्टि करती है। पूरे देश के थानों में दर्ज हुए दहेज संबंधित अपराधों का आंकड़ा अर्जित करना श्रम, समय व धन साध्य कार्य है,लेकिन हम अपनी नागरिक जिम्मेदारी के तहत जिस शहर जनपद में रहते हैं उस जनपद के समस्त थानों से इस संबंध में सूचना के अधिकार के तहत आंकड़े हासिल कर सकते हैं।

गौतमबुद्धनगर में जिसे उत्तर प्रदेश की सौ विंडो हाईटेक जनपद कहा जाता है वर्ष 2020 में पुलिस कमिश्नरेट प्रणाली स्थापित की गई। क्या गौतमबुद्धनगर महिलाओं के लिए सुरक्षित है दहेज को लेकर क्या स्थिति है। इस संबंध में सितंबर 2024 में मैंने महिला अपराधों के आंकड़ों के संबंध में एक आरटीआई दायर की जिसमें दहेज अपराधों का विवरण भी मांगा गया था जो आंकड़े मिले वह चिंताजनक थे गौतमबुद्धनगर पुलिस कमिश्नरेट के 24 थानों के अनुसार वर्ष 2020 से लेकर 2024 तक अकेले गौतमबुद्धनगर में 1600 से अधिक महिला अपराध दर्ज किए गए जिनमें में 500 से अधिक मामले दहेज उत्पीड़न के थे तो वही 106 मामले दहेज हत्या के थे, सबसे चिंताजनक स्थिति यह है वर्ष दर वर्ष यह मामले गौतमबुद्धनगर में बढ़ रहे हैं।

गौतमबुद्धनगर आबादी व क्षेत्रफल की दृष्टि से एक औसत ही जनपद है दहेज अपराधों में बढ़ोतरी महिलाओं के विरुद्ध अपराध में भारत की चिंता जनक स्थिति को स्पष्ट करती है। स्थाली -पुलाक न्याय से जो मीमांसा दर्शन का एक न्याय है जिसके अनुसार यदि पतीली में चावल पक रहे हैं तो हम सभी चावलों को नहीं देखते कि चावल पके है या नहीं हम केवल एक दो चावलों को निकालकर देखकर शेष चावलों का अनुमान लगा लेते हैं । ठीक ऐसे ही गौतमबुद्धनगर में दहेज के अपराधों से हम पूरे देश का अनुमान निकाल सकते हैं । वही जब यह आंकड़े एक अखबार में प्रकाशित हुई रिपोर्ट  के रूप में तो कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर इन आंकड़ों को तो सत्य माना लेकिन इन अपराधों को सत्य नहीं माना । उनकी यह महिला विरोधी मानसिकता थी कि यह मामले जो दर्ज किए गए हैं यह कहीं न कहीं फेक फेमिनिज्म अर्थात छद्म नारीवाद के कारण है। यह पुरुषों को प्रताड़ित करने के लिए मुकदमे दर्ज कराए गए हैं । वहीं कुछ संवेदनशील लोगों ने स्थिति को स्वीकार किया ।

दहेज प्रथा के पक्ष विपक्ष में ही नहीं दहेज के अपराधों को लेकर भी समाज दो हिस्सों में बटा हुआ है। ऐसी स्थिति में यदि दहेज एक अभिशाप निवारण समिति जैसा संगठन दहेज के विरुद्ध सामाजिक तौर पर एक अभियान छेड़े हुए हैं तो इस संगठन का उत्साहवर्धन संरक्षण तन मन धन से हम सभी को मिलकर करना चाहिए । दहेज मुक्त आदर्श विवाह करने वाले परिवारों को सम्मानित किया जाना चाहिए, व्यक्तिगत उनके प्रतिष्ठान आवास पर जाकर या सार्वजनिक किसी कार्यक्रम में यह अलग विषय हो सकता है कि दहेज मुक्त विवाह या सादगी से हुए विवाह की सर्वमान्य परिभाषा क्या हो उसके क्या मानदंड हो? अस्तु उस विवाह को दहेज मुक्त या सादगी से संपन्न माना जाए जिसमें लाखों रुपए कैटरिंग पर खर्च किए गए हो हजारों लोगों की गैदरिंग हो भव्य पंडाल हो लेकिन नकदी व दहेज की एवज में किसी भी धन या वस्तु का हस्तांतरण न हुआ हो या उस विवाह को आदर्श सादगी से युक्त माना जाए जिसमें न नकदी व अन्य वस्तु का हस्तांतरण हो न हीं भव्य पंडाल भोजन का विविधतापूर्ण मेनू न हो केवल सीमित अतिथियों की उपस्थिति में दो-चार परंपरागत पकवान पंगत में बिठाकर अतिथियों को खिलाकर शिष्टाचार पूर्वक उनका धन्यवाद ज्ञापित कर उन्हें विदा कर दिया जाए ।

यह भी विचारणीय है सादगी क्या देश काल की परिस्थितियों से निरपेक्ष व्यवहार है या देशकाल परिस्थितियों की परंपराओं के अनुसार सादगी का मानदंड भी बदलता रहता है। इस संबंध में आप सभी की टिप्पणी अपेक्षित है।

लेखक:- आर्य सागर खारी ,तिलपता, ग्रेटर नोएडा,सूचना का अधिकार कार्यकर्ता व सामाजिक चिंतक और विचारक हैं।

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