आर्य सागर खारी
नशा सस्ता हो या महंगा, सुखा हो या गीला वह जीवन बेल को सुखाकर नष्ट कर ही देता है… नशे के कारण भरपूर यौवन में 20 से 30 वर्ष की वय में ही यदि जीवन बेल मुरझाकर नष्ट हो जाए तो इससे बड़ी त्रासदी व्यक्तिगत ,पारिवारिक ,सामाजिक राष्ट्रीय जीवन में नहीं हो सकती। जिसका खामियाजा सभी को चुकाना पड़ता है।
औषधि विज्ञान ने प्रगति की नित रोग की नवीन दवाई खोजी गयी खोजी जा रही हैं लेकिन तब क्या हो जब खोजी गई दवाई ही नशे के तौर पर प्रयोग की जाने लगे। यह व्यक्ति के ज्ञान पर निर्भर करता है कोई सुई से आंख फोड़ सकता है तो कोई सुई का वस्त्र सीलने में ही उचित सदुपयोग करता है।
खुराफाती इंसान ने अपनी दिमाग की खुराफात से हर एक वस्तु में नशा खोजता है ऐसा ही हुआ 1980 के दशक में ईजाद हुई उत्तम दर्द निवारक दवा ओपोइड ड्रग्स ट्रामाडोल जो कैप्सूल व टैबलेट के रूप में मिलती है के मामले में।
यह दवा मॉर्फिन की तरह तीव्र जीर्ण दर्द से निजात दिलाती है गठिया व कैंसर रोगियों के दर्द के मामले में ।यह मस्तिष्क में स्थित पेंन रिसेप्टर की कार्यप्रणाली को अवरोधित करती हैं लेकिन साथ ही साथ यह मस्तिष्क के सेरोटोनिन जैसे केमिकल को भी प्रभावित करती है यदि इसे सुरक्षित मात्र से दुनी मात्रा में लिया जाए तो यह अफीम हेरोइन ड्रग्स जैसा नशा देती है तब यह दवा से नशीली ड्रग्स में बदल जाती है।
संयुक्त राज्य अमेरिका यूरोपीय यूनियन ने इस ट्रामाडोल औषधि को कंट्रोल सब्सटेंस व साइकॉट्रॉपिक सब्सटेंस वर्ष 2014 में ही घोषित कर दिया इसकी बिक्री पर निगरानी घोषित कर दी अधिकांश देशों में तो यह प्रतिबंधित है कठोर सजा का प्रावधान है लेकिन भारत में आज भी यह ट्रामाडोल कैप्सूल गली गली खुले हुए मेडिकल स्टोर पर धड़ल्ले से बिक रहे हैं जबकि वर्ष 2018 में नारकोटिक्स ब्यूरो न इस कैप्सूल को साइकॉट्रॉपिक लत पैदा करने वाली स्वापक औषधि घोषित किया है कोई भी मेडिकल स्टोर संचालक 600 से अधिक गोलियां इसकी स्टॉक में नहीं रख सकता प्रत्येक बेची जाने वाली गोली या कैप्सूल का उसे विवरण रखना होता है। इसकी तस्करी पर यु तो 10 से 20 साल की सजा निर्धारित है ।नियमानुसार बगैर सर्टिफाइड फिजिशियन की सलाह के आप इसे नहीं ले सकते लेकिन यह ड्रग्स आज पड़े पैमाने पर हरियाणा दिल्ली एनसीआर पश्चिम उत्तर प्रदेश के गांवों में सस्ते नशे के रूप में प्रयोग की जा रही है जो महंगे नशे जितनी ही विनाशक है कितने ही नौजवानों का जीवन ट्रामाडोल की लत ने लील लिया है।
हालांकि मार्च 2023 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने संसद में दिए जवाब में ट्रामाडोल ड्रग्स की तस्करी इसके सेवन व मौतों का कोई स्पष्ट आंकड़ा नहीं दिया है सरकार के पास कोई आंकड़ा नहीं है,पूछे गए अतारकित प्रश्न संख्या 4503 के जवाब में। इस संबंध में प्रश्न केरल से सांसद डाक्टर शशि थरूर ने पूछा था ।
पिछले 1 दशक में दिल्ली एनसीआर के गांवों में ट्रामाडोल का रीक्रिएशनल नशीला प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है अन्य और भी ड्रग्स है। गौतम बुद्ध नगर के शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में हजारों युवक इसकी लत की चपेट में है नरक की यातना भोग रहे हैं।
पीड़ित परिवार जनों को जब पता चलता है तो कोई उपाय नहीं सुझ पाता दरअसल हमारे देश में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट साइकैटरिस्ट व ड्रग डी एडिक्शन रिहैबिलिटेशन सैंटरो की कमी है।
पिछले दिनों मेरे संज्ञान में गौतम बुद्ध नगर के दादरी ब्लॉक के एक गांव का मामला एक मामला आया जहां एक पिता ने मार्च 2023 में अपनी बेटी की शादी धूमधाम से दादरी के ही एक गांव में की थी विवाह के 10 दिन बाद जब विवाहित लड़की को पता चला उसका जीवनसाथी वर्ष 2019 से ही ट्रामाडोल का सेवन कर रहा है और अब उसकी स्थिति प्रतिदिन खराब हो रही है उसकी मानसिक तौर पर सेरोटोनिक डिसऑर्डर पैदा हो गया है जिसमें दौरे पड़ना, मति भ्रम, ऐठन हो जाना हिंसक व्यवहार हो जाना बेचैनी आदि लक्षण दिखाई पड़ते हैं । अपने जीवनसाथी की यह हालत देखकर उस बेटी के पैरों तले जमीन निकल गई । विचारें कौन है इस सबके लिए जिम्मेदार शिक्षा व्यवस्था, समाज, सरकार , मां बाप या हम सभी।
ड्रग्स आदि नशे के लिए पहले शहर बदनाम थे आज भी बड़े शहरों में यह सब खुलेआम चलता है लेकिन यह व्यापक रूप से घातक विनाशक तब हो जाता है जब यह नशा गांवों में आ जाता है । अन्नदाता किसान की संताने नस्ल इसकी चपेट में आती है।
केरल, पंजाब, महाराष्ट्र, हरियाणा ,उत्तर प्रदेश, दिल्ली ड्रग्स के सेवन तस्करी के मामले में शीर्ष राज्य बने हुए हैं जो हालात आज पंजाब के हैं वह हालत यदि दिल्ली एनसीआर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सजकता जागरूकता नशे के विरुद्ध नहीं बरती गई तो नया पंजाब इस पर क्षेत्र में तैयार हो रहा है।
आर्य समाज अपनी स्थापना काल से ही नशा मुक्ति के विरुद्ध अघोषित आंदोलन चलाए हुए आर्य समाज के विद्वान संन्यासियों उपदेशको को सुने सीधे या यूट्यूब आदि पर जीवन में अच्छे संकल्पो को धारण करें। आर्य समाज द्वारा आयोजित आवासीय आर्य वीर दल के चरित्र निर्माण शिविरों में अपने परिवार के बालक किशोर युवकों को भेजें जो प्रत्येक साल नियमित तौर पर ग्रीष्मकालीन अवकाशों में आयोजित हैं।
लेखक:- आर्य सागर खारी आरटीआई कार्यकर्ता और सामाजिक व चिंतक तथा स्वतंत्र विचारक हैं।