झल्लाते हुए फाईल एक ओर पटक डाली और फिर थमा दी एक लंबी तारीख
एक बानकी तो खुद उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर में ही देखने को मिल गई
मौहम्मद इल्यास-’’दनकौरी’’/गौतमबुद्धनगर
आ- जा- ले-जा- तारीख। अक्सर आम लोगों को कहते हुए सुना होगा कि अदालत का असली मतलब क्या है? यह कोई जुमला या मुहावरा है या फिर तनिक भी सच्चाई है। न्याय व्यवस्था चाहे जो हो इंसाफ मिलता ही जब है, तब दर्द झेल चुका व्यक्ति उम्मीद छोड चुका होता है। बात करते हैंं यहां भारत की न्याय व्यवस्था की। सस्ता सुलभ और त्वरित न्याय मिलना कागजी हो चला है। वैसे न्याय के लिए सरकार और खुद न्याय पालिका के द्वारा भी तर्क दिए जाते रहते हैं कि पैंडेसी यानी फाईलों का बोझ ज्यादा है, इसलिए न्याय में देरी है। किंतु यह सब दलीले हर ओर फिट बैठती है, बिल्कुल नही। न्याय व्यवस्था में झोल तो है ही। इसकी एक बानकी तो खुद उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर में ही देखने को मिल गई। विकलांग व्यक्ति के मामले की में पैरवी में लगी महिला वकील चिल्लाती रही कि जज साहब मुलजिम को तलब करा लीजिए बहुत लंबा समय हो गया है। इतना था कि झल्लाते हुए फाईल एक ओर पटक डाली और फिर थमा दी एक लंबी तारीख।
हुआ यूं कि दिनांक 10 अक्टूबर-2016 को सूरजपुर में एक मीडिया कंपनी में काम करने वक्त राजेंद्र राम नाम के व्यक्ति की टांग क्षतिग्रस्त हो गई। आखिर हॉस्पिटल मेंं भर्ती करने के बाद राजेंद्र राम की टांग को काटना देना पडा। इस व्यक्ति की कंपनी ने कोई मद्द नहीं की और न ही इलाज करवाया। राजेंद्र राम ने खुद अपने पैसे से और कर्जा लेकर इलाज कराया। चूंकि मामला मीडिया कंपनी का था पुलिस के पास इंसाफ की गुहार लगाई तो वहां से भी धक्के ही मिले। गरीब का सहारा अदालत होती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए गरीब और विकलांग हो चुके राजेंद्र राम ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। राजेंद्र राम की पैरवी कर रही चौधरी प्रियंका अत्री एडवोकेट ने ’’विजन लाइव’’ को बताया कि 156 (3) के तहत मामले में वाद दायर कराने के लिए अदालत से गुहार लगाई। अदालत ने परिवाद तो दर्ज कर लिया मगर मुलजिम को तलब अभी तक नही किया गया है। गरीब और एक टांग से किसी तरह राजेंद्र राम अदालत तक पहुंचता है और हर बार लंबी लंबी तारीख थमा दी जाती है। उन्होंने बताया कि आज फिर सुनवाई की तारीख थी और उम्मीद थी कि इस बार तो जरूर अदालत मुलजिम को तलब करा लेगी ही मगर ऐसा बिल्कुल नही हुआ।
वे अदालत के सामने मुलजिम को तलब किए जाने की गुजारिश करती रही मगर जज साहब बिल्कुल नही पसीजे। आखिर फाईल पटक दी गई और फिर दे दी गई एक और लंबी तारीख 06-09-2024। उन्होंने बताया कि पूरे 8 साल हो गए हैं। 156 (3)डाली थी उसमें भी तलब नहीं किया। गरीब आदमी को किस तरीके से सताया जा रहा है इसको देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है आने.जाने में भी राजेंद्र राम को बहुत तकलीफ होती है टांग की वजह से और कोर्ट में पैरवी के लिए भी पैसे नहीं है। इसलिए मैं इसका कैस फ्री में ही लड़ रही हूं, पिछले 8 साल से। न ही कंपनी ने मदद की और न ही पुलिस ने मद्द की। अब कोर्ट में सफर कर रहा है, पिछले 8 साल से। इसकी सुनवाई इस वजह से नहीं हुई क्या इसके पास पैसे नहीं है? इसकी इतनी गलती है कि यह गरीब है बस?
बिल्कुल अदालतें भी अब तहसील, ब्लॉक दफ्तरों जैसा व्यवहार कर रही हैं । सुधार की कोई उम्मीद नजर नहीं आती ।