सूचना का अधिकार और शहीद राजा विजय सिंह गुर्जर

आर्य सागर खारी

सूचना का अधिकार और शहीद राजा विजय सिंह गुर्जर। कुछ लोगों को हैरत होगी यहां सूचना का अधिकार कानून का एक शहीद राजा से क्या संबंध हो सकता है? सूचना के अधिकार कानून से तो सभी परिचित है यह भारत की संसद द्वारा 2005 में बनाया गया सर्वाधिक लोक हितकारी कानून है… भले ही अब लोक प्राधिकरणों में इसकी अवज्ञा की व्यापक मनोवृति पैदा हो रही हो। राजा विजय सिंह गुर्जर कौन है ? इस बलिदानी राजा से आज भी अधिकांश लोग अपरिचित होंगे। राजा विजय सिंह गुर्जर देहरादून- सहारनपुर मार्ग पर स्थित कुंजा बहादुरपुर तालुक्का के राजा थे जो झबरैडा रियासत के अधीन था इस तालुके में 50 से अधिक गांव थे।

1803 में जब आज के गौतम बुद्ध नगर के नोएडा में छलेरा गांव में जब मराठा अंग्रेजों के बीच हुये युद्ध में मैराठो की हार हुई तो अंग्रेजों की गिद्ध दृष्टि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की संपन्न रियासतों पर पड़ गई। अंग्रेजों ने झबरैडा रियासत को 1813 में अनेक टुकड़ों में विभाजित कर दिया ।अंग्रेजों की यही रियासतों को हड़पने की नीति देशभक्त विजय सिंह गुर्जर को रास नहीं आई उन्होंने 1824 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अंग्रेजों से असंतुष्ट सभी जागीरदारों जमीदारों ताल्लुकेदारो का नेतृत्व करते हुए सशक्त क्रांति का सूत्रपात अपनी रियासत व अपने महल से कर दिया। इस क्रांति का प्रभाव समूचे उत्तराखंड पश्चिमी उत्तर प्रदेश यमुना पार हरियाणा में आग की तरह फैल ।राजा विजय सिंह गुर्जर की सेना में अधिकांस देशभक्त किसान थे जो आधुनिक अस्त्र-शस्त्र के चलने में पारंगत नहीं थे अंग्रेजों की प्रशिक्षित राइफल तोपों से लैस पलटन थी।अंग्रेजों ने अफवाह फैला दी की राजा विजय सिंह गुर्जर बंदूक की गोली से मारा गया किले के दरवाजे को तोड़कर हारी हुई बाजी अंग्रेजों ने जीत ली। राजा के वीर सिपाही सलाहकार सभी युद्ध में मारे गए। हजारों लोगों को अंग्रेजों ने मारा 150 अधिक लोगों को कुंजा बहादुरपुर के पास स्थित विशाल पीपल के पेड़ पर फांसी पर लटका दिया। अंग्रेज राजा विजय सिंह गुर्जर के सहयोगी कल्याण गुर्जर के सिर व राजा विजय सिंह गुर्जर के धड़ को लेकर देहरादून ले गए जहां सार्वजनिक चौक पर उसका प्रदर्शन किया।

स्वाधीनता की भारी कीमत हमारे पूर्वजों में चुकाई थी। अब तो हम 15 अगस्त के दिन भी उन्हें याद नहीं करते। राजा विजय सिंह गुर्जर ने 1857 से भी 33 साल पहले अंग्रेजों के विरुद्ध स्वाधीनता संग्राम का सूत्रपात कर दिया थाआज एक स्वर में सभी इतिहासकार कहते हैं की कुंजा बहादुरपुर की क्रांति 1857 के स्वाधीनता संग्राम का पूर्वअभ्यास थी। यदि यह क्रांति ना होती तो भारत में 1857 की क्रांति भी न होती और 1857 की क्रांति ना होती तो स्वतंत्रता सेनानियों की नई पीढ़ी भी आजादी के स्वाधीनता संग्राम में नहीं कुदती।

यह तो रही इतिहास की बात। 1989 में कुंजा बहादुरपुर वासियों ने अपने बलिदानी राजा बलिदान में मारे गए स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की स्मृति में शहीद स्मारक समिति का गठन किया। गांव में शहीद स्मारक स्थल का निर्माण व एक इंटर कॉलेज की स्थापना का लक्ष्य रखा गया ।गांव के कर्मठ बुजुर्गों के प्रयास से गांव में स्मारक स्थल की स्थापना हुई व एक इंटर कॉलेज की भी स्थापना हो गई। लेकिन वर्ष 2014 में राजा विजय सिंह बहादुर राजकीय इंटर कॉलेज के अपग्रेडेशन के दौरान उत्तराखंड शासन के माध्यमिक शिक्षा विभाग ने स्कूल का नाम परिवर्तित कर दिया।

कॉलेज की प्रबंधन समिति ने उत्तराखंड सरकार से मांग की की राजकीय इंटर कॉलेज का नामकरण शहीद राजा विजय सिंह गुर्जर के नाम पर पुनः किया जाना चाहिए उत्तराखंड सरकार के शिक्षा विभाग के नौकरशाह ग्रामीणों से निरंतर यह कहते रहे कि आप शहीद राजा विजय सिंह गुर्जर के शहीद होने का प्रमाण पत्र प्रस्तुत करें। नियम अनुसार शासन तुम्हारी मांग को तब ही पूर्ण कर सकता है। यहां यह उल्लेखनीय होगा कुछ वर्ष पूर्व भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू जी भी कुंजा बहादुरपुर स्थित शहीद स्मारक स्थल पर आए थे राजा विजय सिंह गुर्जर की प्रतिमा को माल्यार्पण किया था अपना व्याख्यान भी दिया था भारत की स्वाधीनता में उनके प्राथमिक योगदान को लेकर। अधिकारियों की लाख आनाकानी के पश्चात शहीद स्मारक समिति के पदाधिकारी कहां हार मानने वाले थे। जिस गांव की मिट्टी ने विजय सिंह गुर्जर जैसे बलिदानी दिए हो उस गांव के ग्रामीण कहां चुप बैठने वाले थे।शहीद स्मारक समिति व ग्रामीणों के पास राजा विजय सिंह गुर्जर की शहादत को लेकर कोई प्रमाण पत्र नहीं था ।यह अपने आप में आपत्तिजनक है आज भी शहीदों की शहादत का प्रमाण पत्र मांगा जाता है जबकि वह वृक्ष आज भी है जहां पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अंग्रेजों ने कितने ही क्रांतिकारीकारीयो को फांसी पर लटकाया था ।खुद अंग्रेज फौजी अफसर ने अपनी डायरी में गजट आदि में अपनी क्रूरता का बखान किया है ।

खैर नौकरशाही तो नौकरशाही ठहरी वह तो कागजों में उलझाना ही जानती है। यहां से इस प्रसंग में सूचना के अधिकार कानून की एंट्री होती है। वर्ष 2019 में मैंने रक्षा व गृह मंत्रालय से सूचना के अधिकार के तहत शहीद शब्द के प्रयोग व शहीद के प्रमाण पत्र के संबंध में जानकारी मांगी थी ।गृह मंत्रालय व रक्षा मंत्रालय के हवाले से जो मुझे जानकारी मिली तो यह तथ्य निकल कर आया कि भारत सरकार अपने किसी भी दस्तावेज पत्र व्यवहार में शहीद शब्द का प्रयोग नहीं करती ना हीं शहादत का कोई सर्टिफिकेट देती है ।सेना या अर्द्ध सैनिक बल के जवान के बलिदान होने पर केवल ‘ऑपरेशनल कैजुअल्टी सर्टिफिकेट’ प्रदान किया जाता है।

पिछले वर्ष 2023 में एक व्हाट्सएप ग्रुप पर शहीद स्मारक समिति से जुड़े हुए कुंजा बहादुरपुर के निवासी शिवकुमार हामडा जी ने यह आग्रह प्रकट किया कि क्या कोई व्यक्ति शहीद प्रमाण पत्र के नियमों के के संबंध में जानकारी दे सकता है सौभाग्य से मैं भी उसे ग्रुप में जुड़ा हुआ था वहां मैंने उनसे कहा कि शहीद जैसा शब्द सरकार की डिक्शनरी में ही नहीं है ना ही कोई दस्तावेज इस शब्द के साथ जारी होता है ।मैंने सूचना के अधिकार के तहत जो जानकारी मुझे इस संबंध में गृह मंत्रालय से मिली थी वह दस्तावेज उनको प्रेषित कर दिया उन्होंने उस सूचना के अधिकार की जानकारी को अपनी 10 साल पुरानी मांग से जुड़ी पत्रावली के साथ लगाते हुए उत्तराखंड शासन के समक्ष यह परिवाद प्रस्तुत किया की सरकार जब शहीद शब्द का प्रयोग नहीं करती न ही प्रमाण पत्र देती हैं तो हम कहां से प्रमाण पत्र लाकर दें हां लेकिन आम नागरिक शहीद शब्द का प्रयोग कर सकता है यह उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।

आप सभी को जानकर अपार प्रसन्नता होगी जुलाई 2024 माह में ही उत्तराखंड के राज्यपाल के अनुमोदन से कुंजा बहादुरपुर के राजकीय इंटर कॉलेज का नामकरण’ शहीद राजा विजय सिंह राजकीय इंटर कॉलेज’ हो गया है। राजा विजय सिंह के साथ शहीद शब्द जुड़ गया है। सूचना का अधिकार कानून अपना काम कर गया। शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारी इस बात पर सहमत हो गए कि जब सरकार ही शहीद शब्द का प्रयोग नहीं करती तो हम कैसे शहीद स्मारक समिति के पदाधिकारी से शहीद होने का प्रमाण पत्र मांग सकते हैं । इस आधार पर उत्तराखंड शासन के माध्यमिक शिक्षा विभाग ने अपनी स्वीकृति दे दी हैं।अब मोटे-मोटे अक्षरों में राजकीय के इंटर कॉलेज के प्रवेश भवन पर शहीद राजा विजय सिंह गुर्जर राजकीय इंटर कॉलेज का नाम लिख जाना संभव हो सका जिसमें 10 वर्ष लग गए।

कल शिवकुमार हामडा जी का मेरे पास फोन आया उन्होंने मेरा व्यक्तिगत धन्यवाद करते हुए एक धन्यवाद ज्ञापन मुझे भेजा । राज्यपाल की स्वीकृति का परिपत्र भी मेरे पास भेजा। इस प्रेरणादायक संघर्ष के लिए के लिए शहीद स्मारक समिति से जुड़े हुए सभी गणमान्य व्यक्तियों का मैं धन्यवाद प्रकट करता हूं । उन्होंने अपनी मांग के लिए इतना लंबा संघर्ष किया धैर्य के साथ।

लेखक :- आर्य सागर खारी  आरटीआई कार्यकर्ता ,विचारक और सामाजिक चिंतक, तिलपता ग्रेटर नोएडा से हैं।

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