
मौहम्मद इल्यास- “दनकौरी”/गौतमबुद्धनगर
ग्रेटर नोएडा के दनकौर क्षेत्र स्थित ग्राम दलेलगढ़ की पशुचर भूमि पर अवैध कब्जे की कोशिशों के खिलाफ ग्राम विकास समिति ने कड़ा रुख अपनाया है। समिति ने उपजिलाधिकारी सदर को एक प्रार्थना पत्र सौंपते हुए खाता संख्या 408, 409, 410, 411, 412 से संबंधित भूमि का पुनः सीमांकन, तारबंदी एवं अवैध कब्जे से मुक्ति की मांग की है।
ग्रामीणों का आरोप है कि यह भूमि, जो पशुचारण के लिए आरक्षित है, उस पर स्थानीय भू-माफियाओं ने कब्जा कर रखा है। इसको लेकर 30 दिसंबर 2024 और 19 अप्रैल 2025 (IGRS No. 40014/25013136) को भी संबंधित अधिकारियों को शिकायत दी जा चुकी है। ग्रामीणों का यह भी कहना है कि लेखपाल द्वारा पूर्व में दी गई रिपोर्ट तथ्यों से परे और पक्षपातपूर्ण है, जिससे भ्रष्टाचार की आशंका प्रबल होती है।

तहसील दिवस में रखी गई मांग, प्रशासन ने दिया कार्रवाई का आश्वासन
शनिवार को आयोजित तहसील दिवस में ग्राम दलेलगढ़ के ग्रामीणों का एक प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रीय लोकदल के नेता अजीत सिंह दौला के नेतृत्व में तहसील सदर मुख्यालय, ग्राम डाढा पहुँचा। ग्रामीणों ने एडीएम (ई) को ज्ञापन सौंपकर मांग की कि उक्त पशुचर भूमि को तत्काल भूमाफियाओं से मुक्त कराते हुए वहां गौशाला का निर्माण कराया जाए। एडीएम (ई) ने ग्रामीणों की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए एसडीएम सदर को शीघ्र कार्यवाही के निर्देश दिए हैं।

समिति के प्रयासों को मिल रहा है सामाजिक समर्थन
ग्राम विकास समिति के अध्यक्ष कृष्णकांत और सचिव अमित भाटी के नेतृत्व में किए जा रहे प्रयासों को गांव के सैकड़ों लोगों का समर्थन मिल रहा है। समिति का कहना है कि “पशुचर भूमि गांव की संपत्ति है और इसका संरक्षण करना प्रशासन और समाज दोनों की जिम्मेदारी है।”
समिति की ओर से दी गई शिकायत में विशेष रूप से यह भी उल्लेख किया गया कि भविष्य में इस भूमि पर तारबंदी कर स्थायी संरक्षण सुनिश्चित किया जाए, जिससे दोबारा कोई अवैध अतिक्रमण संभव न हो।

क्या है ग्रामीणों की मांग
- खसरा संख्या 408–412 तक की भूमि का पुनः सीमांकन कराया जाए
- भूमाफियाओं से कब्जा हटाकर कानूनी कार्रवाई की जाए
- पशुचर भूमि पर स्थायी गौशाला का निर्माण किया जाए
- दोषपूर्ण रिपोर्ट देने वाले संबंधित कर्मियों की जांच की जाए

सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना की रक्षा का भी प्रतीक
ग्राम दलेलगढ़ की पशुचर भूमि को लेकर उठी यह आवाज न केवल भूमि संरक्षण की मांग है, बल्कि यह ग्रामीण समाज की सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना की रक्षा का भी प्रतीक है। अब देखने वाली बात होगी कि प्रशासन किस गति से कार्यवाही करता है और क्या यह भूमि गौशाला के रूप में अपने वास्तविक उद्देश्य को प्राप्त कर सकेगी।