देश की गरिमा बनाम भड़काऊ बयानबाज़ी


मौहम्मद इल्यास “दनकौरी”

पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने जिस ठोस और निर्णायक रूप में पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिया है, वह हमारी सैन्य और रणनीतिक शक्ति का परिचायक है। एक ओर देश के वीर जवान सरहद पर सीना तान कर खड़े हैं, तो दूसरी ओर कुछ स्वार्थी राजनीतिक तत्व और उनके अनुयायी अपनी ओछी बयानबाज़ियों से देश की गरिमा को बट्टा लगा रहे हैं।

भारतीय सेना की जांबाज़ अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह जैसी वीरांगनाओं पर की जा रही अभद्र टिप्पणियाँ न केवल शर्मनाक हैं, बल्कि यह राष्ट्र की अस्मिता और सैनिक परंपरा पर हमला है। अफसोस की बात यह है कि इस गंदी राजनीति में कुछ तथाकथित बड़े नाम भी शामिल हैं। विदेश मंत्री जैसे गरिमामय पद पर बैठे विक्रम मिसरी तक को इन चिरकुटी टिप्पणियों से नहीं बख्शा गया।

मध्य प्रदेश न्यायपालिका द्वारा कर्नल सोफिया कुरैशी के मामले में स्वत: संज्ञान लिया जाना न्याय की संवेदनशीलता को दर्शाता है। यह एक मिसाल है, जिसे अन्य राज्यों की न्याय व्यवस्था को भी अपनाना चाहिए। देश में न्यायपालिका को ऐसे मामलों में तेजी और गंभीरता दिखानी होगी, ताकि देशद्रोही सोच और सामाजिक विघटन फैलाने वाले तत्वों को सख्त संदेश मिले।

यह अत्यंत दुखद है कि जब देश एकजुट होकर संकट का सामना कर रहा है, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ऐसी बयानबाज़ियों पर मौन धारण किए हुए हैं। क्या यह अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए कि लोकतंत्र में जवाबदेही सर्वोपरि हो? जब आम नागरिक जरा-सी चूक पर जेल भेजा जा सकता है, तो सार्वजनिक मंच से जहर उगलने वालों को क्यों खुली छूट दी जाती है?

अब जब कर्नल सोफिया कुरैशी के बाद विंग कमांडर व्योमिका सिंह को भी निशाना बनाया जा रहा है और समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ सांसद रामगोपाल यादव का नाम इसमें उभर कर सामने आ रहा है, तब यह स्पष्ट हो गया है कि यह केवल राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं, बल्कि देश की एकता को छिन्न-भिन्न करने की साजिश है।

यह सिलसिला कब तक चलेगा? क्या समाज, मीडिया और लोकतंत्र के अन्य स्तंभ इस गिरते स्तर को रोकने के लिए आगे आएंगे? भारत केवल भाषणों से नहीं, सद्भाव, शौर्य और संवैधानिक मूल्यों से चलता है। ऐसे में जो भी इन मूल्यों पर हमला करे, वह देश का दुश्मन है – चाहे वह किसी भी दल, धर्म या पद से जुड़ा क्यों न हो।

आज समय की मांग है कि हम सब इस गंदगी के विरुद्ध एकजुट हों, सैनिकों के सम्मान में खड़े हों और संविधान के आदर्शों की रक्षा करें।

लेखक:-सामाजिक चिंतक, विचारक एवं “विजन लाइव” के प्रधान संपादक हैं


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