दीपावली पर बिसरख धाम में गुरु–शिष्य परंपरा का दिव्य संगम


🌼 रजत सिंहासन अर्पण कर शिष्य ने गुरु भक्ति की अनुपम मिसाल पेश की

          मौहम्मद इल्यास –”दनकौरी ” /  (बिसरखधाम) गौतमबुद्धनगर


दीपों के पावन पर्व दीपावली पर जब संपूर्ण सृष्टि में प्रकाश की ज्योति जल रही थी,
उसी शुभ क्षण में बिसरख धाम में गुरु–शिष्य परंपरा की एक अनुपम झलक देखने को मिली।
आध्यात्मिक ऊर्जा से आलोकित इस दिव्य अवसर पर
महामंडलेश्वर स्वामी राजेशानंद योगेश्वर गिरि महाराज ने अपने पूज्य गुरुदेव
अनन्तश्रीविभूषित श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर आचार्य अशोकानंद जी महाराज,
पीठाधीश्वर – बिसरख धाम के चरणों में रजत (चाँदी) का सिंहासन समर्पित किया।

यह केवल एक भेंट नहीं थी — यह श्रद्धा, समर्पण और सनातन गुरु भक्ति का प्रतीक बन गया।


🌺 गुरु भक्ति और दीपोत्सव का दिव्य संगम

दीपावली जैसे प्रकाश पर्व पर गुरु चरणों में रजत सिंहासन अर्पित कर
स्वामी राजेशानंद योगेश्वर गिरि महाराज ने विधि-विधानपूर्वक गुरु पूजन, संकल्प एवं अर्चना सम्पन्न की।
इस क्षण ने उस सनातन सूत्र को फिर से प्रकट किया जिसमें कहा गया है —

“गुरु ही वह दीप हैं, जिनसे शिष्य के अंतःकरण में ज्ञान का प्रकाश प्रज्वलित होता है।”

इस अवसर पर उपस्थित भक्तों के नेत्रों में श्रद्धा और भाव के दीप प्रज्वलित थे।
बिसरख धाम का प्रत्येक कोना भक्ति, अनुशासन और अध्यात्म की गूंज से भर उठा।


🕉️ आचार्य अशोकानंद जी महाराज के आशीर्वचन

आचार्य अशोकानंद जी महाराज ने अपने करुणामय आशीर्वचन में कहा—

“गुरु और शिष्य का संबंध केवल शरीर या शब्दों का नहीं होता,
यह आत्मा और विश्वास का शाश्वत बंधन है।
जब शिष्य अपने हृदय में समर्पण, सेवा और श्रद्धा की ज्योति प्रज्वलित करता है,
तब वही दीप सृष्टि में प्रकाश फैलाता है।”

उन्होंने आगे कहा—

“दीपावली का अर्थ केवल घरों में दीप जलाना नहीं,
बल्कि अपने भीतर बसे अज्ञान, अहंकार और असत्य के अंधकार को मिटाना है।
सच्चा दीप वह है जो स्वयं जलकर दूसरों के जीवन को आलोकित करे।
गुरु वह सूर्य हैं जिनसे शिष्य चंद्रमा की भाँति प्रकाश पाता है।”

महाराज जी ने गुरु–शिष्य परंपरा को सनातन धर्म की आत्मा बताते हुए कहा—

“गुरु–शिष्य परंपरा ही वह दिव्य धारा है जो युगों से संस्कृति, सदाचार और धर्म को सींचती आई है।
जब तक यह परंपरा जीवित है, तब तक समाज में शांति, करुणा और सत्य का प्रकाश बना रहेगा।”


🌿 शिष्य परंपरा के अनुसार उद्बोधन

✨ स्वामी राजेशानंद योगेश्वर गिरि महाराज

“गुरुदेव के चरणों में जो रजत सिंहासन अर्पित किया गया है,
वह केवल एक धातु नहीं — यह हमारी आत्मा का समर्पण है।
गुरु के बिना जीवन दीप बिना बाती के समान है।
गुरुदेव का आशीर्वाद ही वह दिव्य शक्ति है जो हमें धर्म, सेवा और संस्कार के मार्ग पर स्थिर रखती है।
दीपावली हमें सिखाती है कि सच्चा प्रकाश गुरु की कृपा से ही मिलता है,
और वही प्रकाश समाज में प्रेम और सत्य का दीप जलाता है।”


🌸 साध्वी पूर्णिमा गिरी

“गुरु हमारे जीवन की दिशा हैं, जिनकी कृपा से हम अंधकार से ज्योति की ओर बढ़ते हैं।
जैसे चंद्रमा सूर्य से प्रकाश प्राप्त करता है, वैसे ही शिष्य गुरु से जीवन का प्रकाश ग्रहण करता है।
यह रजत सिंहासन उस भक्ति का प्रतीक है जो हृदय से उपजती है —
और वही भक्ति जीवन को अर्थपूर्ण बनाती है।
हम सब शिष्य संकल्प लेते हैं कि गुरु उपदेशों के आलोक में
अपने कर्मों से समाज में शांति, सौहार्द और सदाचार का संदेश फैलाएँगे।”


🌸 भक्तों की भक्ति और आस्था का संगम

इस पावन अवसर पर बिसरख धाम का वातावरण दिव्य ज्योति से आलोकित था।
हर दिशा में “जय गुरुदेव” और “हर हर महादेव” के जयघोष गूंज रहे थे।
दीप प्रज्वलित कर भक्तों ने गुरु चरणों में नमन किया और
सभी ने अपने जीवन में गुरु कृपा की अखंड ज्योति जलाने का संकल्प लिया।

मुख्य रूप से उपस्थित श्रद्धालु:
रामवीर शर्मा, नरेश भाटी, अनिरुद्ध गांगुली, राकेश शर्मा, संदीप शर्मा, गोपाल शर्मा, देवेंद्र नागर (दुजाना),
पं. सुशील पांडे, पं. श्रीकृष्ण भारद्वाज, दीपांशु शर्मा, श्रीमती सुधा गांगुली, श्रीमती सुनीता नागर, डी. आर्य (एडवोकेट) आदि श्रद्धालु एवं साधक उपस्थित रहे।


🌼 समापन और मंगल संदेश

समारोह के समापन पर गुरुदेव आचार्य अशोकानंद जी महाराज ने सभी उपस्थित भक्तों को आशीर्वाद देते हुए कहा—

“गुरु कृपा ही सच्चा प्रकाश है, जो जीवन के हर अंधकार को मिटा देता है।
जब मन में भक्ति हो, कर्म में सेवा हो और वचन में सत्य हो,
तभी जीवन दीपावली के दीप की तरह प्रकाशमान होता है।”

बिसरख धाम परिवार की ओर से सभी भक्तों, श्रद्धालुओं और देशवासियों को
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित की गईं।


🕉️🙏 “गुरु कृपा ही वह दीप है जो आत्मा को ब्रह्म से जोड़ देती है।” 🙏🕉️


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