“अद्भुत अरण्य अमेजन”

 

आर्य सागर खारी

55 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला अमेजन का वर्षावन दुनिया का सबसे बड़ा वर्षावन है ।जो दक्षिण अमरीका महाद्वीप की 40% भूमि में फैला हुआ है। यह इतना विशाल है ब्रिटेन जैसे 17 देश इसमें समा जाएंगे। इस महावन में 40000 प्रजातियों के 4 अरब के लगभग वृक्ष पाए जाते हैं। जिनके विषय में कहा जाता है पृथ्वी की 20% ऑक्सीजन यही पेड़ बनाते हैं, पृथ्वी का फेफड़ा भी इस वर्षावन को कहा जाता है।

430 प्रकार के स्तनधारी जीव जंतु, 1300 से अधिक पक्षियों की प्रजातियां, 3000 प्रकार की मछली, 25 लाख कीटों की प्रजातियां इसमें पाई जाती है। वैदिक दर्शन की कसौटी पर कसे जिसकी प्रमाणों से पुष्ट मान्यता हैं कि जीव विभिन्न शरीरों को पाप पुण्य की अपेक्षा से प्राप्त करता है तो इसमें कोई संदेह नहीं होगा हम कभी ना कभी किसी जीव जंतु पक्षी कीट के रूप में इस विशाल वर्षा वन के निवासी रहे होंगे ।

आध्यात्मिक दृष्टि से इस वर्षावन को देखे तो यह कर्म फल दर्शन की विचित्र प्रयोगशाला है,जो इतनी संवेदनशील है इकोलॉजिस्ट बताते हैं यदि इसमें एक तितली तली भी पंखों को फड़फड़ाए तो उसके पंख फड़फड़ाने मात्र से ही वर्षा हो जाती है। नील नदी के बाद दुनिया की सबसे बड़ी नदी अमेज़न जो 6840 किलोमीटर लंबी है इसके बीचों-बीच से बहती है। बात मनुष्यों की करें तो 200 से अधिक वनवासी जनजाती इसमें निवासरत है जिनकी संख्या 10 लाख के आसपास बताई जाती है, इनमें से 5 लाख से अधिक वनवासी मनुष्यों ने बाहरी दुनिया से कभी संपर्क नहीं किया है संपर्क तो दूर उन्होंने बाहरी दुनिया के किसी मनुष्य को आज तक नहीं देखा है।

यह पूरा वर्षावन चित्र विचित्र जंतुओं से भरा पड़ा है। इस वर्षावन को आज भी पूरी तरह समझा पढ़ा नहीं गया है। हर दिन इसमें पादप व् जंतु की किसी न किसी नई प्रजाति को खोजा जाता है। जीव विज्ञानों के लिए यह अक्षय पात्र बना हुआ है।

यह पृथ्वी एक इकाई तंत्र है आध्यात्मिक व भौतिक पर्यावरण के स्तर पर।

हजारों वर्ष पहले आचार्य भूमि भारत के ऐसे ही किसी अरण्य में केनोपनिषदकार ऋषि ने‌ एक महान संदेश दिया था।

भूतेषू भूतेषू विचित्य धीरा: प्रेत्यास्माल्लोकादमृता भवन्ति

भावार्थ —“चित्र विचित्र भांति भांति के जड़ चेतन पदार्थों, जीव जंतुओं प्राणियों को भली प्रकार देखकर जानकर ज्ञानी धीर पुरुष मरकर इस लोक में अमृत हो जाते हैं अर्थात आवागमन के चक्र से छूट जाते हैं”।

योग दर्शन भाष्यकार महर्षि व्यास ने इसी चिंतन को योग की पारिभाषिक शब्दावली में आत्मभाव भावना‘ कहा है जिसमें एक योगसाधक यह प्रश्न उठाता है मैं पिछले जन्म में कौन था? किस शरीर में था आगे में किस शरीर योनि में जाऊंगा अब मेरी क्या स्थिति है आदि आदि। यह भावना जीव को मुक्ति तक ले जाती है।

लीलाधर की अद्भुत लीला है अमेजॉन वर्षावन यदि आधुनिक मानव की विनाशलीला से बच गया तो।

लेखक:- आर्य सागर खारी एक आरटीआई कार्यकर्ता,चिंतक और स्वतंत्र विचारक है।

 

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