ग्रेटर नोएडा के किसानों का लीज बैक मामला: —-एसआईटी जांच रिपोर्ट लीक होने का सच
_-राजेश बैरागी-_
किसी मामले को अंजाम तक न पहुंचने देने के क्या क्या उपाय हो सकते हैं? मामले से संबंधित जांच रिपोर्ट को लीक कर देना भी एक सशक्त उपाय है। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण क्षेत्र के सैकड़ों किसानों की अधिग्रहित आबादी भूमि के डेढ़ दशक पुराने लीज बैक प्रकरणों को अंजाम तक पहुंचने से पहले एक बार फिर खटाई में डाल दिया गया है।
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण क्षेत्र के लगभग डेढ़ हजार किसानों की अधिग्रहित आबादी भूमि को वापस लीज बैक के जरिए देने की अंतहीन प्रक्रिया को फिर घोटालेबाज अधिकारियों और किसान नेता रूपी दलालों की नजर लग गई है। एक बार पहले की जांच खारिज होने के बाद फिर से खुली सुनवाई के बाद तैयार की गई जांच रिपोर्ट लीक कर दी गई। कई सप्ताह से जन चर्चा थी कि जांच रिपोर्ट में मनमाफिक ब्यौरा दर्ज करने के लिए बड़े पैमाने पर लेन-देन चल रहा है। लेन-देन में बंटवारे को लेकर कुछ अधिकारियों के बीच मनमुटाव हुआ तो एक अधिकारी को किनारे भी कर दिया गया। यह जांच रिपोर्ट एस आई टी अध्यक्ष यीडा के सीईओ डॉ अरुणवीर सिंह के माध्यम से शासन को भेजी जानी थी। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालक अधिकारी रवि कुमार एनजी और एसीईओ द्वारा जल्द से जल्द रिपोर्ट तैयार कर किसानों की वर्षों पुरानी इस समस्या को हल करने का प्रयास किया जा रहा था। निचले अधिकारी अवैध कमाई के इस अवसर को लंबे समय तक बरकरार रखना चाहते थे। और कोई उपाय न देख चुपके से रिपोर्ट लीक करा दी गई। अब फिर रिपोर्ट बनेगी। फिर अवैध कमाई के अवसर पैदा होंगे। हालांकि इस रिपोर्ट में गोपनीयता जैसा क्या है जिसे छिपाया जा रहा था और जो लीक हो गया है? किसानों को उनकी अधिग्रहित वास्तविक आबादी की भूमि वापस की जानी है। वास्तविक स्थिति जानने के लिए बाकायदा सेटेलाइट इमेज का साक्ष्य भी लिया गया था। रिपोर्ट लीक होने का मतलब क्या अधिकारियों द्वारा फिर से रिपोर्ट बनाने में घोटाला उजागर होने से है? यह सच है और ऐसा होते रहने तक किसानों के लीज बैक प्रकरणों का हल निकलना संभव नहीं है।
लेखकः- स्वतंत्र पत्रकार, चिंतक और विचारक हैं।