
किसानों की हालात, सरकारी नीतियाँ, संकट और सवालों का बड़ा विश्लेषण
–चौधरी शौकत अली चेची-
“जय जवान-जय किसान”—भारतीय राजनीति का ऐतिहासिक नारा—आज की परिस्थितियों में धीरे-धीरे कमजोर पड़ता दिखाई दे रहा है। किसान, जो देश का अन्नदाता है, वह लगातार प्रशासनिक अनदेखी, समय पर खाद न मिलने, महंगी बिजली, खेती की बढ़ती लागत और फसल नुकसान के बोझ से लड़ते-लड़ते थक चुका है।
साथ ही आरटीआई की कमजोर होती व्यवस्था और आवाज उठाने वालों पर कार्रवाई जैसी घटनाएँ लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल खड़े करती हैं।
डीएपी-यूरिया की भारी कमी और किसानों की पीड़ा
रबी फसल की बुवाई (अक्टूबर-नवंबर) से पहले ही उत्तर प्रदेश के कई जिलों में
डीएपी और यूरिया की गंभीर कमी देखने को मिली।
किसान घंटों लाइन में खड़े रहे—कहीं लाठीचार्ज हुआ, कहीं भगदड़ और कई जिलों में किसान घायल तक हुए।
इन जिलों में सबसे ज्यादा विवाद देखने को मिले—
लखीमपुर खीरी, महोबा, फतेहपुर, बदायूं, अमेठी, गोंडा, बहराइच आदि।
समय पर खाद न मिलने से
✔ बुवाई प्रभावित हुई
✔ उत्पादन घटा
✔ महंगी खरीद से लागत बढ़ी
✔ कालाबाजारी ने किसान को और तोड़ा
सरकारी गोदामों से खाद चोरी कर नेपाल बॉर्डर पर बेचने का आरोप भी कई जगहों पर सामने आया।
ब्लैक मार्केट रेट
यूरिया (45 किलो) – सरकारी मूल्य ₹266 → ब्लैक ₹400
डीएपी (50 किलो) – सरकारी मूल्य ₹1350 → ब्लैक ₹2000 तक
इसके साथ जिंक, सल्फेट, नैनो, सल्फर आदि प्रोडक्ट जबरन थोपे जाने की शिकायतें, जिससे लागत और बढ़ गई।
सरकार ने लगभग 160 डीलरों पर FIR दर्ज की, कुछ गिरफ्तारियाँ भी हुईं, लेकिन किसान संगठनों का कहना है कि कार्रवाई कम और प्रतीकात्मक ज्यादा रही।
बाढ़–बारिश से 70% तक फसल बर्बाद — मुआवजा नाकाफी
मुरादाबाद, बरेली, पीलीभीत, मेरठ, अलीगढ़, गाजियाबाद, आगरा, कानपुर, इटावा, फतेहपुर आदि जिलों में
लगभग 5 लाख हेक्टेयर फसल बाढ़ से नष्ट हुई।
धान, सब्जियाँ, गन्ना, और कई जगह गेहूँ की बुवाई तक प्रभावित हुई।
एसडीआरएफ ने ₹163 करोड़ जारी किए,
लेकिन किसानों के अनुसार—
भुगतान असमान था
कई जगह फर्जी लाभार्थी दिखाए गए
वास्तविक किसानों को ₹20,000–₹50,000 की जगह केवल ₹3,500 देने की बात कही गई
2023 और 2025 की कई फसल क्षति का अब तक कोई मुआवज़ा नहीं मिला
किसान नेता चेची के साथ जुड़े लगभग 25 किसानों की 250 हेक्टेयर धान फसल नष्ट हुई थी—लेकिन आज भी भुगतान लंबित है।
आधार–अंगूठा–खतौनी से खाद वितरण: किसानों के डेटा पर सवाल
सरकार ने आदेश दिया है कि—
आधार कार्ड और अंगूठा के बिना खाद नहीं मिलेगी
एक आधार कार्ड पर 3 बैग ही मिलेंगे
खतौनी लिंक करने की प्रक्रिया भी लागू की जा रही है
किसान संगठनों का आरोप है कि—
यह प्रक्रिया
✔ खाद मिलने में अनावश्यक बाधा
✔ डेटा इकट्ठा करने की नई योजना
✔ किसानों की निजता पर खतरा
✔ कालाबाजारी और बढ़ा सकती है
खाद के साथ अतिरिक्त प्रोडक्ट जोड़ने से एक यूरिया बैग किसानों को ₹600 तक पड़ रहा है।
बिजली दरें, फर्जी बिलिंग और आवारा पशुओं का खतरा
बिजली विभाग पर भी महंगे बिल, फर्जी चोरी मुकदमे और चारगुना वसूली के आरोप लग रहे हैं।
उधर आवारा पशु और बढ़ती नीलगाय की संख्या—
फसलों का नुकसान
सड़क दुर्घटनाओं का खतरा
किसानों की जान तक जोखिम
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि समाधान पर ठोस कदम बहुत कम दिखते हैं।
गौतम बुद्ध नगर में भूमि अधिग्रहण: 9 वर्षों से लंबित मांगें
गौतम बुद्ध नगर में किसानों की मुख्य समस्याएँ—
जमीन का शहरीकरण कर कम मुआवजा
2013 भूमि अधिग्रहण एक्ट लागू न होना
64.7% बढ़ा मुआवजा
10% आबादी का प्लॉट
पंचायत बहाली
किसानों के बच्चों को 20% कोटा
अधिग्रहण में स्थानीयों को 50% नौकरी
लेकिन शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर
✔ लाठीचार्ज
✔ संगीन धाराएँ
✔ गिरफ्तारियाँ
✔ पदयात्राओं पर रोक
लगभग 5 लाख किसान परिवारों के केस वर्षों से लंबित हैं।
किसान नेताओं के मुताबिक, “निराशा के अलावा कुछ नहीं मिल रहा।”
किसानों के नाम अपील
“अन्नदाताओं, देखो ज़रा गहराई से—
तुम्हारी राहों में ठोकी गई है कील।
अधिकार लेने हों अगर, तो बनो जागरूक,
क्योंकि इन्हें दिख रही है तुम्हारी ढील।”
लेखक परिचय
चौधरी शौकत अली चेची
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष – किसान एकता (संघ)
प्रदेश सचिव (पिछड़ा वर्ग) – समाजवादी पार्टी, उ.प्र. हैं।
लंबे समय से किसान अधिकार, भूमि अधिग्रहण, फसल क्षति और ग्रामीण समस्याओं पर सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता।
उत्तर प्रदेश के हजारों किसानों की समस्याओं को सरकार तक पहुँचाने वाली प्रमुख आवाज़।
कानूनी डिस्क्लेमर (Legal Disclaimer)
यह लेख उपलब्ध तथ्यों, स्थानीय रिपोर्टों, किसान संगठनों के वक्तव्यों और लेखक के निजी विचारों पर आधारित है।
इसमें व्यक्त विचार किसी भी सरकारी संस्था, संगठन, राजनीतिक दल या मीडिया प्लेटफ़ॉर्म की आधिकारिक राय नहीं हैं।
यह लेख सूचनात्मक एवं जनजागरूकता उद्देश्य से लिखा गया है।
किसी भी आरोप, आंकड़े या घटनात्मक विवरण की सत्यता का स्वतंत्र स्रोतों से सत्यापन पाठक स्वयं करें।
लेख का उद्देश्य किसी व्यक्ति, संस्था या सरकार को बदनाम करना नहीं, बल्कि किसान-समस्याओं पर जागरूकता बढ़ाना है।