भाजपा एमएलसी द्वारा सपा प्रवक्ता के निजी कॉलेज को विधायक निधि, टाइमिंग पर उठा सवाल

 


 

– मौहम्मद इल्यास- “दनकौरी” / गौतमबुद्धनगर-

उत्तर प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य में इन दिनों एक पत्र को लेकर व्यापक चर्चा तेज हो गई है। आरोप यह है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के बीच पर्दे के पीछे अप्रत्याशित सौहार्द और लाभ-संबंध सक्रिय हैं। विवाद का केंद्र है समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजकुमार भाटी का निजी शैक्षणिक संस्थान, जिसके लिए भाजपा के विधान परिषद सदस्य दिनेश गोयल द्वारा विधायक निधि से धन उपलब्ध कराए जाने का मामला सामने आया है।

सोशल मीडिया पर प्रसारित हुए एक पत्र के अनुसार, दिनांक 8 जनवरी 2025 को राजकुमार भाटी ने एमएलसी दिनेश गोयल को अपने निजी लॉ कॉलेज विजय सिंह पथिक इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ के लेटरहेड पर दो कमरे निर्माण हेतु विधायक निधि से सहयोग की मांग की थी। प्रक्रिया नियमसम्मत है, किंतु जिस प्रकार यह दस्तावेज़ और अनुदान सार्वजनिक हुए हैं, उसने राजनीतिक संवेदनशीलता को प्रखर कर दिया है।

सूत्रों के अनुसार, भाजपा एमएलसी दिनेश गोयल की संस्तुति पर 12 लाख रुपये स्वीकृत हुए और लगभग 7 लाख 20 हजार रुपये जुलाई माह में कॉलेज को जारी भी कर दिए गए। विपक्ष के प्रवक्ता के निजी संस्थान को सत्ता पक्ष की निधि मिलना, दोनों शिविरों में प्रश्नों और असहजता का विषय बन गया है।

मुख्य राजनीतिक प्रश्न

  1. क्या राजकुमार भाटी और भाजपा एमएलसी दिनेश गोयल के बीच राजनीतिक निकटता है?
  2. क्या यह सहयोग आगामी मेरठ-सहारनपुर स्नातक एमएलसी चुनाव से संबंधित किसी राजनीतिक समझ का संकेत है?
  3. विधायक निधि का आवंटन केवल शैक्षिक विकास के सिद्धांत पर आधारित है या इसके पीछे कोई अन्य रणनीतिक उद्देश्य निहित है?
  4. इस पत्र को चुनावी समय से पूर्व वायरल किए जाने का उद्देश्य क्या है?
  5. क्या यह प्रकरण भाजपा और सपा दोनों में निष्ठा और संगठनात्मक शुचिता की परीक्षा बन सकता है?

चुनावी संदर्भ

मेरठ-सहारनपुर स्नातक खंड से एमएलसी चुनाव निकट है। भाजपा से दिनेश गोयल पुनः उम्मीदवार हो सकते हैं, जबकि समाजवादी पार्टी ने अधिवक्ता व गौतमबुद्धनगर बार एसोसिएशन अध्यक्ष प्रमेंद्र भाटी को प्रत्याशी घोषित किया है। ऐसे में यह विवाद चुनावी समीकरणों के केंद्र में उपस्थित होता दिखाई दे रहा है।

राजनीतिक संकेत

विश्लेषकों के अनुसार यह मामला न केवल पारंपरिक सत्ताविरुद्ध-विपक्षीय ध्रुवीकरण को चुनौती देता है, बल्कि परोक्ष गठजोड़ों, अवसरवादी समीकरणों और वैचारिक प्रतिबद्धता की कसौटी को भी रेखांकित करता है। वायरल दस्तावेज़ घटना को केवल वित्तीय सहायता से आगे ले जाकर राजनीतिक सत्यनिष्ठा और संगठनगत अनुशासन की विमर्श-रेखा पर स्थापित कर देता है।

प्रकरण दोनों दलों के लिए चुनौतीपूर्ण

यह प्रकरण दोनों दलों के लिए चुनौतीपूर्ण बन गया है। विपक्षी उम्मीदवार प्रमेंद्र भाटी के लिए यह परिस्थिति राजनीतिक दृष्टि से उपयोगी अवसर में परिवर्तित हो सकती है, क्योंकि मामला निष्ठा और वैचारिक सिद्धांतों की परीक्षा से संबंधित हो गया है।

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