
🌕 महामंडलेश्वर आचार्य अशोकानंद जी महाराज 🌕
शरद् पूर्णिमा का पर्व भारतीय संस्कृति का ऐसा अनुपम उत्सव है जो केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह वह पावन रात्रि है जब चन्द्रमा अपनी सोलहों कलाओं से पूर्ण होकर धरती पर अमृत-सी चाँदनी बरसाता है। ऐसा माना जाता है कि इस रात की शीतल रोशनी में स्वास्थ्य, सौंदर्य और मानसिक शांति का विशेष संचार होता है।
१. चन्द्रदेव की पूर्ण कलाएँ — ऊर्जा और स्वास्थ्य का प्रतीक
शास्त्रों के अनुसार इस दिन चन्द्रमा अपनी सम्पूर्ण कलाओं से युक्त होता है। आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि शरद ऋतु की शीतल और स्वच्छ चाँदनी शरीर पर पड़ने से मनःशांति, नींद की गुणवत्ता और रक्तचाप पर सकारात्मक प्रभाव डालती है। इसलिए हमारे पूर्वजों ने इस रात “चन्द्रदर्शन” और “चन्द्रकान्तामृत” का विधान किया — अर्थात् चाँदनी में रखी खीर या दूध का सेवन। यह कोई अंधविश्वास नहीं बल्कि प्राकृतिक थेरेपी है, जिससे शरीर को ठंडक, मन को संतुलन और स्वास्थ्य को स्फूर्ति मिलती है।
२. श्रीकृष्ण की रासलीला — आत्मा और परमात्मा का मिलन
भागवत महापुराण के अनुसार, शरद् पूर्णिमा की रात भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में गोपिकाओं के साथ रास रचाया। यह रास कोई सांसारिक नृत्य नहीं, बल्कि भक्ति, प्रेम और आत्मिक एकता का प्रतीक है। जब मन पूर्ण समर्पण के साथ ईश्वर में लीन हो जाता है, तब आत्मा और परमात्मा का मिलन होता है — यही रास का गूढ़ अर्थ है। यह हमें सिखाता है कि सच्चा प्रेम भक्ति के माध्यम से दिव्यता को प्राप्त करने का साधन है।
३. कोजागरी व्रत — जागृति, संयम और समृद्धि का संदेश
इस दिन देवी लक्ष्मी पूछती हैं — “को जागर्ति?” अर्थात् “कौन जाग रहा है?” शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति इस रात्रि में साधना, जप या सत्कर्म में जागता है, उस पर लक्ष्मीजी की विशेष कृपा होती है। यह प्रतीक है सतर्कता और कर्मठता का। जीवन में समृद्धि उन्हीं को प्राप्त होती है जो श्रमशील, जागरूक और संयमी हैं।
४. सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का पर्व
प्राचीन भारत में शरद् पूर्णिमा की रात सामूहिक उत्सव का अवसर हुआ करती थी। परिवारजन आँगन में दीप जलाकर, भजन-कीर्तन और कथा का आयोजन करते थे। इस परंपरा का उद्देश्य केवल पूजा नहीं, बल्कि पारिवारिक एकता, प्रेम और संस्कृति का संरक्षण था। आज भी यह दिन परिवारों में एकता, श्रद्धा और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का माध्यम बन सकता है।
५. वैज्ञानिक और स्वास्थ्य दृष्टि से लाभकारी
शरद ऋतु में वातावरण स्वच्छ होता है, और इस समय की चाँदनी में कैल्शियम, फॉस्फोरस और अन्य किरणीय तत्वों का संतुलन मानव शरीर पर अनुकूल प्रभाव डालता है। चिकित्सकीय दृष्टि से, कुछ समय चाँदनी में बैठना तनाव, अनिद्रा, अवसाद और मानसिक विकारों को कम करता है। अतः यह दिन केवल आस्था नहीं, बल्कि प्राकृतिक स्वास्थ्य विज्ञान का उत्सव भी है।
६. साधना, दान और मनोशुद्धि
शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति इस रात में दान, पूजन, ध्यान या जप करता है, उसके नकारात्मक संस्कार शुद्ध हो जाते हैं। आधुनिक संदर्भ में इसे “माइंड एंड सोल डिटॉक्स” कहा जा सकता है। यह भक्ति, ध्यान और सकारात्मक ऊर्जा का अद्भुत संगम है।

✨ उपसंहार
शरद् पूर्णिमा केवल एक तिथि नहीं, बल्कि प्रकाश, प्रेम, आरोग्य और समृद्धि का उत्सव है। यह रात्रि हमें प्रेरित करती है कि हम भीतर की अंधकार रूपी अज्ञानता को दूर करें और आत्मा को ईश्वर की चाँदनी में नहलाएँ।
“जागो, प्रसन्न रहो, और अपने जीवन को दिव्य प्रकाश से आलोकित करो।” 🌕
लेखक: महामंडलेश्वर आचार्य अशोकानंद जी महाराज
संस्थापक-अध्यक्ष एवं पीठाधीश्वर,श्री मोहन दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट, बिसरख धाम (रावण जन्म स्थली) हैं।
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⚖️ कानूनी डिस्क्लेमर:
इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत आध्यात्मिक एवं वैदिक दृष्टिकोण पर आधारित हैं। इनका उद्देश्य केवल जनजागरण, धार्मिक ज्ञानवर्धन और सांस्कृतिक परंपराओं का संरक्षण है। यह किसी संस्था या व्यक्ति विशेष के मत का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन नहीं करते। प्रस्तुत सामग्री का प्रयोग अध्यात्म एवं जनहित की भावना से किया गया है।